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सुहाना सफर

सफर सुहाना

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रात के सन्नाटे को चीरते हुए ट्रेन अपनी गति से भागे जा रही थी। शिविका अपने रिजर्वेशन डिब्बे में खिड़की के पास बैठी बाहर के अंधेरे को अपलक देखे जा रही थी। बिलकुल ऐसा ही अंधेरा तो उसके अंदर भी समाया है। फिर कुछ सोचते हुए शिविका के आंखों से आँसू बहने लगे। वह अपने अतीत के यादों में खो गई जब वह छोटी सी नन्ही बच्ची थी।

लड्डू की तरह गोल मटोल सी, दूध सी उजली शिविका को हर कोई बहुत पसंद करता था। उसकी मासूमियत और बातों से हर कोई बड़ा प्रभावित रहता था। बड़े पिताजी के बच्चे यानी बड़े भाइयों और बहनों से शिविका को बहुत प्यार मिलता था। वह बहुत हंसमुख थी हमेशा हंसती मुस्कुराती रहती थी।शिविका भी अपने सभी भाइयों और बहनों पर जान छिड़कती थी। विद्यालय में भी शिक्षकों की प्रिय शिष्या थी वह क्योंकि वह पढ़ने में खूब होशियार थी। वह हर साल कक्षा में टॉप करती थी।

इसी तरह बड़े भाइयों और बहनों के प्रेम तले शिविका का बचपन बीत गया। शिविका जब क्लास फाइव में थी तब एक बार उसके हिन्दी शिक्षक ने उन्हें एक कहानी सुनाई थी । वह कहानी थी "सितारों से आगे", जिसमें अंतरिक्ष यात्री कल्पना चावला के बारे में बताया गया है कि किस तरह कल्पना बचपन में आकाश को देखा करती थी और मन ही मन वहां जाने का अटल निश्चय बनाई थी और अपने काबिलियत के दम पर उन्होंने ये सपना पूरा किया। कल्पना जी अंतरिक्ष यात्री के रुप में अंतरिक्ष में गई थी और सफलतापूर्वक वे वापिस लौट रही थी किन्तु उनका विमान दुर्घटना ग्रस्त हो गया और उसमें सवार सभी अंतरिक्ष यात्रियों की मौत हो गई। आज भी कल्पना चावला जी का नाम बहुत सम्मान के साथ लिया जाता है। इनका नाम अमर है।


जब शिक्षक ने ये कहानी सुनाई तो शिविका तपाक से खड़ी होकर बोल पड़ी _आचार्य जी, मैं भी बड़ी होकर ऐसे ही अमर बनूंगी।


तब शिक्षक ने प्यार से उसके सिर पर हाथ रखते हुए कहा _"जरुर बनना। ऐसा कोई कार्य करना जिससे बाकि लोग तुमसे प्रेरणा ले सके। तुम्हारी तारीफ कर सके। तुम पर गर्व कर सके।"


उस दिन एक कहानी के जरिए शिक्षक ने शिविका के मन में एक छोटा सा बीज रोपित किया था जिसे अब खाद और पानी देकर शिविका को ही बड़ा करना था। वह दिन रात यही सोचती कि अच्छे नंबर से पास होकर कॉलेज करूंगी फिर नौकरी करूंगी और अपना सपना पुरा करूंगी। ये सब सोचकर वह मन ही मन बेहद खुश होती, इस बात से अनजान कि किस्मत उसे जिंदगी की किस बड़ी परीक्षा से गुजारने वाली है।


साल दर साल बीतते चले गए। शिविका हर बार अच्छे नंबर से पास होती। दसवीं में भी उसके अच्छे नंबर आए थे। शिक्षकों ने उसे विज्ञान विषय लेकर आगे पढ़ने को कहा किंतु उसने कला विषय चुना। ग्यारहवीं में पूरे स्कूल से बेस्ट ईयर ऑफ द स्टुडेंट शिविका को चुना गया। शिविका बेहद खुश थी। इस साल के परीक्षा में भी उसने टॉप किया था। सारे विषयो में उसे विशेष योग्यता प्राप्त हुई थी। अब शिविका दिन रात ये सोचती कि बारहवीं में थोड़ा और मेहनत करूंगी तो प्रावीण्य सूची में नाम दर्ज हो सकता है। 

स्कूल के पहले दिन जब वो सायकल से स्कूल जाने का प्रयास की तो सायकल नही चला पाई फिर लगा शायद कमजोरी के कारण पैर अकड़ रहे हो। इलाज कराया तो मालूम हुआ शिविका के शरीर की नस सूख रही है और इसका कोई इलाज नहीं है। धीरे धीरे दर्द और परेशानी बढ़ जाएगी तो चलने फिरने में दिक्कत होगी।यही सब सुन शिविका टूट गई थीं। डॉक्टर के कहे अनुसार शिविका के पैरों ने काम करना बंद कर दिया। वह बेजान सी मूरत बन गई। ना खाती, ना पीती, ना किसी से बोलती, ना हंसती बिलकुल एक जिंदा लाश बन गई थी। उसके विद्यालय के शिक्षक ने जब सुना तो उनको बहुत दुख हुआ। शिविका बारहवीं में एक दिन भी स्कूल नही गई । बड़ी मुश्किल से केवल परीक्षा देने को गई अपने परिजनों के साथ। ऐसी हालत में भी थोड़ा बहुत पढ़कर ही शिविका ने बारहवीं में 75% अंक हासिल किए थे, यह कोई कम बड़ी बात न थी । 


शिविका के सारे सपने चकनाचूर हो चुके थे, अब वह क्या करे? कैसे करे? क्यों उसके साथ ऐसा हुआ? उसने किसी का क्या बिगाड़ा है? भगवान इतना निष्ठूर क्यों हो गए मेरे लिए?बस यही सोच सोच कर वह बहुत रोया करती थी।


ऐसे समय उसकी सहेली घर आई । उसे समझाई कि तु खुद को कमजोर मत समझ। सिर्फ तेरी हालत ही ऐसी नही है शिवि, दुनिया में ऐसे बहुत से लोग है जो तुझसे भी ज्यादा दयनीय हालत में है। तो क्या वे सभी जीना छोड़ देंगे या तेरी तरह हार मान जायेंगे? अरे मेरी पगली सी दोस्त अगर तू इस हालत में हार मानकर आत्महत्या कर लेगी तो कोई नगाड़ा पीटकर तेरी तारीफ नही करेगा बल्कि सब यही बोलेंगे ", बेचारी अच्छा हुआ मर गई, कितने तकलीफ में थी।"

हां तू अगर इस हालत में भी कुछ ऐसा करेगी जो सामान्य लोग नही कर सकते तो बेशक सभी तेरी तारीफ करेंगे, तुझ पर गर्व करेंगे, लोग तुझे अपनी प्रेरणा मानेंगे और तो और जब तू इस दुनिया से विदा होगी तो सब ये कहेंगे _"वाह क्या लडकी थी, कभी हार नही मानी, हमेशा मुस्कुराती रहती थी इतने तकलीफ के बाद भी। मरके भी आज सबके बीच जिन्दा है।"

अब तुझे सोचना है शिविका तुझे क्या बनना है किस तरह करना है और कैसे आगे बढ़ना है। 

शिविका के मन में नई ऊर्जा का संचार करके सहेली तो चली गई पर अब शिविका पूरी तरह बदल चुकी थी। उसने अपने मन के भावों को कागज पर पिरोना शुरू किया। पता नही था कभी छपेगा या नही बस लिखती थी। घरवालों को पढ़कर सुनाती तो सभी बहुत तारीफ करते और बोलते कि इसे कहीं प्रकाशित करवाना चाहिए। मेरे मन में भी रचनाओं को छपवाने की बड़ी इच्छा थी। पर कहते हैं ना लोग सिर्फ सलाह देना जानते हैं जब साथ देने की बारी आती हैं तो चार नही बल्कि हजार कदम पीछे हट जाते है। 

शिविका ने अपने एक जान पहचान के भैया ( जो अखबार में कार्यरत है।) से कहा कि अपने अखबार में मेरी रचनाएं छपवा दीजिए। तो उन्होंने कहा _आजकल ऐसे फालतू चीज अखबार में नही छपते हैं और कोई इनको पढ़ता भी नही है।


शिविका, भैया की बात सुन बहुत उदास हो गई। उसने एक प्रकाशक से भी पूछा था तो उन्होंने बताया कि इसके लिए बीस हजार देना पड़ेगा तब आपकी रचना प्रकाशित होगी पुस्तक के रुप में।


शिविका ये सब सुन निराश हो जाती। एक साल में उसने बहुत सारी अच्छी अच्छी कविताएं लिखी थी। मगर वह पैसे देकर प्रकाशित करवाने में असमर्थ थी। 


किसी परिचित ने शिविका के परिजनों को बताया कि राजस्थान के उदयपुर में शिविका के बीमारी का इलाज संभव है और शिविका बिलकुल ठीक हो जाएगी। परिजन शिविका का बहुत इलाज करवा चुके थे। पैसा पानी की तरह बह गया पर सुधार न हुआ। फिर भी अंतिम कोशिश करने की चाह में उसके माता पिता उसे उदयपुर लेकर गए। जहां डॉक्टर ने तमाम जॉच उपरांत कहा कि "अब ये कभी ठीक नही हो सकती।"

इतना सुनना था कि शिविका फूट फुटकर रो पड़ी। यही सब सोचते हुए शिविका वर्तमान में लौट आई। अभी भी उसकी आँखे आंसुओं से भरी हुई थी। शिविका धीरे धीरे नींद के आगोश में सो गई।


अभी शिविका अपने माता पिता के साथ ट्रेन में थी। वे उदयपुर से वापिस रायपुर छत्तीसगढ़ लौट रहे थे। सुबह जब शिविका की नींद खुली तो देखा ट्रेन किसी रेलवे स्टेशन में खड़ी थी। उसके माता पिता चाय पी रहे थे। तभी किसी की प्यार भरी बोली शिविका के कानों में पड़ी _"आप पुस्तक खरीदेंगी दीदी, सिर्फ तीन सौ की है।" शिविका कुछ बोलती उससे पहले उसकी माँ बोल पड़ी _नही हमे नही चाहिए कोई पुस्तक वुस्तक। जाओ तुम यहां से।

वह जाने लगा तो शिविका ने गौर किया करीब १५ साल का लड़का नीली कमीज और हॉफ पेंट पहले हुए था। उसके दोनों पैर बेजान थे, वह वैशाखी के सहारे चल रहा था। शिविका ने आवाज लगाकर उसे पुकारा और पास बैठने को कहा। उसके थैली में मौजूद दस पुस्तकों में से शिविका ने एक पुस्तक चुन ली और उसे पैसे अदा कर दिए। वह जाने के लिए उठने को हुआ तो शिविका ने चाय बिस्किट आगे करते हुए कहा _लो चाय बिस्किट खा लो । वह हिचकिचाते हुए चाय बिस्किट खाने लगा। तब शिविका ने उससे पूछा _



"क्या नाम है तुम्हारा?"




"अनंत वैष्णव।"उसने कहा।




"ये किताबें क्यों बेचते हो।"शिविका ने पूछा।




"घर में माँ बाबा हैं। माँ अन्य घरों में झाड़ू पोछा करती है और बाबा ट्रैक्टर चलाते हैं। मैं खाली रहता हूं तो किताबे बेचता हूं। एक पुस्तक के मुझे दस रुपए मिलते हैं दीदी।" वह गर्व से बोला।




"लेकिन तुम खाली क्यों रहते हो, तुम्हारी तो अभी पढ़ने की उम्र है, काम करने की नही। और तुम्हारे  पैर ऐसे कैसे हो गए भाई?" शिविका ने पूछा।




"दीदी, मुझे बचपन में पोलियो हो गया था, तब से मेरे पैर ऐसे ही है। और मैं सरकारी पाठशाला में कक्षा 9 में पढ़ता हूं। मुझे काम करने के लिए घरवाले नही बोलते हैं पर मैं अपनी इच्छा से ये कार्य करता हूं। रोज के कम से कम 200 कमा लेता हूं। इससे मेरा खर्च निकल जाता है और दूसरा ये कि मै खुद को काबिल समझता हूं। सुबह सात से साढ़े नौ तक यहां पुस्तक बेचता हूं फिर ग्यारह बजे स्कूल जाता हूं।" अनंत ने मुस्कान के साथ कहा।






शिविका आंखों में आँसू भर कर उसे प्यार से देखने लगी।



"ऐसे रोइए मत दीदी, जो हो गया उसे मैं बदल नही सकता पर हां आगे का तो अच्छा कर सकता हूं न। इतनी प्यारी जिंदगी मिली है तो रो रोकर खराब थोड़ी करूंगा। भगवान सारे दरवाजे एक साथ बंद नही करता है दीदी, कोई न कोई दरवाजा खुला जरुर छोड़ता है। अब हमें उसी खुले दरवाजे को खोज कर वहां से अपनी मंजिल तक जाना है।" अनंत मासूमियत से बोला।




"कितनी विद्वान की तरह बातें करता है तू, सच में बहुत आगे जायेगा।" ऐसा कहते हुए शिविका ने एक सौ का नोट उसके हाथ पर रख दिया और कहा _ "ये तेरी दीदी का आशीर्वाद है तेरे लिए। खूब पढ़ना, आगे बढ़ना।"




ट्रेन ने सीटी दे दी। अनंत भावुक होकर शिविका से विदा लेकर चला गया। शिविका कुछ देर मौन बैठी रही फिर उसकी नजर खरीदे गए पुस्तक पर पड़ी। उसने उसे खोला और सामने के दो तीन पृष्ठ पढ़े। पढ़ते ही उसका चेहरा खुशी से खिल उठा।


सामने एक महिला की तस्वीर थी जिस के नीचे लिखा था _हम सभी तरह की रचनाओं का निशुल्क प्रकाशन करते है और सभी लेखकों का स्वागत करते हैं। प्रकाशन का नाम शोपिजन था और प्रकाशक का नाम प्रगति जी।


शिविका ने तुरंत दिए नंबर पर संदेश भेजकर उनसे सारी डिटेल्स ले ली। बहुत मेहनत के साथ एक महीने बाद ही शिविका की खुद की पुस्तक प्रकाशित हो चुकी थी जिसका नाम था _कुछ भीगे अल्फाजों में।


इस पुस्तक का विमोचन उसने छत्तीसगढ़ की प्रसिद्ध लोकगायिका के हाथों करवाया था। आज शोपिजन के कारण ही उसकी चार पुस्तक प्रकाशित हो चुकी है। जब उसकी हाथ में पुस्तक आती है तो मन गदगद हो जाता है। नमन करता है उनको जो सैकड़ों सपनों को पुस्तक के रूप में प्रकाशित करते है और उन्हें प्रोत्साहित करते हैं।


उस ट्रेन यात्रा ने शिविका की जिंदगी और सोचने का नजरिया ही बदल दिया। अब वो निरंतर साहित्य जगत में आगे बढ़ रही हूं। आज बहुत से लोग उसे अपनी प्रेरणा मानते हैं। उस पर गर्व महसूस करते है, उसकी तारीफ करते हैं।



शिखा गोस्वामी निहारिका

मारो मुंगेली छत्तीसगढ़

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