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अविस्मरणीय रेल यात्रा

'अविस्मरणीय रेल यात्रा'

एक बार इच्छा हुई कि वैष्णोदेवी के दर्शन करके आऊं। सीधी जम्मू जाने वाली ट्रेन में अपना रिजर्वेशन कराया। नियत दिन समय पर स्टेशन पहुँच गया। ट्रेन सही समय पर थी। ट्रेन में बहुत भीड़ थी। दीपावाली का पर्व नजदीक था। लोग दीपावली मनाने अपने घरों को जा रहे थे। ट्रेन में मेरा रिजर्वेशन था मगर अपनी सीट तक पहुंचने में काफी मशक्कत करनी पड़ी। जैसे-तैसे अपनी सीट तक पहुंचा। लोग पहले से ही मेरी सीट पर बैठे थे। वे उठने को तैयार नहीं हुए। जब उन्हें रिजर्वेशन टिकट बताया तब वे वहां से उठे।

थोड़ी देर बाद गाड़ी ने सीटी दे दी। गाड़ी धीरे-धीरे आगे बढ़ रही थी। तभी बाहर देखा एक सैनिक भागता हुआ ट्रेन में चढ़ रहा था। बड़ी मुश्किल से ट्रेन में चढ़ पाया था। फिर भी उसका एक बैग जिसमें उसका खाना भी था, नीचे प्लेटफॉर्म पर ही रह गया। गाड़ी रफ्तार पकड़ चुकी थी। वह बेचारा अपने छूट हुए बैग को देखता रहा। धीरे-धीरे गाड़ी ने पूरी रफ्तार पकड़ ली। उसने अपनी जेब में अपना पर्स संभाला तो देखा उसका पर्स ही गायब था जिसमे काफी रूपये, मिलिट्री का कार्ड आदि जरूरी कागज रखे थे। किसी ने भीड़ का फायदा उठाकर उसकी जेब काट ली थी। उसका चेहरा उतर गया था।

 

 

 

उसके हाथ पर लगी मेहंदी बता रही थी कि उसकी अभी हाल ही में शादी हुई है। उसको किसी ने बैठने को जगह नही दी। थोड़ी देर में टीटी आ गया। उसने उससे सीट दिलाने की विनती की मगर उसने सीट नहीं दी बल्कि उससे बदतमीजी से बात करने लगा।

सैनिक टीटी से केवल बैठने भर की जगह दिलाने की हाथ जोड़कर प्रार्थना करने लगा मगर टीटी को उस पर कोई दया नहीं आयी और उसने उसकी एक नही सुनी। बहुत से लोग वहां खड़े थे मगर सभी लोग टीटी का ही पक्ष ले रहे थे और सैनिक को ही भला बुरा कह रहे थे।

सैनिक ने टीटी से कहा, “सर मैं अर्जेंट ड्यूटी पर कश्मीर बॉर्डर जा रहा हूं। वहां पाकिस्तान ने हमारी चौकी पर हमला कर दिया है।”

टीटी ने पूछा, “तुम्हारा वारेंट कहां है?”

सैनिक ने कहा, “मुझे अर्जेंट बुलावा आया है इसलिए वारेंट नहीं ला पाया।”

टीटी बोला, “तुम आर्मी वालों में बस यही खराबी है, हर जगह आर्मी के नाम से घुस जाते हो। बिना वारेंट भला कोई आर्मी का आदमी यात्रा करता है।”

मैं उस सैनिक पर नजर मारते हुए अपनी सीट की तरफ बढ़ने लगा। टीटी की उसे धमकाने की आवाज आने लगी। मैं अपनी सीट से उठकर उनके पास गया।

 

 


मैंने टीटी से आग्रह किया, “अगर कोई सीट खाली है तो इस सैनिक को दे दो बेचारा लड़ाई छिड़ने के कारण सरहद पर जा रहा है।”

टीटी मुझसे बोला, “आप जैसे लोग ही इन लोगों को शह देते हैं। ये बिना वारेंट के सफर कर रहा है। अगर ये सैनिक होता तो बिना वारेंट के यात्रा नहीं करता। आपको क्या पता ये सैनिक भी है या नहीं? आप मुझे अपनी ड्यूटी करने दीजिये।”

मैंने कहा, “मगर उसके पास टिकट तो है ना?”

टीटी ने कहा, “ये रिजर्वेशन कोच है, जनरल डिब्बा नही है।”

मैंने कहा, “मैं इसे अपने पास बैठा लेता हूं।*

टीटी नाराज होकर बोला, “फिर तो हर कोई यहां हर किसी का रिश्तेदार बनकर या अपनी मजबूरी बताकर रिजर्वेशन कोच में बैठ जायेगा। मैं ये सब नही होने दूंगा।”

टीटी ने सैनिक को तमतमाते हुए उसे अगले स्टेशन पर उतर जाने को कहा और धमकी दी अगर अगले स्टेशन पर नही उतरे तो पेनल्टी लगा दूंगा और ट्रेन से उतारकर रेलवे पुलिस को बुलाकर उनके हवाले कर दूंगा।

 

 

 

टीटी की अभद्र भाषा से वह सैनिक बहुत दुखी और हताश हुआ।

सैनिक ने हाथ जोड़ते हुए मुझे कहा, “भैया, कोई बात नहीं रहने दो, अगले स्टेशन पर जनरल कोच में चला जाऊंगा।”

टीटी जाकर एक खाली बर्थ पर लेट गया। सैनिक डिब्बे के गेट के पास जाकर खड़ा हो गया और अगले स्टेशन के आने का इंतजार करने लगा।

मेरी नजर लगातार उसके हाथों में लगी मेंहदी पर जा रही थी। ना जानें क्यों मेरा मन नहीं लग रहा था। अगले स्टेशन पर ट्रेन रूकते ही सैनिक अपना सामान लेकर डिब्बे से नीचे उतर गया और पास के जनरल डिब्बे में चला गया।

कुछ देर बाद गाड़ी दिल्ली पहुंच गयी। दिल्ली में गाड़ी काफी देर रूकती है। मैंने सोचा क्यों ना उस सैनिक को देखकर आऊं?

मैं गाड़ी से उतरकर जनरल कोच की तरफ बढ़ गया। जनरल कोच खचाखच भरा हुआ था। कोच के अंदर चढ़कर देखा तो सैनिक अपने सामान के साथ टॉयलेट के पास बैठा था। आते-जाते लोगों की ठोकरें खा रहा था। मुझे उसकी हालत देखकर तरस आ गया। मैं एक चाय लेकर उसके पास पहुंचा और उसे चाय पीने को दी। पहले तो वो मना करता रहा, फिर मेरे आग्रह करने पर उसने चाय ले ली।

 

 


उसकी आंखों में आंसू थे। मैंने उसको धीरज बंधाया और थोड़ी देर बाद उससे मित्रता हो गई। वह हमारे नजदीक गांव का ही रहने वाला निकला गया। उसने अपने बारे में बताया कि उसके पिता और चाचा दोनों आर्मी में थे और उन्हें देखकर ही मेरे दिल के अंदर देशभक्ति का जज्बा जाग गया था और मैं भी मिल्ट्री में भर्ती हो गया।

सैनिक ने अपनी व्यथा सुनाई, “मेरा नाम अजीत सिंह है। एक हफ़्ते पहले ही मेरी शादी हुई थी इसलिए पंद्रह दिन पहले एक महिने की छुट्टी लेकर आया था। अभी तो घर से मेहमान पूरी तरह विदा भी नहीं हुए कि कल शाम अचानक हमारे कमांडर साहब का फोन आया कि पाकिस्तान ने हमारी चौकी पर हमला कर दिया है और मुझे तुरंत ड्यूटी पर रिपोर्ट करने को कहा।

मैं अपनी शादी को भुलकर बॉर्डर के लिए रवाना हो गया। मेरी आंखों के सामने मेरे माता-पिता की सूनी आंखें दिख रही है। मेरी पत्नि के हाथों की मेहंदी की खुशबू मेरे तन बदन में महसूस हो रही है। बड़ी मुश्किल से उससे जल्दी वापिस आने का वादा करके रवाना हुआ हूं। इसीलिए मेरी आँखों में आंसू थे। मैं तुरंत रवाना हो गया।

उसकी दास्तान सुनकर मेरी आंखों में आंसू आ गए। मुझे लगा एक ये सैनिक है जो हमारी रक्षा के लिए अपनी नयी नवेली दुल्हन को छोड़कर सरहद पर जा रहा है और दूसरी और एक हम हैं जो उसे तनिक भी बैठने की जगह देकर इसको इज्जत भी नही दे रहे उल्टा सब उसे ही दुत्कार रहे थे। टीटी को छोड़ो आम पब्लिक भी टीटी का पक्ष ही ले रही थी। उसके पास से गुजरते लोग बेशर्मी से उसके ठोकरें लगाते हुए जा रहे थे।

 

 


गाड़ी ने सीटी दे दी। मैं उससे हाथ मिलाकर तुरंत उतरकर अपने डिब्बे में चढ़ गया। ना जानें क्यों मेरा मन नहीं लग रहा था। एक बड़ा स्टेशन आने पर मैं फिर उसके पास गया। उसे देखा वो वहीं टॉयलेट के पास सो रहा था। आते-जाते लोगों की ठोकर उसे लग रही थी। मैं उसके चेहरे को गौर से देख रहा था।

उसके चेहरे पर कई भाव आ जा रहे थे। मैंने देखा कभी वो मुस्कारा रहा था तो कभी गंभीर हो जाता। थोड़ी देर ऐसे ही चलता रहा। मेरी नजर उसके हाथों की मेंहदी पर जा टिकी। मुझसे रहा नहीं गया, मैंने उसे उठाया और चाय आगे कर दी।

वह हड़बड़ाकर उठा और आंखों को मसलने लगा। मैंने देखा उसकी आंखों में आंसू थे।

मैंने पूछा, “ये आंखों में आंसू क्यों है?”

वो सकपका गया। फिर बोला, “कुछ नही जरा सपने में खोया हुआ था। बस घर की याद आ गयी। ऐसा लगा जैसे मेरी पत्नि मेरे लिए चाय लाई है।”

मैंने कहा, “अपने कमांडर को बोल देते अभी शादी को एक हफ्ता भी नही हुआ है। अभी तो हाथों की मेंहदी भी नहीं उतरी है, कुछ दिनों बाद आऊंगा।”

 

 

 


अजीत सिंह बोला, “देश का सवाल है, अगर मैं बॉर्डर पर नहीं जाता और शादी का बहाना बनाकर रुक जाता तो क्या मैं बुझदिल और कायर नहीं कहलाता? जिंदगी भर इस कलंक को कैसे ढ़ो पाता? दुश्मन मेरे देश पर हमला कर दे और मैं उसे जवाब भी नही दे पाऊं, ऐसे कैसे हो सकता है? हमारा देश और उसके नागरिक मेरे लिए अपनी जान से पहले हैं। अपना देश सुरक्षित रहेगा तभी तो आप और हम सुकून की जिंदगी जी सकेंगे।”

देश और आम जनता के प्रति उसके भाव सुनकर मैं निशब्द हो गया।

उसकी देशभक्ति देखकर मैंने उसे सलूट किया। उसकी बातें सुनकर मुझे आत्मग्लानि हुई कि आखिर हम कैसे नागरिक हैं जो देश की हिफाजत करने वाले सैनिकों की इज्जत नहीं करते। ये सरहद पर गोलियां खाते हैं और हम दुश्मन से लड़ने जाते वक्त इसे बैठने की जगह भी नहीं देते और वो टॉयलेट के पास बैठकर आते-जाते लोगों की ठोकरें खाने को मजबूर होता है।

ट्रेन चलने को थी, मैं डिब्बे से उतरकर अपने डिब्बे में आकर बैठ गया।

गाडी जम्मू तवी रेलवे स्टेशन पर पहुंची। मैं वहां उतर गया। वह भी स्टेशन पर उतर गया। उससे प्लेटफॉर्म पर फिर मुलाकात हुई। मैं वैष्णोदेवी जा रहा था और वो श्रीनगर। दोनों में फोन नम्बर का आदान-प्रदान हुआ।

उसने कहा बॉर्डर पर हालत सामान्य होने पर फिर गांव आऊंगा फिर हम अवश्य मिलेंगे। मैंने उसे ‘जयहिंद’ कहा और उसने भी ‘जय हिंद’ कहा और अपने-अपने रास्ते की तरफ चले गए।

 

 

मैं दो दिन बाद वैष्णोदेवी के दर्शन करके वापिस घर लौटा गया। अचानक उस सैनिक अजित सिंह की याद आ गई। सोचा उसको फोन लगाकर उसके हालचाल पूछ लूं और बॉर्डर पर क्या हालात है यह भी पूछ लूं, उसको दो तीन बार फोन लगाया मगर उसका फोन नो रिप्लाई हो रहा था।

दूसरे दिन सुबह का वक्त था, ड्राइंग रूम में बैठकर चाय की चुस्की के साथ टीवी देख रहा था। अचानक टीवी पर ब्रेकिंग न्यूज देखकर चौंक गया।

टीवी पर न्यूज चल रही थी कि पाकिस्तान ने घुसपैठ करके हमारी चौकी पर पिछले चार दिनों में दोबारा कब्जा करने की कोशिश की। हमारे जांबाज सैनिकों ने बहादुरी से दुश्मन के हमले को नाकाम कर दिया है। दुश्मन के कई सैनिकों को मार गिराया है। हमारे जांबाज सैनिकों ने पाकिस्तान के सैनिकों का डटकर मुकाबला किया और पाकिस्तान की सीमा के अंदर जाकर बहुत दूर तक खदेड़ दिया। हमारा एक जवान लापता है। पहाड़ी बर्फ से ढ़की होने के कारण उसे ढूंढ़ने में परेशानी आ रही है। उसे ढूढने की कोशिश जारी है।

पूरे देश में पाकिस्तान के विरुद्ध जबरदस्त आक्रोश फैल गया था। मैंने उस सैनिक अजित सिंह से फोन पर फिर बात करने की कोशिश की मगर उसका फोन बंद आ रहा था।

दूसरे दिन न्यूज चैनल देख रहा था। खबर थी की हमारा जांबाज सैनिक अजित सिंह जो दुश्मन को खदेड़ते वक्त लापता हो गया था वो देश के लिए शहीद हो गया। उसका सिर विहीन शव मिला है। खबर सुनकर विश्वास नहीं हुआ।

 

 

ईश्वर से प्रार्थना करने लगा- हे ईश्वर, ये अजित सिंह वो ना हो जो ट्रेन में मिला था और जिसकी अभी एक हफ्ते पहले ही शादी हुई थी।

उसे फिर फोन लगाया। अबकी बार किसी ने फोन उठा लिया और बोला, “मैं यह दुखद समाचार दे रहा हूँ की अजित सिंह शहीद हो गया है, कल तक उसका शव उसके गांव पहुँच जाएगा।”

थोड़ी देर बाद उसके शहीद होने की खबर पूरे देश में बिजली की तरह फैल गयी। मेरे गांव से उसका गांव कोई बहुत ज्यादा दूर नहीं था। दिल बहुत उदास था। मेरे दिल में ख्याल आया की जो सैनिक देश के लिए शहीद हो गया उसको अंतिम विदाई जरूर देकर आऊंगा।

दूसरे दिन सुबह मैं मोटर साईकिल पर उसके गांव जाने लगा। बीच-बीच में न्यूज चैनल पर खबरें भी देख रहा था। मैं उसके गांव पहुंचा तो देखा चौपाल पर कुछ लोग बैठे थे। सेना के कुछ जवान उसके शहीद होने की सूचना देने गाँव आए थे।

दुश्मनों ने उसका सिर तन से जुदा कर दिया था इसलिए गांव वालों ने उसके घर वालों को अभी तक खबर नहीं दी। मैंने उसके घर का पता पूछा और उसके घर की तरफ जाने लगा। सेना के एक जवान ने मुझे अजित सिंह के घर जाने से रोक दिया। मगर मैंने उन्हें बताया कि मैं उसके घर नहीं जाऊंगा।

मैं उसके घर के सामने से निकला तो देखा उसका परिवार अजित सिंह के शहीद होने की घटना से अनभिज्ञ था।

 

 

उसके बूढ़े पिता हाथ में एक लाठी लिए एक टूटी फूटी चारपाई बैठे थे। पास ही उसकी मां गाय के गोबर के कंडे बना रही थी। उसकी नयी नवेली पत्नी जिसके हाथों पर मेहँदी अभी भी रची हुई थी, चूल्हे पर खाना बना रही थी।

उनके घर के आस-पास लोगों की हलचल बढ़ने लगी थी। घर के किसी भी सदस्य को अजित सिंह के शहीद होने की खबर नहीं थी। उसके पार्थिव शरीर को उसके गांव पहुंचने में थोड़ी देर थी। गांव वालों ने श्मशान जाकर पहले ही तैयारी कर दी थी। थोड़ी देर बाद गांव का मुखिया और सेना का जवान उसके शहीद होने की सूचना देने उसके घर गए। वे उसके शहीद होने की बात बताने की हिम्मत नहीं जुटा पाए। उन्होंने घर वालों को बताया कि उनका पुत्र अभी थोड़ी देर में आने वाला है।

बूढ़े माता-पिता की आंखों में चमक आ गयी। अपने पति के आने की सूचना पाकर उसकी पत्नि शरमा गयी और अंदर भागी। उसकी पत्नि घर की छत पर जाकर अपने पति के आने की राह देखने लगी।

थोड़ी देर बाद मिलिट्री का ट्रक जिसमें एक बड़ा बॉक्स रखा था और जिसे फूलों से सजा रखा था सैनिकों की एक टुकड़ी के साथ उनके घर की तरफ बढ़ रहा था। यह सब देखकर उसकी पत्नि को शक हो गया। वह एक अनजान ड़र से घबरा गयी और जोर से चिल्ला पड़ी और दौड़कर अपनी सास के गले लग गयी।

 

 

 

उसके बूढ़े पिता अपने मोटे चश्मे पर धुप से बचने के लिए हाथ लगाकर ट्रक को देखने की कोशिश कर रहे थे। जैसे ही उन्हें बताया कि उनका बेटा शहीद हो गया है, उनकी आंखें पथरीज गयी। वे ऐसे हो गए जैसे उनमें कोई जान ही नहीं है। बूढी माँ जिन्हें आँखों से बहुत कम दिखता था, बेटे के शहीद होने का मालूम पड़ते ही दहाड़ मार कर रोने लगी।

उसकी पत्नि घूंघट की आड़ से विस्मियता से ये सब देख रही थी, वह इतना बड़ा आघात सह नहीं सकी, वो अपना होश हवास खो बैठी और बेहोश होकर गिर पड़ी। उसके हाथों और पावों में लगी मेहंदी को देखकर सभी की ऑंखें नम हो गयी। वहां उपस्थित लोगों की आँखों में आंसू थे। घर में कोहराम मच गया।

आखिरी दर्शन के लिए जब मां को बेटे के पास ले जाया गया तो मां ने प्यार से उसके शरीर पर हाथ फेरना चाहा मगर जैसे ही सिर की तरफ उसका हाथ पहुंचा तो उसके हाथ कांप गए। उसने देखा की उसके बेटे का सिर ही गायब था। पिता ने बड़ी मुश्किल से खुद को संभाला फिर अजित सिंह की मा और उसकी नयी नवेली बहू को संभाला और लड़खड़ाते हुए खड़े होकर कांपते हांथों से अजित सिंह को सलामी दी और कहा, “मुझे फक्र है आज मेरा बेटा देश के काम आया।”

ये दृश्य किसी से भी नहीं देखा गया हर कोई फूट-फूट कर रो रहा था। उसकी अंतिम विदाई को टीवी चैनलों पर दिखाया जा रहा था। उस दिन पूरे देश के आँखों में आंसू थे। उसके दाह संस्कार के बाद मैं अपने घर आ गया।

 

 

 

मुझे रेल में उसके साथ गुजारे वो क्षण याद आ गए जब देश की हिफाजत के लिए बिना किसी हिचकिचाहट के अपनी नयी नवेली दुल्हन को छोड़कर बॉर्डर पर चला गया जबकि उसकी शादी एक हफ्ते पहले ही हुई थी। मुझे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे उससे कोई बहुत पुराना नाता है और मैंने अपने प्यारे दोस्त को खो दिया है। मुझे घिन्न आ गयी उन लोगों से जो रेल यात्रा के दौरान उसके साथ दुर्व्यवहार कर रहे थे और जिन्होंने सीट खाली होने के बावजूद उसे बैठने नहीं दिया गया और मजबूरन वो रेल के डिब्बे के टॉयलेट के पास बैठा था और आते-जाते लोगों की ठोकरें खाने को मजबूर हो रहा था।

वो अपनी नयी नवेली दुल्हन को छोड़कर हम सब की हिफाजत के लिए दुश्मन से लड़ने बॉर्डर पर चला गया और अपनी जान गंवा बैठा और इधर एक हम लोग हैं जिनमें से किसी ने उसकी जेब काट ली, तो किसी ने आते-जाते उसके ठोकरें लगाई। आखिर किस लिए? हम उन सैनिकों का सम्मान नहीं करते जो अपने परिवार की परवाह किये बगैर अपनी जान देकर हमारी सुरक्षा करता है और जिसकी बीबी विधवा हो जाती है, जिसके बूढ़े मां-बाप की बुढ़ापे की लाठी छिन जाती है।

वो चंद क्षणों की रेल में हुई मुलाकात आजीवन याद रहेगी जिसने एक जांबाज सैनिक की पूरी जिंदगी से रूबरू करा दिया। कैसे वह अपनी शादी एक हफ्ते बाद ही सरहद पर चला गया और दो दिन बाद अपनी नई नवेली दुल्हन, अपने बूढ़े माता-पिता के पास लौटा मगर शहीद होकर सिर कटी लाश के रूप में।

 

 

 

यह सोचकर ही रूह कांपने लग जाती है कि कैसे उस मेहँदी वाले हाथों ने ये व्रजपात सहा होगा। ये घटना जब भी याद आती है रुलाकर ही जाती है।

वो रेल यात्रा वास्तव में जिंदगी को बहुत कुछ सीखा गयी। जय हिन्द।

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