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धन

मित्रों ! आज एक लम्बे अंतराल के बाद एक ऐसे विषय पर कुछ लिखने की कोशिश कर रहा हूं जिसके बारे में जब से मानव समाज विकसित हुआ तब से कुछ न कुछ लिखा जा रहा है ! आमतौर पर 'धन' को रुपए-पैसे, सोने-चांदी, हीरे-मोती, जवाहरात इत्यादि तक सीमित मान लिया जाता है जबकि इसका असली अर्थ तब तक नहीं समझा जा सकता है जब तक हर वस्तु, पशु पक्षी, पेड़ पौधे, जीव जन्तु एवं इंसान से न लिया जाए जिसका हमारे जीवन में विशेष स्थान है जैसे संसाधनों में मानव, वन, जल, खनिज-लवण, पशुधन, कृषि धन इत्यादि शामिल हैं ! यह बात और है कि, आजकल जब भी 'धन' की बात होती है तो सबसे पहले नोटों की गड्डियां ही आंखों के सामने तैरती नज़र आती हैं ! खैर आइए आज 'धन' पर थोड़ी चर्चा हो जाए !

युगों पहले जब हमारे देश में राजा महाराजाओं का शासन हुआ करता था तब सबसे पहले सोने के सिक्कों का ही चलन शुरू हुआ (कागज़ के टुकड़ों का कोई मोल रहा होगा कहना मुश्किल है) ! यहां इस तथ्य को भी स्वीकार करने की आवश्यकता है कि, कागज़ के वजूद में आने से कई सदी पहले भारतवर्ष में ताम्रपत्र का अविष्कार हो चुका था फिर भी इस विषय पर किसी ने क्यूं नहीं सोचा ? आखिर क्या वजह रही होगी यह भी सोचने का विषय है ! जहां तक हम समझ सकते हैं कि, जैसा कि तब कागज़ का अविष्कार नहीं हुआ था और दूसरे ताम्रपत्रों पर शासन से अधिकार, आदेश , प्रमाण पत्र एवं प्रशंसा पत्र ही दिए जाते थे ऐसे में इस प्रकार की कोई भी कल्पना करना बेमानी होगी ! 

मानव सभ्यता के शुरुआती दौर में जो लोग लेन देन करते थे, वे एक सामान के बदले दूसरा सामान देते थे ! अलबत्ता हर वस्तु की कीमतों जरुर आंकी गई थी ! इस बात को बड़ी ही गम्भीरता से लिया गया था कि, वस्तु का दाम उसकी 'उपयोगिता' पर ही निर्धारित हो ! ऐसे में सिक्कों के चलन ने व्यापार को गति दी जब लोग अपनी एक जरुरत के लिए कुछ दूसरा तैयार रखने के लिए मजबूर न थे अथवा यह भी कह सकते हैं कि, कुछ पाने के लिए कुछ देने के लिए बाध्य नहीं थे ! यहां यह भी हम कह सकते हैं कि, कुछ चाहने के बदले कुछ दूसरी चीज देने में असमर्थ थे ! देखा जाए तो समाज में संचय करने की प्रवृत्ति तभी विकसित हुई होगी ! ऐसा भी संभव है कि, जो लोग राज-काज में व्यस्त रहते थे, जिन्हें सिक्कों के रूप में मेहनताना मिलता था और जो कुछ भी पैदा करने की स्थिति में नहीं रहे होंगे उन्होंने केवल धन संचय करने में ही भलाई समझी, कारण कि इसके बलबूते वे अपनी जरूरतें पूरी कर सकते थे और समाज में अपनी साख कायम रख सकते थे ! इसके अलावा वे लोग जो दूसरे राज्यों से व्यापार करते थे वे लोग भी 'धन' को सिक्कों के रूप में रखकर अपना काम आसानी से कर लेते होंगे ! ऐसे ही न जाने कितने लोग 'जो समय की मांग को देखते हुए अपनी रुचि निर्धारित किए होंगे, सफल रहे होंगे !' आज के परिदृश्य में भी यह विचार उतना ही सुदृढ़ है जितना उस समय रहा होगा ! 

यह जानने सुनने में कितना सहज लगता है कि, समाज में कुछ लोग बड़ी तेजी से आगे बढ़ गए होंगे परन्तु ऐसा सबके भाग्य में नहीं आया होगा ! खैर देखा जाए तो वे सभी लोग जिन्हें पैसे इकट्ठे करने में कोई रुचि नहीं रही होगी, कई मामलों में सुखी रहें होंगे और जो लोग वास्तविक सुख को जानने वाले थे, उन्होंने अलग राह अपनाई होगी इस बात में कोई संशय नहीं है ! सनद रहे यहां साधू सन्यासियों की बात नहीं हो रही है ! ऐसे लोगों के पास अन्य लोगों द्वारा अपनाया जाने वाला फार्मूला नहीं था अपितु जीवन में हर हाल मे सुखी रहने का फार्मूला अवश्य मौजूद था और वो ये कि 'धन की कोई आवश्यकता नहीं है परन्तु यदि है भी तो सिर्फ अपनी जरूरत पूरी करने के लिए है !' गौर करें तो इस छोटे से वाक्य में सम्पूर्ण जीवन का सार छिपा हुआ है ! कैसे? आइए जानते हैं...सबसे पहले कहा गया है कि 'धन की कोई आवश्यकता नहीं है' यदि आप गौर करें तो पहले हर व्यक्ति खुद कुछ न कुछ वस्तु तैयार करता था जिसे दूसरों को देकर बदले में दूसरा सामान लेता था तो ऐसे में पैसे की कोई जरूरत ही नहीं थी ! आगे कहा जा रहा है कि 'यदि है तो सिर्फ अपनी जरूरत पूरी करने के लिए है !' यह भी कटु सत्य है कि, 'पैसों की उतनी ही आवश्यकता है जितनी हमारी जरूरतें हैं !'

आज के समय में हम में से बहुत से लोग इस बात से इंकार करते मिल जाएंगे कि, यह लाइन तो बिल्कुल भी सही नहीं है ! हम यदि 'और' नहीं कमाएंगे तो भविष्य के लिए कैसे विश्वस्त होंगे ! जी हां आपकी बात बिल्कुल सही है कि, हमें अपना भविष्य सुरक्षित रखना चाहिए ! देखा जाए तो वो भी आपकी जरूरत ही है लेकिन धन कुबेर बनने की कोशिश करना और सही रास्ते से यदि संभव न हो तो उसके लिए ग़लत तरीके अपनाना जिससे समाज पर बुरा असर पड़े, इसे भी तो सही नहीं ठहराया जा सकता ! मेरा इससे पहले एक लेख है जिसका नाम है 'संचय करने की प्रवृत्ति' उसमें मैंने साफ़ साफ़ लिखा है कि, 'यदि आप एक नदी की तरह पानी का संचय करते हो जिससे लोगों का भला हो तो आपका संचय करना ठीक है लेकिन यदि कोठरी भरने के लिए संचय करते हो तो आपका लक्ष्य अनुचित है !' कृपया उस लेख को अवश्य पढ़ें जिससे कई सारी भ्रांतियां दूर होंगी, ऐसा मेरा मानना है !

आज यदि हम सब लोग किसी व्यक्ति के जीवन पर गौर करें तो पता चलेगा कि, पैसों की लालसा कम नहीं है ! ऐसे में इस लेख के क्या मायने ? बेशक ! कहने का मतलब यह है कि, जिनके जीवन का एकमात्र लक्ष्य केवल और केवल धन कमाना है उन्हें तो यह लेख रास आने से रहा लेकिन जो जीवन रुपी गाड़ी को सावधानी पूर्वक चलाना चाहते हैं और जो अपनी मंजिल पर बिना रुके, बिना थके पहुंचना चाहते हैं वे अलबत्ता इसका आशय समझ रहे होंगे कि, इस लेख में रुपया पैसा कमाने को मना नहीं किया जा रहा अपितु जरुरत से ज्यादा संचय करने की मनोवृत्ति को रोकने का प्रयास भर है ! आशा करता हूं कि, मेरा यह छोटा सा प्रयास आपको अवश्य पसंद आया होगा ! 

धन्यवाद !

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