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राम है बस राम है

वह न कोई धर्म है, न कर्म है, न ईश है न नाम है
मानव मन की सर्वोच्च आदर्श अवस्था ही 'राम' है।

जिसे क्रोध को जीत धैर्य धारण करना आ गया
निश्चित ही वह पूर्ण स्वरूप में राम को पा गया।

यदि मन में छल-कपट, लक्ष्य स्वार्थ की पूर्ति है
मंदिर में बसे राम, राम नहीं मात्र एक मूर्ति है।

कठिन समय में यदि मन पर नियंत्रण पा जाएँगे
तो निश्चित ही हमारे मनमंदिर में राम आ जाएँगे।

जिसका मन स्नेह, दया, सहिष्णुता का धाम है
उसके मन की दश दिशा में राम है बस राम है

©ऋचा दीपक कर्पे 


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