दिया जलाओ!
अंधियारे में सिमटी शाम, लेकर कोई मलाल!
कि आओ दीया जलाओ!
ढलते हुए सूरज के, आले से ले लो मशाल,
कि आओ दीया जलाओ!
कोना कोई नूर बिना देखना न छूट जाए
आंगन, ड्योढी, द्वार, जीना, हर जगह पट जाए
जर्रा जर्रा मिट्टी का बन जाए नूरे जमाल!..कि आओ૦
बूझे घर के चिराग सारे अगर किसी तूफान से,
अंधेरा पसरा हो अगर मायूसी के जाल से,
रूह जला कर खुद अपनी, पेश करो मिसाल!..कि आओ૦
चेहरा चेहरा चमक रहा है, जैसे चांद सितारे!
आँखें अाँखें लग रही है, झिलमिल जुगनू सारे!
हो गया है हर आंगन में एक-एक सूरज बहाल..कि आओ૦
क्यों बैठे हो आखिर,अपने घर में दुबककर तुम?
देखो नजारा रोशनी का, बाहर निकल कर तुम,
खुशियों को इजाजत दो अब, ना रखो मलाल!..कि आओ૦
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05/04/2020 आखिर बिलाखी