‘माँ तो माँ होती है ।।’ - रानी नारंग
माँ तो माँ होती है
प्रसव पीड़ा को सहकर माँ का अधिकार है पाती
नवजात का मुख देख सारी पीड़ा भूल जाती
फिर उसके साथ जीवन उसका चलने लगता है
वह हँसे तो माँ हँसे उसके दुःख से घबरा जाती
माँ तो माँ होती है
पूरी की पूरी पाठशाला समाई उसमें
अक्षरी ज्ञान के साथ-साथ व्यवहारिक ज्ञान का भंडार होती है
जीवन के कठिन राहों पर चलना सिखलाती
आन पड़े विपदा कोई ढाल बन खड़ी हो जाती
माँ तो माँ होती है
धरती-सी सहनशीलता आकाश का हृदय उसका
खुद काँटों पर चलकर भी बच्चों की राह सुखद बनाती
रिश्तों को निभाना आसाँ नहीं खुद टूटना पड़ता है
पर फिर भी वह हर रिश्ता बखूबी निभाती
रिश्तों की डोर बड़ी नाजुक होती है पर
रिश्तों को मजबूत बनाना माँ ही सिखलाती
मैंने देखा है माँ को
अपने तो क्या गैरों के लिए भी खड़ी रही सदा
अपने सामर्थ्य अनुसार करती रही मदद सदा
अपने पराए का भेद मिटाकर सब को गले लगाया उसने
हम बच्चे तो क्या ग़ैरों पर भी प्यार ही प्यार लुटाया उसने
आज माँ नहीं तो
माँ की पल-पल याद आती है
माँ बिना जैसे जिंदगी जी नहीं जाती है
यह दुनिया एक आग का दरिया है जैसे उसको संयम के साथ पार करना माँ ही सिखलाती
आज वह नहीं तो दिल में कुछ बिखरा-सा लगता है
जिसने चलना सिखाया है उसके बिन अब चलना खलता है
उसके बिना जीवन भी अब तो तपती रेत-सा लगता है
छोटा सा दुःख भी दिल पर भारी पत्थर लगता है
और आज मैं भी एक माँ हूँ
और चाहती हूँ अपनी माँ जैसा ही बनना
निःस्वार्थ भाव से जिस तरह जीवन जिया उसने
वही भाव प्रभु मेरे मन में भी ले आए
जो जीवन का पाठ पढ़ा गई माँ
अपना कर उसको जीवन सफल मेरा भी हो जाए
कदम-कदम चली जो साथ सबके
चलूँ मैं भी उसी की तरह
मेरे कारण दिल दुःखे ना किसी का
किसी की खुशी का कारण बन जाऊँ मैं
बस हृदय में प्यार-ही-प्यार भर कर उसके गुण अपनाऊँ मैं
दे दुआ, आज दूर कहीं से कहे 'रानी'
तेरे जैसी बन जाऊँ मैं
तेरे जैसी बन जाऊँ मैं।