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‘ऊर्जा किरणों का समास’ - डॉ सीमा शाहजी

रसोई में चूल्हे पर 

रोटियाँ सेंकती 

मेरी माँ का

लाल-लाल दमकता चेहरा मुझे साहस, मेहनत और विश्वास देता है

अँधेरों में टिमटिमाती ढिब्रियों में

मेरी माँ की चमकती दो आँखें

टपरियों में आने वाले 

तूफ़ानों के आघात-व्यवघात से 

भय मुक्त होने का मुझे आश्वासन देते हैं

कुत्ते भौंकते हैं 

बिललियाँ लड़ती हैं 

ताले टूटते हैं 

चीखें हवाओं में तैरती हैं 

नदियाँ लाल होती हैं 

आकाश फटता है 

धरती रोती है

मेरी माँ के चौकन्ने कान 

हरदम मुझे चौकस कर देते हैं

 

ह्रदय के अंतःस्थल पर 

मेरे बचपन के डर को

जब वह कस कर दबोच लेती है

स्नेह का बहता अमृत

पुष्ट होता संस्कार 

मुझे चमकते भविष्य का आभास देता है

परिवार के किनारों को

सुघड़ता से संवारते 

मेरी माँ के सधे हुए ठोस हाथ

उत्ताल तरंगों में 

कुछ-न-कुछ करने की तम्मना

मुझे 

विराट सत्य से 

स्थापित होने के तादात्म्य को 

सायास 

ऊर्जा किरणों का समास देते हैं

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