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॥ ईश्वर का प्रतिरूप ॥ - श्रीमती शारदा मिश्रा

माँ में ईश्वर का प्रतिरूप दिखाई देता है, 

माँ से ही घर संपूर्ण दिखाई देताहै।

 

घर -द्वार खुला, माँ के रहने से होता है, 

बिन माँ, बच्चों का अस्तित्व नहीं कुछ होता है ।

 

बच्चों पर माँ की ममता सदा बरसती है, 

माँ से मिलने को आँखें सदा तरसती है ।

 

जब ठोकर लगती, मुँह से ‘माँ’ ही निकलता है, 

माँ का दिल हर बच्चे के लिए पिघलता है।

 

माँ दूर रहे या पास, बच्चों में यादें बन बस जाती है, 

हर व्रत, उत्सव, त्यौहार में माँ की यादें हमें सताती है।

 

माँ बच्चों को दुखी देख द्रवित हो जाती है, 

माँ बच्चों की उन्नति देख गर्वित हो जाती है।

 

माँ के प्यार का मोल कहीं नहीं होता है, 

दरवाज़े पर खडी माँ सा कोई नहीं होता है।

 

माँ के आशीष से ही व्यक्तित्व संवरता है, 

माँ के लिए दुनिया का हर शख्स तरसता है।।

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