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‘मेरे जीवन की मधुमास’ - श्रीमती शोभारानी तिवारी

माँ तुम धरती हो आकाश हो

मेरे जीवन की मधुमास हो

ज़िन्दा हूँ क्योंकि दिल धड़कता है

मेरे हर धड़कन की श्वास हो।

गीली मिट्टी को आकार दे

जो चाहे गढ़ लेती हो

बिना पढ़ी पर मन के

भावों को पढ़ लेती हो

सूत्रधार बन रिश्तों में मिठास भर

पतझर ख़ुद सहकर बहार देती हो

युगों-युगों से सृष्टि का इतिहास हो

मेरे जीवन की मधुमास हो।

मर्यादा की चादर ओढ़े फ़र्ज़ निभाती हो

चुनौतियों को स्वीकार कर

आगे बढ़ती जाती हो

पन्ना धाय बन राजधर्म निभाती हो

प्रेम-परीक्षा देने विष का प्याला भी पी जाती हो

तुम मेरे दुःख-सुख का एहसास हो

मेरे जीवन की मधुमास हो।

तेरे चरणों में जन्नत चारों धाम है

रंगीन हैं सपने, सुहानी शाम है

तेरे आँचल में सारा संसार है

माँ शब्द में पूरा ब्रम्हाण्ड है

दूर होकर भी तुम मेरे पास हो

मेरे जीवन की मधुमास हो।

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