‘माँ की यादों का पिटारा’ - सुषमा व्यास ‘राजनिधि’
आज मैंने खोला है माँ की यादों का पिटारा।
हाँ मैंने खोला है माँ की यादों का पिटारा।
उसमें है हमारे सुख-दुःख की यादों का बसेरा।
उसमें हैं माँ का हँसता हुआ ममतामयी चेहरा।
उसमें है जीवन के अनमोल पलों का खजाना।
उसमें ना कोई कुंजी है ना कोई ताला।
हाँ मैंने खोला है माँ की यादों का पिटारा।
सुकोमल, श्वेतवर्णी माँ के नयनों में स्नेह की बहार।
मुख पर चन्द्रकिरणों सी स्निग्धता
और माथे के कुंकुम का दैवीय सौन्दर्य श्रृंगार।
मृदु समीर के झोंके सी उनकी वाणी।
सुख और संतोष से रचा मर्मस्पर्शी संसार।
हाँ मैंने खोला है माँ की यादों का पिटारा।
वो माँ के आँचल से मसाले की महक।
वो माँ की सौंधी रोटी को खाने की ललक।
वो माँ के खट्टे-मीठ्ठे अचार का स्वाद।
वो माँ के खाने में बरसता आग्रह का प्यार।
हाँ मैंने खोला है माँ की यादों का पिटारा।
वो माँ का सबको खिला के भूखा रह जाना।
वो माँ का दो ही साड़ी में जीवन बिताना।
वो माँ का अपने ही आँसू ख़ुद से छिपा लेना।
वो माँ का अपनी हँसी से घर की हर कमी को ढाँक देना।
हाँ मैंने खोला है माँ की यादों का पिटारा।
माँ से ही सीखा है अपनों के लिये जीना।
कड़कती धूप में शीतल छाँव बनकर रहना।
संतोष और धैर्य से जीवन की राह अपनाना।
माँ की सीख में ही ईश्वरीय वरदान पाना।
हाँ मैंने खोला है माँ की यादों का पिटारा।
उसमें है हमारे सुख-दुःख का बसेरा।
हाँ मैंने खोला है माँ की यादों का पिटारा।