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‘माँ की इच्छा’ - डॉ ऊषा गौर

हर माँ की इच्छा से

हर बच्चे को है पैगाम

ध्यान लगा पढ लेना इसको 

करना है क्या तुमको काम

समय मिले तो झाँकना

उस माँ के अंदर 

छिपा रखे हैं दिल के अंदर 

जिसने कितने दुःख और दर्द 

भूल ना जाना उस आँचल को

बचपन में था जो तुम्हारा घर

झाँकना फिर उन सूनी आँखों में

प्यार के समंदर लहराते थे कभी जहाँ    

ढूँढना अपने सुकून को 

देखना वो तुम्हें मिलता है कहाँ 

फ़ुर्सत मिले तो लेना

हाथों में हाथ

महसूस करना उन झुर्रियों को 

जिन्होंने दिया हर पल तुम्हारा साथ

चूम लेना फिर उन हाथों को 

बचपन में गिरने से पहले

जिसने लिया तुम्हें थाम

उठने से लेकर सोने तक

जिसके होंठों पर रहा बस तुम्हारा नाम 

बरसों रखा जिसने ध्यान

दिया जीवन का पूर्ण ज्ञान 

बंधी रही उसकी हर साँस तुमसे

लगाई जिसने हर आस तुमसे

समय मिले तो प्यार करना   

उस माँ को अथक परिश्रम करती रही जो

तुम्हें मंजिल तक पहुँचाने को

तुम्हारी उत्पत्ति प्रकृति की देन थी 

तुम्हारा विकास भी प्रकृति का नियम था

मगर तुम्हें तुम्हारे स्व का परिचय कराना 

उस माहौल की देन था 

उस माली का जुनून था  

ग़र ना रखा होता उसने तुम्हें अपनी छत्रछाया में 

निखर न पाती तुम आज अपनी काया में

बिसरा ना देना अपने उस माली की मेहनत

रात-दिन एक करके जिसने तुम्हें पाला है

सिर्फ़ वही तो है जो तुम्हें समझने वाला है

सिर्फ़ तेरा माली तेरा रखवाला है 

जो ताउम्र साथ निभाने वाला है

लंबी यात्रा में जाने से पहले उसके 

जी लेना कुछ लम्हे संग उसके 

भर लेना बाँहों में प्यार से उसको

उन्हीं लम्हों के साथ फिर तू उम्र बिताने वाला है

उन्हीं लम्हों के साथ फिर तू उम्र बिताने वाला है 

माँ के जैसा प्यार करने वाला

ना फिर से मिलने वाला है

नमन है माँ तेरे कदमों में 

मेरे सब सद्कर्म... 

माँ तेरी पूजा ही है मेरा धर्म

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