‘माँ तुम्हारा दिया नाम’ - विनिता तिवारी
माँ मुझे तुम्हारे स्पर्श का
आभास भी नहीं है!
पर मैं आज सोचती हूँ,
तुम्हारे नहीं रहने पर
मेरे व्यक्तित्व में कुछ
गुणों का समावेश
हुआ है जैसे
मैं बहुत छोटी थी
पर स्कूल हो या
कहीं और.
जब मेरे कानों में
यह शब्द पड़ता था,
‘इसकी माँ नहीं है!’
यहाँ तक शादी
के बाद भी
जब भी मुझे कोई
अतिरिक्त प्यार
मिलता था,
वह मुझे असहनीय
पीड़ा देता था !
सहानुभूति जैसे शब्द
नकारात्मकता
महसूस कराते थे !
मैं ध्यान भटकाने लगी
लोगों का सहानुभूति से!
और सोचने लगी
माँ ने जो नाम दिया है,
कुछ सोच कर ही तो
दिया होगा !
नाम को सार्थक करने
के प्रयास में लग गई,
जो आज भी जारी है!
विनम्रता मुझे एक हद
तक बांधे रखती है,
कोशिश में रहती हूँ
प्यार पाने के पहले
प्यार दूँ!
तत्पर रहती हूँ,
किसी का मानसिक,
आत्मिक संबल
बनने का!
ताकि सहानुभूति जैसे
शाब्दिक ज़हर से
औरों को भी कोसों दूर
रख सकूँ!!
माँ मैं तुम्हारी तरह
सौंदर्य की
प्रतिमूर्ति तो नहीं
पर मैं ध्यान देती हूँ,
अन्यों के द्वारा तुम्हारे
बारे में कहीं
बतकईयों पर
जो मेरे मन को तुम्हारे
आगोश में पाती हैं!