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शिक्षक गणों की प्रेरणास्पद बातें आज भी मार्गदर्शन करती हैं -डॉ कल्पना जैन तारारत्न


हर बच्चे के माता पिता ही उसकी प्रथम पाठशाला होते हैं ।वास्तव में मैं अपने माता पिता की कल्पना की प्रतिकृति हूं ।
मेरी प्रथम पाठशाला मेरा शासकीय प्राथमिक विद्यालय था। घर से 50 कदम की दूरी पर मेरा विद्यालय था। घंटी बजते ही मैं दौड़ कर विद्यालय पहुंच जाती ।मेरी मां भी अन्य शासकीय विद्यालय में शिक्षिका थी, इसलिए मुझे विद्यालय में विशिष्ट स्थान प्राप्त था। प्रथम कक्षा में मैडम मुझे गोद में बिठाकर कहानी सुनाती थी। मेरी मां का विद्यालय घर से ज्यादा दूर था कभी-कभी मैं मां के विद्यालय चली जाती थी। वहां पर खुद शिक्षिका बन बच्चों को पढ़ाने लगती। उस समय टीचर्स के पास छड़ी जरूर होती थी मैं छड़ी लेकर पाठ ना पढ़ने वाले बच्चों की पिटाई कर देती थी और इसका जो आनंद आता वह अकथनीय होता था। स्कूल के शिक्षक पास में ही रहते थे तो कभी कभी उनके घर जाकर उनका काम करवाती थी, उसमें बहुत मजा आता था। स्कूल की हर गतिविधि मैं मुझे भाग लेना अनिवार्य होता था, शिक्षक की बेटी जो थी। यहीं से मुझे स्टेज पर  निर्भीक होकर बोलना आ गया। लंच में मैं दौड़ कर घर आ जाती थी, जो भी खाना हो खाकर स्कूल चले जाते। कक्षा पांचवी में, मैं ब्लॉक में प्रथम आई थी। अब मेरा प्रवेश शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय रहली में हो गया। यह विद्यालय कक्षा छठवीं से 11वी तक था। इस विद्यालय के गेट पर शेर बना हुआ था इसलिए इसे शेर वाला स्कूल कहते थे। आज भी 40 साल बाद वह शेर गेट पर ज्यों का त्यों बना हुआ है।अब स्कूल में हम सब मिलकर खूब बेर एवं इमली खाया करते। एक-दो टीचर को हम लोग मिलकर  खूब परेशान करते क्योंकि उनका व्यक्तित्व कुछ ढीला ढाला था, उस समय कक्षा नौवीं से विषय का चयन करना होता था। मैंने जीव विज्ञान समूह का चयन किया। पढ़ाई में मैं हमेशा अव्वल रहा करती थी, इसलिए शिक्षकों की प्रिय थी। मेरी जीव विज्ञान की नई शिक्षिका शर्मा मैडम का छोटा सा बेबी था। हम लोग पढ़ते कम उसको ज्यादा खिलाते तो खूब डांट पड़ती। भौतिक शास्त्र एक सर पढ़ाया करते थे, हम लोग बहुत अच्छे से उनकी क्लास में पढ़ते थे। एक अलग सा आकर्षण था उनमें।उसी समय हमारे विद्यालय में जबलपुर  से नई प्राचार्य मेडम आई थी। वह एकदम मॉडर्न थी। स्लीवलेस ब्लाउज हैवी मेकअप हम लोग उन्हें ही देखते रहते। एक दिन मैंने उनके पास खड़े होकर उनकी साड़ी छू ली उन्हें इस बात का एहसास हो गया और फिर मेरी धमाधम पिटाई हुई।मैं स्कूल में सांस्कृतिक नायक के पद पर थी। मंच संचालन मैं ही करती थी। उन दिनों हमने दीपदान एकांकी का स्टेज शो किया था। मैंने उसमें उदय सिंह का अभिनय किया था, जो आज तक मेरे मन मस्तिष्क में अंकित है।अलग-अलग व्यक्तित्व के धनी मेरे शिक्षक गणों की प्रेरणास्पद बातें आज भी मेरा मार्गदर्शन करती हैं। पता नहीं आज वह कहां है, परंतु एक बार मैं उनको नमन करती हूं। इस प्रकार कक्षा ग्यारहवीं प्रथम श्रेणी में पास कर मैंने विद्यालय से विदा ली और उच्च अध्ययन के लिए सागर विश्वविद्यालय सागर में प्रवेश लिया।
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