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भाग 2

अमर क्या वास्तव में आपने मुझे माफ कर दिया,, अपने आंसुओं को रोकने का प्रयास करते हुए सोनिया ने कहा
,, क्या आप को मुझ पर विश्वास नहीं है,,। सोनिया के कंधे को सहलाते हुए कहा।
,, जिस का खुद का विश्वास डगमगा गया हो,,।
,, ऐसा नहीं कहते, सोनिया प्रत्येक व्यक्ति के साथ ज़िंदगी में कभी न कभी ऐसा वक्त आता है जब व्यक्ति का विश्वास अपने आप पर क्या भगवान पर से भी उठ जाता है,,,। एक दार्शनिक की भाती अमर ने कहा।
,, हां अमर शायद तुम ठीक ही कह रहे हो, लेकिन,,
,, लेकिन क्या सोनिया,,।
,, अमर, मेरी बेटी ,,।
,, कहां है नीरू,,। अंदर ही अंदर तड़फ गया अमर
,, अमर, नीरू नफरत करती हैं मुझसे,,।
,, सोनिया मैं मिलना चाहता हूं नीरू से,,। अमर की आंखों में आसूं आ गए
,, नीरू जयपुर है,,।
,, तुम कैसी मां हो सोनिया एक बेटी को भी अपने पास नही रख सकी,,।
,, कैसे रखती अपने पास, मेरी बेटी, मेरी हो कर भी मेरी नही है,,।
,, मै अपनी बेटी से मिलना चाहता हूं सोनिया, अभी,,। सुनते ही थोड़ी परेशान हो गई सोनिया।
,, लेकिन अभी कैसे, मैं बहुत ही थकी हुई हूं,,।
,, मैं तुम्हें अपनी गाडी में ले कर चलूंगा, पिछली सीट पर लेट कर चलना,,। बेटी से मिलने की तड़फ ने बैचेन कर दिया अमर को, और सोनिया को सहारा दे कर उठाना चाहा लेकिन सोनिया के पैरों ने खड़े होने से मना कर दिया।
अमर ने बड़ी टेबल पर रखी बेल को दबाया, तभी एक वार्ड बॉय अंदर आया।
,, जी सर,,।
,, मैम को व्हील चेयर पर ले कर पार्किंग में चलो,,।
बेटी से मिलने की चाहत में अमर चंद मिनटों में ही अपनी गाडी के पास आ गया और सोनिया को व्हील चेयर से उतार कर गाडी की पिछली सीट पर लिटा दिया।
,, नीरू मेरी बेटी, मैं आ रहा हूं तुम्हारे पास,। सोचते हुए अमर ने गाडी को स्टार्ट करके सड़क पर दौड़ा दिया।
बेटी की बचपन की हरकत याद करके आंखो से आंसू पलकों के तटबंध तोड़ कर गालों पर बहने लगे।मन किया कि जैसे अभी उड़ कर अपनी बेटी के पास पहुंच जाऊं और अपनी बेटी को बाहों में भर कर उसे वो सारा प्यार दूं, जो उसका अधिकार था और है। सफर के चार घंटे अमर के लिए चालीस साल के बराबर हो गए। दिल की तड़फ, बार बार आंसुओ में बदलने लगी। न जाने कब जयपुर आ गया।
,, सोनिया, जयपुर आ गया, अब कहां,,।
,, मदर टेरेसा मेमोरियल ट्रस्ट का हॉस्टल है,,। सुनते ही अमर ने मोबाइल निकाल कर नेवी गेशन पर ऑन कर दिया और लोकेशन पर गाडी को दौड़ा दिया। लगभग चालीस मिनट के बाद गाडी हॉस्टल की पार्किंग में, अमर ने हैंड वॉच में टाईम देखा, बाद दोपहर के चार बजे है।
,, सोनिया हम हॉस्टल आ गए हैं,,। गाडी का अगला गेट खोलते हुए अमर ने कहा।
,, मुझे सहारा दे कर उठाओ,,। धीमी आवाज में कहा सोनिया ने। अमर ने सोनिया को सहारा दे कर गाडी की पिछली सीट पर से खड़ी की, और फिर हॉस्टल वार्डन के ऑफिस तक।
,, आईए मैम, मे आई हेल्प यू,,। वार्डन के ऑफिस में आने के साथ ही वार्डन ने कहा।
,, मैम मै नीरू,,।
ओह यस, आप नीरू की मदर, लेकिन आप तो जानती हैं ना कि नीरू आप से मिलना नही चाहती ,,।
,, आप ठीक कह रही हैं मैम, लेकिन आज नीरू के पापा, नीरू से मिलना चाहते हैं,,। बेहद थकी हुई आवाज में कहा सोनिया ने।
,, लेकिन आज से पहले नीरू के पापा कभी,,। आधे अधूरे शब्दों में कहा वार्डन ने और अमर की ओर देखा।
,, यह एक लंबी कहानी है मैम आप केवल नीरू को फोन करके यह कह दो कि आपके पापा आए हैं,,।
,, ठीक है,,। और हॉस्टल वार्डन ने लैंड लाईन फोन पर नीरू के नंबर को डायल किया।
,, हैलो,,। दूसरी ओर से नीरू की आवाज आई।
,, हैलो, नीरू बेटे आपके पापा आए हैं,,।
,, क्यों झूठ बोलती हो मैम,,। नीरू की आवाज में एक कसक सुनाई दी।
,, नही बेटे मै सच कह कह रही हूं,,। वार्डन ने विश्वास के साथ कहा।
,, मुझे विश्वास नहीं हो रहा है मैम,,। एक अनोखे अहसास भरी आवाज में कहा नीरू ने।
,, आ जाओ वेटिंग रूम में, और अपनी आंखो से देख लो,,। कहते हुऐ वार्डन ने रिसीवर रख दिया।
,, मैम वेटिंग रूम,,। अमर ने पुछा
,, मेरे ऑफिस के राइट में,,। सुनते ही अमर ने सोनिया को सहारा दीया और ऑफिस से निकल कर वेटिंग रूम में आ गए। तभी नीरू भी आ गई। नीरू को देखते ही अमर की आंखों के सब्र का बांध टूट गया और आंखो से आंसू झरने की तरह बहने लगे, यही हाल नीरू का भी हो गया।
,, पापा,,। चीखते हुए नीरू अमर की ओर दौड़ पड़ी।
,, नीरू मेरी बेटी,,। आंसुओ के बीच अमर ने दोनों बाहें फैला दी और नीरू अपने पापा की बाहों में समा गई। जैसे वक्त ठहर गया हो, दोनों की आंखों से आंसू नदी बन कर बहने लगे, लगभग आधा घंटा दोनों इसी तरह से खड़े रहें।
,, पापा, कहां चले गए थे आप, मुझे छोड़ कर, आपने एक पल भी यह नहीं सोचा कि आपकी एक बेटी भी है,,। आंसुओ से भीगी आवाज में कहा नीरू ने।
,, बेटी मुझे माफ कर दो,,। आंसुओ में दब कर रह गई अमर की आवाज। बाप बेटी का यह मिलन देख कर सोनिया की आंखें भी बरबस ही बहने लगी।
,, बेटी,,। सोनिया ने अपने आंसुओ को पौंछते हुऐ पुकारा, लेकिन नीरू ने सोनिया के शब्दों को सुन कर भी अनसुना कर दिया।
,, बेटी नीरू, तुम्हारी मां,,। इस बार कहा अमर ने।
,, नही पापा, मत कहो इस औरत को मेरी मां, यह मां के नाम पर कलंक है,,।
,, ऐसा नहीं कहते बेटी,,।
,, नीरू अगर हो सके तो मुझे माफ कर दो,,। सोनिया के शब्दों में एक कसक उभर आई।
,, आपको माफी, नही कदापि नहीं, आपने वो सब किया है जो कोई नारी नही कर सकती,,।
,, बेटी जो भी सजा तुम मुझे देना चाहतीं हो, वो सब मुझे स्वीकार है लेकिन एक बार केवल एक बार मुझे मम्मा कह कर पुकार लो,,।
,, ठीक है पुकार लूंगी आप को मम्मा कह कर मेरी एक शर्त है,,।
,, मुझे तुम्हारी हर शर्त स्वीकार है,,।
,, तो फिर मेरे वो सब साल वापस कर दो, जो मैं अपने पापा के साथ गुजारती, मैं अपने पापा के साथ खेलती और अपने पापा की बाहों को झूला बना कर झूलती,,। नीरू के शब्दों में एक नफरत का भाव उभर आया।
,, बेटी नीरू,,।
,, मत कहो मुझे बेटी, आपके लिए पैसा ही सब कुछ है, पैसा ही पति है और पैसा ही बेटी,,।
,, बेटी,,। तड़फ उठी सोनिया
,, अगर आपको जरूरत है तो केवल और केवल अपने भाई की, अपने भाई के लडके की, मेरी या मेरे पापा की जरूरत नहीं है आपको,,।
,, बेटी मुझे माफ कर दो,,। रोते हुए कहा सोनिया ने।
,, नही नही नही आपने मेरा बचपन छीना और छीनी है मेरे पापा की जवानी, जब मेरे पापा को आपकी जरूरत थी, तब आपने मेरे पापा को अकेला छोड़ दिया, नही सोनिया जी, मैं चाह कर भी आपको माफ नहीं कर सकतीं, चली जाओ मेरे सामने से,,। कहते कहते चीख पड़ी नीरू
,, बेटी कैसी भी हो यह तुम्हारी मां है, माफ कर दो इसे,,।
,, पापा आप यह सब कह रहे हो, क्या आप भूल गए कि आपके साथ इस औरत ने क्या सलूक किया था, बेशक मैं उस समय छोटी थी, लेकिन मुझे सब याद है,,।
,, बेटी माफ करने वाला बडा होता है,,।
,, नही बनना मुझे बडा, मेरा दिल आपकी तरह से बडा नही है, सच तो यह है कि यह औरत न एक अच्छी पत्नी बन पाई और न एक अच्छी मां,, मुझे केवल और केवल अपने पापा चाहिए, इतने साल मुझ से दूर रहें, मुझे वो सारा प्यार दे दो पापा जो आप मुझे देना चाहते थे,,। नीरू के शब्दों में फिर से तड़फ उभर आई।
,, बेटी वक्त की मार ऐसी थी कि,,।
,, वक्त की मार नही पापा, इस औरत की मार, पापा इस औरत को मेरे सामने से हटा दो, मुझे नफरत है इसकी शक्ल से भी,,। अमर के शब्दों को काटते हुए कहा नीरू ने।
,, बेटी आप तुम्हारी मां बहुत ही दुखी हैं,,।
,, होना ही चाहिए, भगवान इस को ऐसी सजा देगा कि,,। आगे के शब्द रोक लिए नीरू ने,।
,, बेटी मैं तुम्हारी मां को ले कर विदेश जा रहा हूं इलाज के लिए,,।
,, पापा मत कहो इसे मेरी मां , मैं चाह कर भी इसे माफ नहीं कर सकतीं,,।
,, बेटी मेरा निवेदन है,,।
,, पापा आपके लिए मैं अपनी जान भी दे सकती हूं, लेकिन प्लीज इसे माफ करने के लिए, क्या कसूर था मेरा कि इसने मुझे, आपसे अलग रहने के लिए मजबूर कर दिया,,। यह सुन कर बेबस हो गया अमर। और नीरू नफरत भरी नजरों में देखती रही।

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