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1.कालियादेह महल का कुंड

कालियादेह महल का कुंड

  "सुनिता.. और कितनी देर लगेगी?" मै सोफे पर बैठते हुए बोला। लगभग बीस मिनट से मेरी पत्नी सजने संवरने में लगी हुई थी।

   बहुत दिनों से सुनीता मुझसे किसी पिकनिक स्पॉट पर घूमाने ले जाने का कह रही थी‌। मै अपने काम में व्यस्त रहता था। आज मेरा दफ्तर जाने का मूड नहीं था तो मैंने सोचा आज थोड़ा घूमना फिरना हो जाए। मैने दफ्तर में काॅल करके अपनी तबियत खराब होने का बहाना बनाकर छुट्टी ले ली। लेकिन महारानी बाहर आने का नाम ही नहीं ले रही थी।

      लगभग पंद्रह मिनट बाद सुनीता बाहर आयी। वह लाल रंग की साड़ी में बहुत खूबसूरत नजर आ रही थी। उसने चेहरे पर हल्का मेकअप, माथे पर छोटी सी बिंदी लगा रखी थी। मैने उसे इतना सजा संवरा शादी के बाद आज ही देखा था। मै उसे देखता ही रह गया।

   " अब देर नहीं हो रही है क्या?" सुनीता मुस्कुराते हुए बोली तो मेरी तंद्रा टुटी। 

   "अं..क्या?" मै सकपका गया। सुनीता हँसने लगी। दोनों हँसते खिलखिलाते हुए बाहर निकले।

  " आपने ये‌ तो बताया ही नहीं कि हम घूमने के लिए कहाँ चल रहे हैं?"

  " पहले सिनेमा हॉल में बैठ कर मुवी देखेंगे। वो मुवी जो कल तुम ट्रेलर देखकर बोल रही थी ना चलने का? फिर वहां से सीधे के.डी. पैलेस चलेंगे।"

      हम दोनों कार में सवार होकर निकल पड़े।

   

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    शाम की पाँच बज चुकी थी। सुबह मंदिर में दर्शन करने के बाद दोनों सिनेमा हॉल पहूंच गए थे। मुवी खत्म होने पर दोनों ने बाहर रेस्टोरेंट में ही खाना खाया। फिर गाड़ी के.डी. पैलेस की ओर दौड़ा दी। 

     "सुहाना सफर और ये मौसम हसीं।

      हमें डर है हम खो ना जाएं कहीं।।" कार में ये गाना बज रहा था। हम मियां बीवी उसके साथ साथ गुनगुना रहे थे। के.डी. पैलेस पर पहुंच कर मैने कार एक साइड में पार्क करी और सुनीता के साथ अंदर बढ़ गया। अंदर ज्यादा लोग नहीं थे। मै सुनीता के साथ वहीं खाली पड़ी एक बेंच पर जाकर बैठ गया। 

      के.डी. पैलेस उज्जैन शहर की पुरातन धरोहर है। इस पैलेस का असल नाम कालियादेह महल था। इसे लोगों ने शाॅर्टकट में के डी पैलेस कहना शुरू कर दिया है। इस भव्य महल के बाहर एक बहुत बड़ा कुण्ड है। जो बावन कुण्ड  के नाम से प्रसिद्ध है। इस कुण्ड के बारे में लोगों का मानना है कि रात के समय इस कुण्ड में आत्माओं का वास रहता है। हर महीने की चौदह और अमावस्या के दिन यहां पर आस पास के गांव से लोगों की भीड़ उमड़ती है। गांववासियों में विश्वास है कि जो भी व्यक्ति खास तिथियों पर यहां स्नान करता है उसे भूत-प्रेतो की समस्या से निजात मिल जाती है। किसी व्यक्ति पर कोई बुरा साया हो तो यहां नहाने से वह बुरा साया उसे छोड़ कर यहीं इस कुण्ड में ही कैद हो जाता है। इस तरह की कई बातें लोगों के मन में बैठी हुई थी।

    थोड़ी देर बेंच पर बैठकर बातें करने के बाद हम दोनों बावन‌कुण्ड के किनारे आकर कुण्ड में पैर लटका कर बैठ गये और एक दुसरे से प्यार भरी बातें करने लगे। तभी अचानक से मुझे अपने पैर पर किसी के स्पर्श‌ का अहसास हुआ। मैने नीचे कुण्ड में देखा।

  " क्या हुआ?" सुनीता ने पूछा

 " कुछ नहीं, लगता है कोई मछली थी। अभी पैर से टकरा कर गयी।"

 " मछली? लेकिन अपने पैर तो पानी से बहुत ऊपर है फिर मछली कैसे…" सुनीता की बात पूरी भी नहीं हुई कि एक गार्ड उनकी ओर दौड़ते हुए पहुंचा। 

 " भाई साहब,  छः बज चुकी है। अब यहां पर भूतो की महफ़िल सजने वाली है। कृपया यहाँ से लौट जाएं। अन्यथा आपके साथ अनहोनी हो सकती है।" गार्ड बोला

  " भूतो की महफ़िल? फिर तो हम जरूर देखकर जाना चाहेंगे। हमने कभी भी ऐसी महफ़िल नहीं देखी है।" मैं हँसते हुए बोला

 " हमारा काम था आपको सचेत करना बाकी आपकी मर्जी" बोलकर वह वापस लौट गया। हमने आसपास अपनी नजरें दौड़ाई। हमें वहाँ कोई भी नजर नहीं आया। शायद गार्ड की बात सुन कर लोग डर कर वापस लौट गए थे। हमें वहां कुछ भी असामान्य नजर नहीं आ रहा था।

  लेकिन कुछ तो था वहां जो हम समझ नहीं पा रहे थे। अचानक वहां का वातावरण बदलने लगा। वहां हवा की रफ़्तार बढ़ गई।

    तभी कुछ अजीब सी आवाजें हमारे कान में पड़ी। सुनीता डर कर मेरे सीने से लग गयी। उसकी नजर कुण्ड के पानी मे पड़ी तो वह चीख पड़ी। मैने उसकी नज़रों का अनुसरण कर नीचे देखा। मेरे पैरों के नीचे पानी में दो हाथ बाहर आते हुए दिखे। जिनकी चमड़ी नहीं थी केवल हड्डियां नजर आ रही थी। मैने झट से अपने पैर बाहर निकाल लिये। तभी कोई चीज सनसनाती हुई चीज ‌हमारे पास से गुजरी। हमारी हालत खस्ता हो गई। अब हमें उस गार्ड की बात पर भरोसा होने लगा था।

  " आप चलिए यहां से, मुझे डर लग रहा है।" सुनीता बोली। 

  " हाँ, चलो।"  कहकर हम पीछे पलटे। सफेद कपड़े में दो औरतें हमे इसी कुण्ड की ओर आती नजर आयी। मै सुनीता के साथ उस तरफ बढ़ा।

  " माँ जी, आप वापस लौ…" कहते कहते मै चुप हो गया।  उन‌ दोनों औरतों के चेहरे झुर्रियों से भरे थे। उनकी आँखें नजर नहीं आ रही थी। आँखों की जगह गहरे गड्ढे थे। हम जिन औरतों को ख़तरे से बचाने के लिए आगे आए थे वो स्वयं ख़तरा थी। हम मन‌ ही मन‌ भगवान‌ से प्रार्थना करने लगे। उन औरतों ने हमारी ओर अपने हाथ बढ़ाए। हम घबरा गये। 

   " रूक जाओ गोरी! जाने दो उन्हें।" उन दोनों ने पीछे मुड़कर देखा। पीछे गार्ड खड़ा था। उसकी बात सुनकर दोनों हमारे रास्ते से हट गयी। हम तेज कदमों से चलते हुए गार्ड तक पहुंचे।

  "धन्यवाद।"

 "जल्दी निकल जाओ।" गार्ड बोला। 

   "हम्म" हम बाहर की ओर बढ़ने लगे। 

 "तुमने देखा उस गार्ड को वो..वो.." सुनीता बोली

 "हाँ, शायद वह उन दोनों आत्माओं के बारे मे जानता होगा।"

   "नहीं, वो गार्ड भी भू... वो देखो।" सुनीता ने एक ओर इशारा किया। 

   वह गार्ड बाहर की ओर आ रहा था। लेकिन यह क्या? उसके तो पैर नजर ही नहीं आ रहे थे। वह जमीन से कुछ ऊपर उड़ रहा था। मैने बिना देर किए गाड़ी बाहर की ओर बढ़ा दी।

  मैंने भैरवगढ़ पहुंचने तक कार फूल स्पीड में ड्राइव की। रास्ते भर दिमाग में वहीं नज़ारा घुम रहा था।

   " सुनीता अब मैं समझ चुका हूँ कि इस दुनिया में कुछ ऐसी शक्तियां भी है जिसे हम अंधविश्वास समझते हैं।" 

   " हाँ, अब मुझे भी विश्वास हो गया है।" सुनीता ने हामी भरी।

  संसार में कुछ चीजें समझ से परे होती है।

    


  


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