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Ocean war

 

...शाम  का वक़्त!
समुद्र की  भयानक लहरें जोर-जोर से उठा पटक मचा रही थी। लोगो का हुजूम तट पर बढ़ता ही जा रहा था। बात ही कुछ ऐसी थी। कई सारे चैनलों के रिपोर्टर्स भी मोर्चा संभाल चुके थे।  सभी की निगाहें समुद्र तट से दस कदम की दूरी पर पानी मे उपस्थित उस  अकल्पनीय दृश्य पर जमी हुई थी।
सूचना पाते ही भारी पुलिस फोर्स भी तैनात हो चुकी था। उनकी रायफल्स भी एकदम निशाने पर तनी हुई थी। यद्यपि वहां खतरे जैसी कोई बात दिखाई नहीं पड़ रही थी पर मनुष्य तो आखिर मनुष्य है।
दसियों स्टीमर्स पर एक्सपर्ट गोताखोर अपनी सभी तैयारियों के साथ उस स्थान से लगभग सौ-सौ मीटर की दूरी पर चक्कर काट रहे थे, उन्हें बस जरूरत थी एक आदेश की..
वहां इतनी अधिक भीड़ जमा हो चुकी थी कि अब धक्का-मुक्की तक कि नौबत आ चुकी थी। लोगो ने अपने - अपने  मोबाइल  से वीडियो भी बनाना शुरू कर दिया था। भारी पुलिस फ़ोर्स का भी कोई खास असर नहीं था।
उन्ही के बीच मे एक  बीस -बाइस साल का गोरे रंग और   छरहरे बदन   का एक युवक  भी आगे आने और उस दृश्य को देखने की भरसक कोशिश कर रहा था, उसकी लम्बाई भी औरो से कुछ ज्यादा थी।
नाम था ….'गुलाब'
अभी वह काफी पीछे था तो उसे कुछ दिख भी नही रहा था, वह आगे जाने की सारी कोशिशें कर चुका था पर सब नाकाम हो गयी।
अचानक उसके मन मे एक विचार कौंधा ….
उसने  ऊपर उछल कर सामने खड़े एक लंबे तगड़े आदमी के कंधों पर पैर जमाया और तुरन्त पलक झपकते ही आगे की तरफ छलांग लगा दी।
एकदम आगे तो नही पर पहले ही लोगो की असावधान भीड़ पर 'भद्द' से गिरा जिससे वहां अफरातफरी मच गई और वह जगह भी एकदम खाली हो गयी,  लोगो का इस  अचानक की आफत से भयभीत होना लाजिमी भी था।
वह उठकर कपड़ो की धूल झाड़ता हुआ मन ही मन मुस्कुराता  उठा।
चूंकि वह स्पोर्ट्स में नियमित हिस्सा लिया करता था सो ये उछल कूद उसके लिए मामूली बात  थी।
“जलपरी!”
उसने जैसे ही उस दृश्य को देखा उसके मुह से अनायास ही निकल पड़ा।
“जलपरी! जलपरी! ”
गुलाब की बात सुनकर जैसे भीड़ को भी कुछ चेतना हुई, वो भी चिल्लाने लगे।

हाँ, वह जलपरी ही थी, जिसकी कल्पना सदियों से होती आई है वह आज सामने थी।
उसकी कमर के ऊपर तक का हिस्सा किसी खूबसूरत स्त्री जैसा था और नीचे का मछली की पूंछ जैसा, वह पूर्णतया नग्न थी।  उसके हाथ मे वक्ष से सटा हुआ एक नवजात शिशु था, जो कि उसका अपना कत्तई प्रतीत नही हो रहा था।
वह मानवीय शिशु था। वह  बच्चे को बुरी तरह अपने वक्ष से सटाये काफी डरी सहमी सी बड़ी ही कातर दृष्टि से इधर-उधर देख रही थी।
वह घिर चुकी थी क्रूर मानवो से ,जो अब उसका तमाशा बनाने पर तुले थे।
….तभी
स्टीमरों पर मुस्तैद गोताखोरों में हलचल बढ़ गयी शायद उन्हें आदेश मिल चुका था। वो सभी अपने अपने जाल लेकर  चारो तरफ से तैयार हो चुके थे।
गुलाब  एकटक जलपरी को ही निहारे जा रहा था, जब उसकी नजरें उसके कातर  नेत्रों पर पड़ी तो वह सहम सा गया। वह उसे इन सबसे बचा लेना चाहता था पर कैसे?  यही समझ नहीं आ रहा था उसे, समय कम था।
'लोगो से रिक्वेस्ट करना मूर्खता होगी' उसका दिमाग तेजी से काम करने लगा, सहसा उसने पास खड़े एक सिपाही पर जंप लगा दी,  इससे पहले कि कोई कुछ समझ पाता राइफल गुलाब के हाथ में थी और वह सिपाही उसके निशाने पर।
“रुक जाओ! अगर किसी ने भी जरा सी भी हरकत की तो मैं इस सिपाही को शूट कर दूंगा, आई रिपीट, शूट कर दूंगा इसे।” गुलाब ने जोर-जोर से चिल्लाते हुए कहा।
एक पल को वहां पर सन्नाटा छा गया, सभी स्टीमर्स जहां के तहां रुक गए। जलपरी की आंखों में भी थोड़ी राहत दिखी, लेकिन वह क्षणिक थी।
"धाय! धाय! धाय!....
लगातार तीन फायर हुए,

                    ■■■
इसके कुछ समय पहले-
“रुक जा बेटी! वहां मत जा, वे मानव हैं मानव, वे बहुत ही क्रूर, निर्दय और खतरनाक होते हैं अगर उनकी नजर हम पर पड़ गई तो हमारा जीना दूभर कर देंगे।” मां जलपरी ने चेतावनी देते हुए अपनी बेटी को समझाना चाहा।
“लेकिन मां! हम तो उनके जैसे निर्दयी नहीं हो सकते ना, देखिए वह बच्चा कब से रो रहा है पता नहीं किस विपत्ति में होगा, अगर हम भी उन की तरह व्यवहार करेंगे तो हम में और उन में क्या अंतर रह जाएगा, आप चिंता मत करिए मैं जल्द ही वापस आ जाऊंगी।” नील जलपरी अपनी मां से इतना कहकर बिना उनकी कोई बात सुने समुद्र के किनारे की तरफ तैर पड़ी।
“नील! नील! रुक जाओ नील, वहां मत जाओ, वह जगह तुम्हारे लिए खतरे से खाली नहीं है।” मां जलपरी चीखती रह गई, लेकिन तब तक नील समुद्र की गहराइयों से निकलकर ऊपरी सतह की तरफ बढ चुकी थी।
जैसे-जैसे वह किनारे की तरफ बढ़ती जा रही थी, बच्चे के रोने की आवाज और भी पास आती जा रही थी। ऐसा नहीं था कि उसने अपनी मां की आवाज नहीं सुनी लेकिन उस वक्त उस बच्चे का रोना सुनकर वह अपने आप को रोक नहीं पाई।
जब वह किनारे पर पहुंची तो वहां का दृश्य देखकर हतप्रभ रह गई। एक नवजात शिशु किनारे  रेतीली भूमि पर सफेद कपड़े में लिपटा हाथ पैर पटकता हुआ रो रहा था।
नील ने आसपास नजर दौड़ाई वह एरिया बाकी जगह से थोड़ा सुनसान था। शाम का वक्त था। वहां से कुछ दूरी पर ही बहुत सारे कपल्स, फैमिली मेंबर्स इस वक्त का लुफ्त उठा रहे थे। किसी का भी ध्यान इस तरफ नहीं था।
नील ने उस बच्चे को अपनी गोद में उठा लिया और बड़े ही दुलार से उसे चुप कराने लगी मानो वह उसका अपना खुद का बच्चा हो। ममतामयी कोमल स्पर्श पाकर वह बच्चा भी थोड़ी ही देर में चुप हो गया।
अब नील के सामने समस्या यह थी कि इस बच्चे का क्या करें, पानी में तो उसे ले नहीं जा सकती थी, और दूसरा कोई रास्ता भी उसे नहीं सूझ रहा था। वह इसी उधेड़बुन में फंसी हुई थी कि कुछ लोगों की  नजर उस पर पड़ गई,  और फिर तमाशबीनो का हुजूम उसकी तरफ उमड़ पड़ा।
नील की घबराहट बढ़ने लगी, उसे रह-रहकर मां की बातें याद आने लगी, अब वह ना तो बच्चे को लेकर समुद्र में जा सकती थी और ना ही उसे छोड़ना चाहती थी, अजीब स्थिति में फंस चुकी थी वह, बच्चे को छोड़कर भागने की इजाजत उसका दिल कत्तई नहीं दे रहा था।
इस वक्त वह असहाय और लाचार हो चुकी थी।

 


क्रमशः
सूरज शुक्ल

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