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भाग 1

सरला देवी आज बहुत खुश थी। और हो भी क्यों न, आज उनके घर में उनके घर की लक्ष्मी ने क़दम जो रखें थे। सभी लोग उनकी बहू रिशिमा की तारीफों के पुल बांध रहे थे। उनका बेटा जीवेश आज उनके लिए जीवन का सबसे खूबसूरत क्षण लेकर आया था।

सरला देवी अपने पति सोमेश्वर के साथ सभी मेहमानों की खातिरदारी में व्यस्त थे कि तभी उनकी छोटी बहन बिमला जो हर‌ बात पर अपनी बड़ी बहन सरला को नीचा दिखाने की कोशिश में लगी रहती थी, उनके कानों में आकर कहती है,

“दीदी, यह मैं क्या सुन रही हूं कि आपने रिशिमा के घरवालों से दहेज में कुछ नहीं लिया? हमारी बहू मिहिका तो अपने साथ सोना, गाड़ी और बंगला लेकर आई है, इकलौती बेटी है न अपने माता-पिता की! आखिर उनके पास जो भी है वह उनकी बेटी का‌ ही तो है।”

सरला थोड़े सख्त लहज़े में अपनी बहन से कहती है,

“देखो बिमला, तुम अच्छे से जानती हो कि मुझे ऐसी बातें बिल्कुल भी पसंद नहीं है। हम अपनी बहू को बेटी समझकर अपने घर में लेकर आए हैं। वह हमारे घर की लक्ष्मी है। हम लोग उसे बिल्कुल भी परेशान नहीं करेंगे क्योंकि जिस घर में लक्ष्मी की इज्ज़त होती है वहां हमेशा सुख शांति और समृद्धि बनी रहती है।”

बिमला ने मुंह बनाते हुए कहा,

“वह तो ठीक है दीदी लेकिन आपने यह कैसी लड़की से अपने बेटे की शादी करी है। एक तो एम ए की पढ़ाई में सुना है कि टॉप किया है, ऊपर से वह वकील बनना चाहती है और मैंने सुना है कि जीवेश ने उसकी पढ़ाई का सारा खर्च खुद उठाने का फैसला किया है। वह भी तब जब आपकी बहू दहेज में एक पैसा भी लेकर नहीं आई है।”

सरला ने उसे समझाते हुए कहा,

“देखो हमारी बहू वकील बनकर समाज के लोगों का भला करना चाहती है तो इससे अच्छी बात और क्या हो सकती है? जब वह वकील बनकर आप जैसे लोगों के काम आएगी तो फिर आप जैसे लोग ही मेरा शुक्रिया अदा करेंगे, देख लेना!”

बिमला ने आंखें घुमाते हुए कहा,

“देख‌ लेंगे!”

बिमला मन ही मन सरला को नीचा दिखाने की तरकीब सोचने लगती है और चेहरे पर झूठी मुस्कान चिपका कर सभी मेहमानों के सामने खुश होने का नाटक करती है जिससे किसी को भी उसके इरादों की भनक तक न पड़े।

बिमला ने अपने खाने की थाली नान, पूरी, मटर पनीर, पालक पनीर, दही बड़ा और इमली की मीठी चटनी के‌‌ साथ साथ रसगुल्ले से भर दी थी और अब उसे इतनी भारी थाली को उठाने में दिक्कत हो रही थी। तभी रिशिमा ने उनकी थाली पकड़ते हुए कहा,

“आप चिंता न करें, मैं आपकी थाली टेबल तक पहुंचा दूंगी।”

रिशिमा ने थाली टेबल पर रखी तो बिमला एक और थाली ले आई जिसमें सिर्फ़ दो नान, मटर पनीर और एक रसगुल्ला था। बिमला ने वह थाली रिशिमा को पकड़ाते हुए कहा,

“यह लो, तुम्हारी थाली! अब अगर तुम मेरा साथ देना चाहती हो तो तुम्हें भी तो खाना पड़ेगा मेरे साथ!”

रिशिमा बिमला के साथ बैठकर खाना खाने लगती है कि सरला की नज़र अपनी बहू पर पड़ जाती है। वह मन ही मन सोचती है,

“कहीं मेरी बहू के मन‌ में मेरे खिलाफ कोई ग़लत विचार न भर दे।”

वह रिशिमा से कहती है,

“तुम्हें जीवेश के साथ खाना खाना चाहिए था न कि मेरी बहन के‌ साथ!”

रिशिमा खाना छोड़कर उठने लगती है तो बिमला उसे बिठाते हुए कहती है,

“कोई बात नहीं, पूरी ज़िंदगी उसने जीवेश के साथ ही बैठकर खाना खाना है, आज अगर उसकी मौसी के साथ बैठकर खा लिया तो कौन सा गुनाह कर लिया?”

सरला कुछ कहे बिना वहां से चली जाती है और बिमला मन ही मन सोचती है,

“अब मज़ा आएगा जब सरला अपनी बहू से मन ही मन चिढ़ने लगेगी क्योंकि उसे यही लगेगा कि उसकी बहू उससे ज़्यादा मेरी बात सुनती है।”

रिशिमा आने वाले तूफ़ान से अंजान चुपचाप अपना खाना खाती है और फिर बिमला से आशीर्वाद लेकर सरला को ढूंढते हुए पंडाल‌ के बीच में पहुंच जाती है।

सरला जीवेश के साथ तस्वीर खिंचवा रही थी कि तभी उसकी नज़र रिशिमा की तरफ़ पड़ती है और वह जीवेश से कहती है,

“देख लो, तुम्हारी पत्नी अभी से मेरी बातों को अनसुना करने लगी है और आज बिमला के सामने इसने मेरे आदेश को मानने से मना कर दिया। इसे सुधारने के लिए मुझे जिया को बुलाना ही पड़ेगा।”

जीवेश ने झुंझलाते हुए कहा,

“अगर आपको यही सही लगता है तो ठीक है लेकिन जिया दीदी को अपने घर की तरफ़ ध्यान देना चाहिए। प्रशांत जीजा जी उनके खर्चों से वैसे ही परेशान हैं।”


“कोई बात नहीं! आखिर हमारा जो कुछ भी है उसपर जिया का भी हक़ है इसलिए इस घर में आकर हक़ जताने से उसे कोई नहीं रोक सकता है क्योंकि शायद तुम भूल रहे हो कि जिया मेरे भाई नवीन की आखिरी निशानी है,” सरला ने कहा तो जीवेश चिढ़ते हुए मन ही मन कहने लगा,

“जानता हूं मां, आप यह बात मुझे भूलने ही कहां देती हो?”


नई सोच की परंपरा - भाग 1 (रचना नौडियाल)

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