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'आलोकमयी माँ’ – डॉ. संध्या जैन

आलोकमयी  माँ

तुमको वंदन!

 

सब मिलकर के

करते हैं अभिनंदन!

 

माँ के समान नहीं कोई रत्न

जिसने समझा करके प्रयत्न!

 

सब कुछ अर्पण कर देती वह

निज बालक वश दुख सहती वह!

 

तीर्थंकर, गौतम, गाँधी आए

माँ ने ही उनको दुलराया!

 

तीनों लोक में तुम-सा नहीं

अति पावन,

तुम माँ अति महान्!

 

माँ है गुणों की खान

माँ है हम सबकी शान!

 

माँ में है ममत्व का सागर

जो चाहे भर ले निजत्व की गागर!

 

माँ की छत्रछाया से भी

हमने सब कुछ पाया

जिससे दिल हरषाया!

 

माँ! तुमको सलाम

माँ! तुमको प्रणाम।

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