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‘माँ... निर्मल ममतामयी सहेली!’ - रश्मि सक्सेना

तुम्हीं में समाई है

सृष्टि सम्पूर्ण।

तेरी ही ममता से होती

रचना परिपूर्ण।

 

असहनीय पीड़ा सहकर

दिया मुझे जन्म,

तुम ही मेरी पहली गुरू

तुमसे मिले संस्कार।

 

माना,

बहुत कम समय रहा

हमारा साथ,

मगर आज भी है

मुझे वे सभी क्षण याद।

 

बिना कहे समझ जाती थीं

तुम मेरे मन की

हर बात,

मेरी ख़ुशी, मेरे ग़म

और सारे जज़्बात।

 

माँ !

चली क्यों गयी 

असमय ही हमें

छोड़कर अनाथ।

आई नहीं क्या जरा-सी दया

मुझ पर!

सोचा भी नहीं कि

कैसे जीऊँगी,

जब तुम नहीं होगी पास

मेरे साथ।

 

नहीं सोचा तुमने

कैसे करूँगी

जीवन के रास्ते

मैं पार।

चली आओ न पास

अब तो इक बार।

 

मिल सके मुझे तेरे

ममता के आँचल की छाँव

पोंछ दो

अब मेरे इन बहते हुए आँसुओं को

रो लेने दो

गले से लग के ज़ार-ज़ार।

 

माँ..!

रहना नहीं चाहती हूँ

बिन तेरे 

मैं अकेली।

एक तुम ही थी

मेरे जीवन की

सुलझी हुई पहेली।

जीवन के

कठिन पथ की

निर्मल ममतामयी सहेली।

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