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‘माँ! सुनो न...’ - रुचि बागड़देव

माँ तुम साथ नहीं हो 

पर साथ देती हो,

दिखाई नहीं देती 

पर देख रही होती हो,

कहती नहीं 

पर सुन रही होती हो,

लेती कभी कुछ नहीं 

पर सदा देती रहती हो,

बताओ ना इतनी दुआएँ 

कहाँ से लाती हो!

माँ! सुनो न...

वही लोरी अब मैं गाती हूँ

जो तुम गाती थी

वही कहानी भी सुनाती हूँ

जो तुम सुनाती थी

एक था राजा एक थी रानी

नन्हा भी वैसा ही है

जैसा तुम्हारा कान्हा

इठलाता है मचल जाता है

गीत सुनाऊँ चुप हो जाता

माँ! सुनो न...

मैं भी तुम्हारी तरह अब माँ हूँ।

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