‘अपनी माँ जैसी’ - संध्या रायचौधरी
माँ, तुम मेरी माँ हो इसलिए
दुनिया की सबसे अच्छी माँ नहीं हो
तुम सबसे अच्छी हो क्योंकि जो ज्ञान
हज़ारों-लाखों की फ़ीस देने के बाद
गुरु कक्षाओं में देते हैं,
वो तुम क्षण भर में बिना मोटी-मोटी किताबें पढें सिखा देती हो, समझा देती हो
कैसे... मैं जान ही नहीं पाती तुम्हारा वो गूढ़ मंत्र
व्यंजनों की क़तारों में से भर-भर कर प्लेट में उड़ेलने के बाद भी जीभ तृप्त नहीं हुई कभी
वही, तुम्हारी बघारी हुई दाल से कैसे चट-से न जाने कितनी रोटियाँ उदर में समा जातीं
हर दिन अलसुबह बिना अलार्म कैसे जाग जाती हो माँ, सबसे पहले और
रात सबके सो जाने के बाद अपने बिछौने पर जाती हो
माँ... सत्य है, मैं तुम्हारी तरह तो नहीं बन सकती लेकिन एक लालसा है
कि लोग कहें ‘तुम बिलकुल अपनी माँ जैसी हो...।’