‘मेरा प्यार ही तेरे साथ है’ - डॉ. स्वाति सिंह
माँ!
ना शब्दों से हो वर्णन तेरा
न चित्रों से हो चित्रण पूरा
ना बन सके कोई प्रतिकृति तेरी
ना किसी अक्स में तू समाती है
हर कोशिश, मेरी हर कोशिश
अधूरी, और अधूरी ही रह जाती है
कुछ ना कुछ कसर, हर बार रह जाती है
तेरे चेहरे की मीठी मुस्कान
हर दर्द को हर लेती है
जो रोज़ सवेरे उम्मीद की लौ जगाती हैं
वो तू है माँ, वो तू ही है
जो शाम पड़े
विश्वास का दीपक जलाती है
एक सच्चाई है तू उस चाँद, सूरज की तरह
जो ज़िंदगी में रौशनाई भर जाती है
तू परिवार की मीठी महक है
रसोई की सौंधी ख़ुशबू है
त्यौहार की तू चमक है
पूरे घर की तू ही रौनक है
तू हम सबकी प्यारी जान है
और तू ही हमारी पहचान है
नौ माह गर्भ में रखती तू
फिर बच्चे को सर्वस्व
अपना समर्पण कर देती तू
भगवान के दर्शन तू कराती है
तेरे होने से बात मेरी
भगवान तक पहुँच पाती है
मैं क्या कहूँ
कैसे कहूँ
मेरी बात अधूरी रह जाती है
शब्द कम पड़ जाते हैं
चित्र अधूरे रह जाते हैं
अक्स ना कोई मेरे पास है
बस प्यार मेरा
मेरा प्यार ही तेरे साथ है माँ