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‘माँ तुम लोरी हो.....।’ - वंदना पुणतांबेकर

माँ तुम लोरी हो, तुम गीत हो।

घर का तुम, संगीत हो।

 

माँ तुम आँचल की ठंडी छाँव हो।

घर-आँगन की तुलसी हो।

सूरज की पहली किरण से

घर जगमगाती हो।

शाम तक ना जाने कितने काम कर जाती हो ।

माँ तुम लोरी हो.....। 

 

हर पल गुलों की तरह मुस्कुराती हो।

माँ तुम पूजा हो, प्रसाद हो।

हर पल मेरे आस-पास हो।

ज्योतिर्मय हैं, घर तुमसे।

तुम ही उजियारे की आस हो।

माँ तुम लोरी हो.....। 

 

हर ख़ुशी हर पल में,

खनकती हैं, चूड़ियाँ तुम्हारी।

इन खनकते चूड़ियों के हाथों की मिठास हो।

माँ तुम हर-पल

हर तरफ़ मेरे आस-पास हो।

माँ तुम लोरी हो.....।

 

माँ तुम हर सुख-दुःख में मुस्काती हो।

मन की पीर छुपाती हो। 

सब का मान करना।

तुम हमको सिखाती हो।

माँ तुम घर की होली हो

तुम दिवाली हो।

 

माँ तुम लोरी हो.....।

तुम गीत हो।

घर का तुम संगीत हो।

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