रचना के विवरण हेतु पुनः पीछे जाएँ रिपोर्ट टिप्पणी/समीक्षा

‘माँ के खिलौने’ - वंदिता श्रीवास्तव

घर का 

वह कोना

सजा है माँ के खिलौने से

माँ 

अपने बचपन को

ढूँढती हैं 

लाख के गोटे 

भूसे भरी बनारसी गुड़िया

बचपन के प्यारे पल

लकड़ी की चिडियाँ की टक-टक

याद दिलाती हैं 

बचपन में दाना खाती 

गौरैयों की

छोटी पतंग का स्पर्श 

देता है उसे असीम सुख 

भाई की उर्जा मिलती थी

तभी उसे बचपन में 

गुड़िया के स्पर्श में 

बहिन की याद बसी है

जा बैठती है माँ 

अपने खाली क्षणों में 

उदासी के पलों में 

अपने प्यारे 

खिलौनों के पास 

जो अहसास देते हैं उसे 

वह भी है

अपनी माँ के आँचल 

पिता की छाँव 

के पास

माँ के आँगन की

दुनिया में 

बचपन की सतरंगी छाँव में 

माँ के खिलौने...

टिप्पणी/समीक्षा


आपकी रेटिंग

blank-star-rating

लेफ़्ट मेन्यु