डरते डरते लड़कों को थप्पड़ मारना शुरू किया -हेमलता शर्माभोली बैन
सन् 1987 की बात है । मुझे आज भी याद है-मेरी वह पाठशाला, जहां मैंने कक्षा पहली से लेकर पांचवी कक्षा तक पढ़ाई की । आगर मालवा कस्बे (वर्तमान में जिला बन चुका है) का वह छोटा सा जैन प्राथमिक विद्यालय जो एक धर्मशाला भी हुआ करता था । हम बच्चों की तो भारी मुसीबत होती थी । नीचे विद्यालय और ऊपर धर्मशाला थी तो कोई दिन ही ऐसा गुजरता था जब पूड़ी, पकौड़ो और रायते की खुशबू न आ रही हो । हम बच्चों का ध्यान पढ़ाई में कम और भोजन की खुशबू में ज्यादा लगता था ।
पाठशाला ले जाने के लिए भी विद्यालय की तरफ से मोलकरनी (आया) आती थी, जो हमें घर से पाठशाला और छुट्टी होने पर घर छोड़ा करती थी पाठशाला परिसर में एक बड़ा इमली का पेड़ था जो आज भी है । उस पेड़ के नीचे गिरे चव्वे (नवजात इमली) बीनना हम बच्चों का प्रिय खेल हुआ करता था । इसके अतिरिक्त भोजन की छुट्टी में पकड़म पाटी, छुट्टी जंजीर और नदी-पहाड़ हमारे प्रिय खेल हुआ करते थे । बात उस समय की है जब मैं कक्षा तीसरी में पढ़ती थी । मैं पढ़ने में शुरू से ही तेज रही तो पाठशाला में किसी शिक्षक से न तो कभी डांट पड़ी और नहीं पिटाई हुई । हालांकि पहले विद्यालयों में बच्चों की पिटाई आदि पर आज की तरह रोक नहीं हुआ करती थी । सभी शिक्षक अच्छे थे लेकिन भटनागर मैडम और कुमान सिंह सर दोनों ही मुझे अत्यंत प्रिय थे, क्योंकि वह मुझे बहुत स्नेह करते थे एवं प्रशंसा भी । हालांकि स्नेह तो सभी शिक्षक करते थे, लेकिन वे दोनों कुछ ज्यादा ही ।
एक दिन पाठशाला लगी तो भटनागर मैडम ने कोई पाठ याद करने को दिया और कहा भोजन की छुट्टी के बाद में सभी से पूछूंगी । जो बच्चा नहीं बताएगा उसे सजा मिलेगी। यह सब बातें उस समय आम हुआ करती थी माता-पिता भी शिक्षक को बच्चे को सुधारने की पूरी छूट देते थे और बच्चे के समक्ष शिक्षक से बोल कर जाते थे कि यह पढ़ाई न करें तो इसकी अच्छी पिटाई कीजिएगा । अब बच्चा पूरी तरह असहाय हो जाता था और शिक्षक पाठशाला समयावधि में सर्वाधिकारों से लैस हो जाते थे, लेकिन उस समय के शिक्षक भी बच्चों से इतना स्नेह और अपनत्व रखते थे कि डांटने-मारने की नौबत कभी कभार ही आती थी और बच्चे भी अपने गुरुजनों को उतना ही आदर देते थे । आदर्श प्रकार का वातावरण हुआ करता था, जो आज की पाठशाला में कहीं दिखाई नहीं देता है। एक बात और उस समय कक्षा में टेबल कुर्सियां नहीं हुआ करती थी हम बच्चे टाट पट्टी पर ही बैठा करते थे एक पंक्ति लड़कों की और दूसरी लड़कियों की होती थी जिसमें पहले पहुंचने वाला बच्चा अपना बस्ता रखकर जगह रोक लिया करता था ।
फिर आ जाते हैं हम उस पाठ पर जो भटनागर मैडम ने हम सब बच्चों को दिया था भोजन की छुट्टी के बाद भटनागर मैडम ने आकर लड़कों की पंक्ति में आखिरी छोर से पूछना शुरू किया कुछ बच्चे तो तड़ी मार कर घर पहुंच चुके थे । एक एक कर सभी लड़के खड़े हो गए लेकिन प्रश्न का उत्तर नहीं दे पाए तब मैडम ने मेरी ओर देखा और कहा- "हेमलता मुझे तुमसे उम्मीद है तुम बता दोगी ।" मुझे तो उत्तर आता ही था तो मैंने झट से खड़े होकर बता दिया । मैडम ने ताली बजाकर मुझे शाबाशी दी और फिर कहा कि इन सभी खड़े हुए लड़कों को एक एक थप्पड़ मारो यह मेरे लिए अप्रत्याशित-सा था, क्योंकि इससे पूर्व कभी ऐसा हुआ नहीं था मैंने डरते डरते लड़कों को थप्पड़ मारना शुरू किया लेकिन मैडम ने बीच में ही रोक कर कहा - "ऐसे नहीं जोर से थप्पड़ मारो नहीं तो मैं तुम्हें मार कर बताऊंगी कि थप्पड़ कैसे मारा जाता है?" अब तो यह सोच कर कि कहीं सच में ही मुझे थप्पड़ ना पड़ जाए जितनी ताकत थी बटोर कर सबको कस-कस कर थप्पड़ मारे । एक शैतान लड़के ने दिल पर ले लिया और वही धीरे से धमकी भरे स्वर में बोला- "हेमलता यह तुमने ठीक नहीं किया इसका बदला चुकाना पड़ेगा ।" मैंने झट से मैडम से शिकायत कर दी फिर मैडम ने उसको दो थप्पड़ और मारे और समझाइश देकर हम सबको छोड़ दिया और छुट्टी की घंटी बजते ही हम सब अपने बस्ते लेकर घर जाने के लिए 'जेल से छूटे कैदियों की तरह' जान बचाकर दौड़ पड़े ।
उस घटना के बाद मेरे मन में इतना भय बैठ गया कि मैं दो-तीन दिन तक उस शैतान लड़के के डर से स्कूल ही नहीं गई क्योंकि वह हमारे मोहल्ले के बाहर ही रहता था । आज वह लड़का मेरे भाई का दोस्त है । उसके बच्चे मुझे बुआजी कहकर लाड़ लड़ाते हैं । जब भी वह घर आता है तो मुझे घूरता है और मैं उससे आज भी बात नहीं करती हूं । शायद वह घटना हम दोनों के ही बाल मन पर अमिट छाप की अंकित हो गई है जिसे न तो वह भूल पाया है और ना ही मैं । यह इस बात का प्रमाण है कि बालमन कितना कोमल होता है और ऐसी कतिपय मजाक-मजाक में हुई घटनाएं भी अपना दूरस्थ प्रभाव छोड़ जाती है । मुझे आज भी याद आती है वह मेरी पाठशाला ।
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राजेंद्र नगर, इंदौर, मध्य प्रदेश