पाठशाला के प्रथम दिन नाम संस्करण हुआ - कुसुम सोगानी
पाठशाला वह स्थान है, जहाँ से प्रत्येक शिशु बालक बालिका को सामाजिक व पश्चात् व्यावसायिक शिक्षा प्रारंभिक व्यावहारिक ज्ञान की प्राप्ति होती है। पाठशाला को विद्यालय या स्कूल भी कह सकते हैं। यहाँ से शिक्षा लेकर विद्यार्थी अपने भविष्य को उज्ज्वल बनाते हैं।
मैंने अपनी प्राथमिक शिक्षा सरकारी स्कूल से प्राप्त की है। बात बहुत पुरानी है। तब हमारे शहर में सरकारी स्कूलों की मान्यता प्रबल होती थी। केवल बालिकाओं के लिए शहरवार दो या तीन स्कूल ही थे। बाकी कुछ म्युनिसपैल्टी के व जाति आधार पर भी स्कूल थे पर सब संयुक्त शिक्षा केन्द्र थे।
मेरे स्कूल या पाठशाला का नाम महारानी लक्ष्मीबाई प्राथमिक कन्या पाठशाला था। यहाँ कक्षा 1 से कक्षा 4 तक की कक्षाएँ लगती थीं। पाठशाला सुबह आठ से दोपहर 12 बजे तक लगती थी पर मौसमानुसार समय परिवर्तन भी होता था।
मेरे पिताजी शहर के प्रतिष्ठित गणमान्य व्यापारिक व्यक्ति थे। उनके साथ मुनीम गुमाश्ते व सहायक कार्य करते थे। उन्हीं सहायकों में से एक आज के ऑफिस बाॅय की तरह हैल्पर था। उसका नाम हसीब मियाँ था। वो मुस्लिम था, पर हम सब उसे मियाँ ही बोलते थे। उसे कुछ थोड़ा बहुत उर्दू लिखना पढ़ना तो आता था, पर वो हिन्दी बिल्कुल नहीं जानता था।
पाँच वर्ष की होने पर पिताजी ने मुझे पाठशाला में दाखिला दिलाने का विचार किया।
शाला जुलाई में खुलती थी, तब पिताजी ने उचित तारीख पर पाठशाला में दाखिला लेने के लिए मुझे सेविका से तैयार करवाने को कहा। नई फ्राॅक, नये रिबिन, नया बस्ता देकर मेरा मनोबल बढ़ाया गया। उस दिन तथाकथित मियाँ के साथ ड्रायवर गाड़ी लेकर स्कूल भेजा गया। यद्यपि स्कूल बहुत पास था, परंतु मर्यादाएँ थीं उस वक्त। (तब माँ पिता का साथ जाने का चलन नहीं था)
जब हम पाठशाला पहुँचे तो मैंने देखा कि बाहर से परकोटानुमा दिखने वाला क्षेत्र था, जिसमें लकड़ी का बड़ा दरवाजा लगा था। अंदर जाने पर एक बड़ा सा चौक रूपी मैदान था। चौक के बीचों बीच एक गोल स्टेज बना था, जहाँ पर तिरंगा झण्डा का खंबा लगा हुआ था। में चारों ओर ईंटों की घेराबंदी कर खूबसूरत क्यारियाँ थीं, जहाँ हरे भरे पौधे, छोटे छोटे वृक्ष व पुष्प खिल रहे थे।
चौक में छात्राएँ एकत्र थीं। वहाँ सामूहिक प्रार्थना गाई जा रही थी।
‘‘हे प्रभु आनंददाता ज्ञान हमको दीजिए .........’’ मेरे जीवन की प्रथम व सुरीली प्रार्थना थी ये जो मुझे अभी तक सीखने पर विवष करती है। ये प्रार्थना मेरे संस्मरण का अहम् हिस्सा है, तत्पष्चात् सीनियर छात्राओं ने नारा लगाया -- ‘‘जय हिन्द -- जय हिन्द’’, ‘‘भारत देश अमर रहे’’, ‘‘स्वतंत्रता अमर रहे’’।
मेरे लिये बिल्कुल अभिनव प्रयोग था ये ,नारे, झण्डा वंदन, प्रार्थना। मेरी जिंदगी की पहली अनुभूति थी। बस यहीं से तो सफर शुरु हुआ था पाठ पढ़ने का।
प्रार्थना होने के बाद बड़ी बहनजी हाॅल नुमा ऑफिस में बैठीं व वहाँ कक्षा पहली के लिए दाखिला लेने वालों को बुलवाया गया। तब लाइन या क्रमांक का कोई सिस्टम नहीं होता था। मियाँ के साथ मैं भी बड़ी बहनजी के समक्ष उपस्थित हुई।
बहनजी ने कई बार मियाँ को देखा, फिर मुझे देखा, वो पशोपेश में दिखीं, क्योंकि मियाँ बिना दाढ़ी बनाये, गंदा सा लग रहा था, वो समझ तो गई, फिर पूछा ये कौन है ? मेरे बोलने के पहले ही मियाँ बोला, बड़ी मुन्नीबाई हैं हमारी। मालिक की लड़की। इनको भरती कर लो।
नाम क्या है ?
मुन्नी बाई। मियाँ बोला।
मुझे घर में बडी़ मुन्नी ही कहते थेऔर मेरी छोटी बहन को छोटी मुन्नी!!
(घर में करने वाले बाई लगाकर बोलते थे)
अरे ये घर का नाम होगा। स्कूल में क्या रखना है ? बड़ी बहन जी ने पूछा?
मुझे मियाँ ने बोलने का मौका ही नहीं दिया। असल में मेरे पहले ही मेरे ही दूर परिवार की एक लड़की का दाखिला हुआ था, उसका नाम कुसुम सुनकर मियाँ ने नाम बताया ‘‘कुलसुम’’, कुलसुम रख दो।
बहनजी चौंकी । पूछा - पिताजी का क्या नाम है ?
मैंने कहा चैनसुखजी पाटनी। उन्हें समझते देर नहीं लगी और उन्होंने नाम रख दिया ‘‘कुसुम’’।
और इस तरह मेरे प्रथम पाठशाला के प्रथम दिन नाम संस्करण हुआ - ‘‘कुसुम’’।
मेरी प्राथमिक पाठशाला का नाम था महारानी लक्ष्मीबाई प्राथमिक कन्या पाठशाला और इस पाठशाला में मैं चौथी कक्षा में कुसुम पाटनी नाम से जानी गई।
इसी तरह इस पाठशाला में हर शनिवार आधा दिन स्कूल लगता था। इस दिन पढ़ाई कम, एक्टिविटी ज्यादा होती थीं। इसमें बाल सभा, क्रीड़ाएँ, आर्ट वर्क व संगीत का पीरियड लगता था।
स्कूल के पहले हफ्ते में ही संगीत का पीरियड बाल सभा में लगा। बहनजी सबको क्रम से खड़ा कर कह रहीं थीं कि गाना गाओ। जब मेरा नंबर आया तो मुझे कुछ गाना याद नहीं आया, पर पिताजी मंदिर में गाना सिखाते थे हमें, मैंने वही गा दिया - ‘‘तू तो सो जा बारे वीर.......’’। गाना सुनाते मैं रोने भी लगी पर मेरी आवाज जादू सा काम कर गई और पहले हफ्ते से ही मैं गीत गाने के लिए स्थान बना चुकी थी।
उस प्राथमिक पाठशाला ने मुझे नाम, इनाम, सम्मान, अभिमान, शिक्षा, आधार दिया। मेरी नींव वहाँ से ही पड़ी। मुझे हमेशा लगता था कि पाठशाला थोड़ी दूर हो ताकि हम घर से बेफिक्र रहें व पाठशाला बहुत पास थी।
पिताजी हमें अपनी कार ड्रायवर से स्कूल भेजा करते थे। स्कूल सुबह आठ बजे लग जाया करती थी, परंतु मैं सुबह सोकर जल्दी नहीं उठती थी, और स्कूल में प्रायः विलंब कर देती थी, इस कारण बहनजी की प्रायः डाँट खाती थी।
एक सप्ताह तो ऐसा बीता कि मैं रोज ही लेट होने लगी, तब टीचर ने मेरी शिकायत चिट्ठी लिखी व मुझे देकर कहा कि इस पर मैं अपने पिताजी से हस्ताक्षर कराके लाऊँ।
घर वापसी पर मैंने पिताजी को वो लेटर नहीं बताया डाँट के डर से व इसलिये सिग्नेचर भी नहीं कराये। घर में सबको बताया कि स्कूल लगने का टाइम आधा घण्टा लेट हो गया है, इसलिये ड्रायवर को आधा घण्टा देर से छोड़ने के लिए बुलाया।
बिना हस्ताक्षर कराये स्कूल जाने की हिम्मत मुझमें थी नहीं, साथ ही अपमानित होने का खौफ भी था, अतएव मैं स्कूल से कुछ पहले उतर कर ड्रायवर को वापस भेज देती।
इसके बाद मैं स्कूल न जाकर वहाँ से लौटकर शाला से किसी और रास्ते पर एक राम मंदिर था, वहाँ जाकर बैठने लगी। यह जगह बड़ी सुरक्षित, सहज व सामान्य लगी। मुझे लगा यहाँ भगवान ही बचाएँगे। एक दो दिन में टीचर जब शिकायत पत्र भूल जाएँगी, मैं वापस स्कूल टाइम पर जाने लगूँगी। इस तरह तीन चार दिन निकल गये।
मेरी क्रमशः गैर हाजिरी देख क्लास टीचर ने फ्री पीरियड्स में घर आकर मेरा हाल चाल जानना चाहा तो पता चला कि मैं तो रोज स्कूल जाती हूँ। टीचर ने सारा वाकया कि किस तरह मैं लेट होती हूँ व शिकायत चिट्ठी भी घर भेजी थी, तब से आपकी बच्ची स्कूल नहीं आ रही है।
मारे डर व चिंता के सबका बुरा हाल हो गया। मेरे बड़े भाई मुझे खोजने निकले, तभी कहीं तीसरे रास्ते पर उनके एक परिचित ने बताया कि राम मंदिर में कोई सभ्य अच्छे घर की सी दिखती लड़की राम मंदिर की ओर जाती दिखती है। बस क्या था, भैया तुरंत राम मंदिर आये, देखा कि मैं मंदिर के अंदर गर्भगृह में बैठी हूँ।
भैया ने मेरा हाथ पकड़ा, घर लाये और उनका एक जोरदार तमाचा मेरे गाल पर पड़ा। उस तमाचे की गूँज आज तक मेरे कानों में बज रही है। शेष तो समझने वाली बात है। कभी स्कूल में लेट नहीं हुई। पर और भी कहने को है फिर कभी कहूँगी या लिखूँगी, क्योंकि संस्मरण बहुत है कहने के लिये .....
मेरी प्राथमिक पाठशाला ने मुझे जीवन भर का शिक्षा दान ज्ञानदान दिया है।
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