प्रथम पुरस्कार उत्तम शिक्षिका का मिला -सरोज यादव
मेरी पाठशाला जीवन की प्रथम पाठशाला माता - पिता होते है जो हमारे जन्मदाता है । दुसरी पाठशाला विद्या अध्ययन के लिये होती है .जहां हमारे व्यक्तित्व का नर्माण होता है .जिस प्रकार सोना अग्नि में तप कर निखर जाता है या फिर कुम्हार कुम्भ को बनने के लिए भीतर हाथ का सहारा दे कर बाहर चोट पहुचाते हुए कुम्भ को आकार में ढाल देता है .ठीक इसी प्रकार पाठशाला हमारे जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है एसे ही पाठशाला की छाप मेरी स्मृतिओं में मधुर एवं मीठी यादों का खजाना है .
मेरी पाठशाला का नाम नवजीवन बालिका विद्यालय था .जो पहली से बारवी कक्षा तक था .बचपन की सारी यादे इसी विद्यालय से जुडी हुई है हम और हमारी सभी सहेलियाँ हर गतिविधयों में भाग लेती थी जैसे शैक्षणिक सांस्कृतिक खेलकूद इत्यादि में प्रत्येक शनिवार सखी सभा कार्यक्रम होता था जिसमे काव्यपाठ कहानी चुटकुले विधार्थीओं द्वारा प्रस्तुत किये जाते थे .दसवीं कक्षा से हमारे ऐच्छिक विषय लेने होते थे जिस के अनुसार मैं विज्ञानं की छात्रा थी .
प्रति वर्ष पाठशाला में एक महत्वपपूर्ण प्रतियोगिता हुआ करती थी जिसे सेल्फ गवर्नमेंट डे कहा जाता था .इस प्रतियोगिता में एक दिन के लिये सारी पाठशाला का प्रबंधन छात्राओं को करना पडता था प्राचार्य से ले कर शिक्षकों की भूमिका छात्राओं को निभानी होती थी मुझे विज्ञान की शिक्षिका बन कर कक्षा पढानी थी मुझे मछली का आतंरिक एवं बाहिए वर्णन करने दिया गया मैंने बोर्ड पर मछली का चित्र बना कर उसका सुन्दर चित्रण किया इस प्रत्योगिता में मुझे प्रथम पुरस्कार उत्तम शिक्षिका का मिला मेरी ख़ुशी का ठिकाना न रहा .समय तो बीत गया लेकिन पाठशाला की यह मधुर यादें मेरी स्मृतियों में अभी भी अंकित है .
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