पुत्रीशाला-श्रीमती शोभा रानी तिवारी
लेखिका संघ द्वारा जैसे ही मुझे मेरी पाठशाला के विषय पर लिखने का मौका आया, मेरे आंखों के सामने वह पुराना दृश्य चलचित्र की भांति आने लगा ।मुझे शासकीय हिंदी प्राथमिक विद्यालय पुत्रीशाला में कक्षा पहली में भर्ती किया गया था, उस समय मेरी उम्र छः वर्ष की थी।
पहले तो मैं पाठशाला जाने के नाम से बहुत रोती थी। मुझे वहां सब शिक्षकों से डर लगता था ।मैं तो तुतलाती थी ।मुझसे कोई नाम पूछता तो मैं बताती - चोभा लानी तिलाली चाटापाला में लहती है - बताती थी ।
समय की पाबंद शुरू से ही थी। समय से पहले विद्यालय पहुंच जाया करती थी। वही आदत आज तक है 41 वर्ष शासकीय सेवा का सेवा में रहने पर मुझे कभी देर नहीं हुई। सारा काम छोड़ कर मैं विद्यालय समय पर पहुंच जाती थी। बड़ा सा थैला लेकर उसमें स्लेट, बत्ती ,पेंसिल किताबें,दवात और होल्डर आदि सामान रखती थी ।वहां टाट पट्टी पर बैठना पड़ता था। विद्यालय में राइटिंग पर बहुत ध्यान दिया जाता था। यही कारण है कि मेरी लिखावट अच्छी है।
विद्यालय का समय 11:00 से 4:00 तक था। मैं पढ़ाई में शुरू से ही होशियार थी।जो गृहकार्य मिलता था मैं क्लास मे ही पूरा कर लेती थी। मुझे क्लास में सबसे आगे बैठना पसंद था ,इसलिए वही आदत आज भी पड़ी है ।मुझे आगे रहना पसंद है ।विद्यालय की घंटी लगते ही हम सब प्रार्थना के लिए जाते थे । प्रार्थना के बाद व्यायाम करते , प्रेरणा गीत गाते थे। उसके बाद क्लास में वापस जाने पर सरस्वती वंदना ,प्रेरणा गीत आदि होता था ।उसके बाद क्लास में कविताएं ,पहाड़े ,गिनती कविताएं बोलते थे, फिर क्लास में मैडम आती थी ।श्रुतलेख व व्यावहारिक गणित आदि लेती थी ,इसलिए आज जब मैं लिखती हूं ,तो मात्राओं की गलतियां नहीं होती हैं ।जो आदत बचपन में पड़ जाती है ,वह जीवन पर्यन्त तक बनी रहती है। दो बजे आधी छुट्टी होती थी ,तब हम खाना खाते थे।हम खेल नदी पहाड़ , लंगडी, सत्तुल, आदि खेल खेलते थे। वापसी की घंटी के बाद हम फिर क्लास में चले जाते थे ।पूरी छुट्टी 4:00 बजे होती थी ।
जब मैं तीसरी कक्षा में थी तभी मैंने इनाम जीतना शुरू कर दिया था ।लंबी रेस ,नींबू रेस ,कुर्सी दौड़ में बहुत ईनाम जीती थी ।जब मैं कक्षा पांचवी में थी, तब मैंने एक छत्तीसगढ़ी गाना ( हुई कहां गए रे बिलासपुर वाले मजा करे पूरवा लेगा ) इस पर नृत्य किया और मुझे प्रथम पुरस्कार मिला, वह पुरस्कार था फ्रॉक का कपड़ा।
मैं 15 अगस्त, गणतंत्र दिवस पर देशभक्ति गीत गाती थी ।तब से देश के प्रति समर्पण की भावना है।आप यकीन नहीं करेंगे मेरी 80% कविताएं देशभक्ति की हैं। माध्यमिक शाला में कक्षा सातवीं में मैंने रामचरितमानस की चौपाई याद करके सुनाई थी, जिसमें द्वितीय पुरस्कार मिला था ।और वह पुरस्कार का पीतल की तपेली ।
जब मैं हायर सेकेंडरी विद्यालय में पहुंची ,तब मैंने गीता के प्रथम अध्याय के 18 श्लोक याद करके सुनाए थे वह श्लोक मुझे आज भी याद है। हायर सेकेंडरी में मैंने एन.सी.सी ली थी ,तब वह कक्षा नवमी में थी। कैंप के दौरान मैं इंदौर आई थी।हम राजबाड़ा देखने गए थे। वह दृश्य मुझे कुछ-कुछ याद था ,यह मालूम नहीं था कि मुझे इंदौर में ही रहना होगा ।जब मैं कॉलेज पहुंची तो वहां भी एन.सी.सी में सी सर्टिफिकेट पास किया।
जब मैं बीए फाइनल में थी तो शिक्षक ट्रेनिंग के लिए बुलावा आ गया और 2 वर्ष मैंने ट्रेनिंग किया। बाद में प्राइवेट m.a. समाजशास्त्र में किया ।आपको यकीन नहीं होगा कि ,जिस विद्यालय से पढ़ कर निकली थी उसी विद्यालय में शिक्षक बनकर गई । पहले तो मुझे बहुत आश्चर्य हुआ , और खुशी भी कि जिन शिक्षकों ने मुझे पढ़ाया था ,उन्हीं के साथ में मैं बैठती थी, बातें करती, पहले तो संकोच हुआ फिर ठीक लगने लगा ।वहां के शिक्षक सबको बताते थे ,कि यह मैडम यही इसी स्कूल से पढ़कर निकली है ।
कविता लिखने का शौक चौथी, पांचवी से ही हो गया था ।एक लाइन दो लाइन की कविता लिखती थी ,फिर मैडम को सुनाया करती थी ।इस तरह मेरा विद्यार्थी जीवन सदा जीवन उच्च विचार था,और आज भी है। आज तक विद्यार्थी जीवन में के बारे में लिखने का अवसर मिला तो वह यादें ताजा हो गई।
8989409210