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दीदी की सीख - झूठ नही बोलना - प्रेरणा सेन्द्रे


               मैं अपनी बड़ी बहन से पंद्रह साल छोटी थी।  जब से होश आया दीदी को  ही मां के रूप में देखा।  वह मेरी हर चीज का ध्यान रखती थी। और पढ़ाती थी।  वह पढ़ाते समय स्वेटर बुनती थी।  कुछ ना आए तो सलाई उल्टी  करके उसके पीछे के भाग से हाथ की उंगली के पीछे के पर्वत पर जोर से मार देती  थी। एक बार की बात है मैं पांचवी में थी। 
             पढ़ते-पढ़ते  किसी बात पर मैंने झूठ बोलदिया। दीदी  को इतना गुस्सा आया कि उसने मुझे जोर  से आठ दस सलाई दे  मारी।  मेरी उंगलियां सूज गई।  मैं बहुत रोई।  मां ने कुछ नहीं बोला। रोते रोते सो गई। दूसरे दिन मुझे एहसास हुआ  मुझे झूठ नहीं बोलना था।  और मैंने दीदी से माफी मांग ली उसने मुझे तुरंत माफ कर दिया।  बोली आगे से मुझसे क्या किसी से भी झूठ नहीं बोलना.।

             आज पैंतीस  साल हो गए पर आज की परिस्थिति अलग है।  आज मुझे भी झूठ से सख्त नफरत है पर मैं कभी अपने बच्चों को मार नहीं पाई इतना क्योंकि समय बदल गया है बच्चे मार नहीं खा  सकते ना ही मेरी तरह गलती पर  माफी मांगना आता। बचपन की  मेरी पाठशाला के  संस्कार आज मुझ में है। मैं ना कभी झूठ बोलती हूं  और गलती हो तो तुरंत माफी मांग लेते हूं।          

             हर व्यक्ति को अपनी पाठशाला से सीख लेकर आगे सकारात्मकता से  बढ़ना चाहिए। 

    7869032169

 

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