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विभिन्न पाठशालाओं के रंगारंग अनुभव - नीति अग्निहोत्री


           मेरी पाठशाला एक नहीं रही ॒क्योंकि पिताजी का तबादला होता रहता था इसलिए विभिन पाठशालाओं के रंगारंग अनुभव स्मृतियों के उद्यान में दर्ज हैं । पहली कक्षा जिस पाठशाला से उत्तीर्ण की उस पाठशाला में मेरी माताजी शिक्षिका रहीं ।बाद में पिताजी की सरकारी नौकरी मध्य प्रदेश में लगने के कारण राजस्थान की सरकारी नौकरी माताजी को छोड़नी पड़ी ।           मुझे जब पहली में भर्ती करवाया तो मेरी उम्र चार वर्ष की थी । उस समय कोई के जी वगैरह नहीं होती थी। माताजी जब भर्ती कराने ले गईं तो मुझे मेज पर बिठा कर कक्षा और अध्यापक महोदय के सामने सौ तक गिनती और दस तक पहाड़े बोलने को कहा । मुझे तो रटे हुए थे सो फटाफट बोल दिए। पूरी पाठशाला में मेरा बडा रुतबा था और बहिन जी की बेटी होने के नाते मुझे बड़ा सम्मान मिलता था । कोई बिस्किट दे रह है तो कोई गोली और कोई उपहार दे रहा है ।

                इसके बाद माताजी चलीं गयीं मध्यप्रदेश राज्य में सौंसर नाम के गांव में जो नागपुर और छिंदवाड़ा के बीच में है क्योंकि  पिताजी की सरकारी नौकरी पहली वहीं लगी थी । मैंने नानी के यहाँ रह कर दूसरी कक्षा दूसरी पाठशाला से उत्तीर्ण की क्योंकि मेरे आस पास की सहेलियाँ दूसरी पाठशाला में जाती थीं। वहाँ एक गुप्ता बहिन जी मिलीं जो मुझे बहुत प्यार करती थीं । पहले मैं नाम के आगे रानी लगाती थी तो वो बोलीं मैं तुम्हें रानी ही कहूंगी।

                पाठशाला की हर प्रतियोगिता में मेरा नाम लिखा देतीं क्योंकि उन्हें पता था कि मैं सब में प्रस्तुति दे सकती हूं । मैंने उस उम्र में एक नन्खे खां जी से संगीत की कक्षा में जाकर शास्त्रीय संगीत सीखा था । बाद में नहीं सीख पाई तो सब भूल गई । गुप्ता बहिन जी मेरी प्रस्तुति पर इतनी प्रसन्न होतीं मानों उनकी अपनी बेटी ने भाग लिया हो ।

                 इसके बाद तीसरी कक्षा में पिताजी के पास सौसर चली गई और वहाँ की पाठशाला में पांचवीं तक पढ़ी । वहाँ की इतनी याद है कि एक बार दस मिनिट के अवकाश में  मेरी सहेली टाफियों के लिए एक दुकान पर ले गई  ये कह कर कि पास में ही है जबकि थोड़ा दूर थी। उनका परिवार आर्थिक रुप से कमजोर था सो टाफियों का लालच था और मुझे रोज एक आना जेब खर्च मिलता था। इस बीच में शिक्षक महोदय आकर कविता याद कर के सुनाने का कह गये । दुर्भाग्य से बैठने के हिसाब से दूसरा ही नम्बर था तो मैं याद नहीं कर पाई और शिक्षक महोदय आ गये ।  मैं सुना नही पाई तो कहा हाथ आगे करो और इतनी जोर से रूल की मारी कि दिन में तारे नजर आ गये। यह मेरी पहली और आखिरी सजा थी जो याद रहेगी।

                 फिर बाद में छठी  कक्षा में मल्हारगढ़ गांव जो नीमच और मंदसौर के बीच में है वहां पिताजी का तबादला हो गया । वहाँ लडकियों की पाठशाला में आठवीं तक पढ़ी फिर दसवीं तक सहशिक्षा मे पढ़ी ।मेरी हर कार्यक्रम में सक्रियता देख कर मुझे आठवीं कक्षा में  पाठशाला का अध्यक्ष बनाया जो मेरे लिए गर्व की बात थी।

                एक बार कार्यक्रम हाल में पूरी पाठशाला उपस्थित और प्रधानाध्यापिका ने पाठशाला की भृत्या से कहा कि जाकर नीति से कहना संभाले क्योंकि उन्हें कहीं और भी जाना था तथा वहां देर हो गई । भृत्या यानि बुआ जी ने आकर कहा तो मैंने राजस्थानी गीत पर नृत्य कर के सबको बांधे रखा। 

                प्रधानाध्यापिका तब तक आ गईं और बहुत खुश हुईं। एक बार अचानक कहा पंद्रह अगस्त पर कि तुम्हें देशभक्ति कविता सुनानी है। घर दूर था सो आनन-फानन में कविता लिखी और सुना दी। यह मेरी जिंदगी की पहली कविता थी।

              प्रधानाध्यापिका सक्सेना बहिन जी और सभी का बहुत प्यार मिला। आठवीं से दसवीं तक सहशिक्षा में पढी और आठवीं में पाठशाला में प्रथम आई। नवीं में दो बार  टाईडफाईड होने से पढाई में पिछड़ गई  ग्यारवी कक्षा  मैंने ददिहाल में रह कर उत्तीर्ण की क्योंकि मुझे बायोलाँजी  विषय लेना था जो गांव में नहीं था सो इन्दौर आ गई ।यहां भी मुझे प्रधानाध्यापिका का बहुत प्यार मिला क्योंकि हर गतिविधि में आगे रहती थी । यह है मेरी पाठशाला की स्मृतियां जो कभी नहीं भूल सकते।

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