विद्यार्थी जीवन सबसे श्रेष्ठ जीवन होता है - आशा जाकड़
जीवन की सार्थकता सफल जीवन में है सफल जीवन का भी छात्र जीवन में ही अंकुुुरितव प्रस्फुटित होने लगता है छात्र जीवन विद्यालय में प्रवेश हो जाने पर शुरुआत हो जाती है
मैं 3 साल की थी तब हम शिकोहाबाद में खेड़ा मोहल्ला में रहते थे पास में ही एक पंडित जी की पाठशाला जी उसमें मेरे पिताजी ने मुझे भर्ती करा दिया। लकड़ी की पट्टी पर हम कलम से लिखते थे।मेरे पिताजी उस समय किसी स्कूल में अध्यापक थे वह स्वयं एम. काम. कर रहे थे। दूसरे वर्ष मेरे पिताजी आगरा बी.टी. करने गए तब हम अपनी नानी के यहाँ रहे। नानी के यहाँ एक श्रीमान जी की पाठशाला थी उसमें मेरे नाना जी ने मुझे दाखिला करा दिया ।
मैं बचपन से ही पढ़ाई में आगे रही। पढ़ाई में आगे होने के कारण अध्यापकों की भी मैं प्रिय रही।आगरा में ही मेरे पिताजी बी.टी करने के पश्चात रेलवे में नौकरी करने लगे तब हम आगरा कैंट में रहने लगे ।आगरा कैंट रोड पर एक लड़कियों का स्कूल था उसमें मुझे तीसरी कक्षा में एडमिशन करा दिया लेकिन मेरे पिताजी को वह स्कूल पसंद नहीं था । अगले वर्ष उन्होंने मुझे आगरा के बैप्टिस्ट स्कूल में एडमिशन करवा ।मैं उसमें चार-पांच दिन पढ़ने गई तभी मेरे पिताजी को शिकोहाबाद में अध्यापन करने की सर्विस मिल गई वहां मुझे फोर्थमें एडमिशन मिला। मुझे अर्धवार्षिक परीक्षा में बहुत अच्छे नंबर आए ।मेरे स्कूल के प्रिंसिपल मेरे पिता जी को जानते थे। उन्होंने कहा आप की लड़की तो क्लास में नंबर वन है यह फिफ्थ क्लास की एग्जाम में बैठ सकती है। उस समय अंग्रेजी पाँचवी कक्षा से ही शुरू होती थी लेकिन मेरे पिताजी ने मुझे थर्ड से अंग्रेजी पढ़ना शुरू कर दिया था और मैंनें पाँचवी बोर्ड की एग्जाम दे दी, मैं उत्तीर्ण हो गई, इस तरह से मेरा फोर्थ और फिफ्थ एक ही साल में हो गया।
पाँचवीं कक्षा में हर शनिवार को बाल सभा होती थी उसमें बच्चे छोटे- छोटे नाटक करते थे राजा महाराजा के, हम लोग अपने हाथ से ही मुकुट बनाते थे ड्राइंग सीट के ,चमकीले कागज और कलर के द्वारा। सजाते थे। फिर मेरा छटवीं क्लास में पालीवाल इंटर कॉलेज में एडमिशन हुआ।उस समय स्कूल का निर्माण कार्य चल रहा था इसलिए छटवीं और सातवीं कक्षा स्कूल के पास ही एक बिल्डिंग में लगती थी वह भी काफी बड़ा था और काफी बड़ा ग्राउन्ड था। वहाँ हमारे स्कूल के कुछ अध्यापक भी रहते थे ।हम लड़कियां बेंच पर आगे बैठते थे हमारे पीटी सर हमको गणित पढ़ाते व पीटी सिखाते थे ,वह बहुत कठोर व अनुशासन प्रिय थे।सभी बच्चे लाइन में खड़े होकर पीटी करते थे ।अगर लाइन में कोई जरा सा टेढ़ा खड़ा होता था तो वह छड़ी से मारते थे। वह एकदम कृष्ण वर्ण के थे और हमेशा सफेद ड्रेस में रहते थे । पीटी के दिन हम भी सफेद फ्राक उस पर काली बेल्ट लगाते व,सफेद जूते- मोजे पहनते थे।अगर किसी की ड्रेस जरा सी भी गंदी होती तो वे दंडित करते थे। सर का नाम देवी लाल था ,वे .कक्षा में भी अनुशासनहीनता बिल्कुल पसन्द नहीं करते थे ,अगर छात्र काम समय पर नहीं करते तो बच्चों को हाथ ऊपर खड़े होने की सजा या मुर्गा बना देते थे , लड़कियों को केवल खड़े होने की सजा देते थे ।
अगले वर्ष हम सातवीं कक्षा में कॉलेज में पहुँच गए । कॉलेज काफी बड़ा और अच्छा था। वहाँ काफी बड़ा ग्राउंड था और स्कूल एच शेप में बना हुआ था। स्कूल में पीछे खेत भी थे जहांँ एग्रीकल्चर के विद्यार्थी खेती करना सीखते। स्कूल बारहवीं कक्षा तक था इसलिए इंटरमीडिएट कॉलेज कहा जाता था। एक क्लास के छै सेक्शन होते थे।सेवंथ क्लास में अर्धवार्षिक परीक्षा में मैथ्स की कॉपी दिखाई जानी थी ।हम लोग बड़े उत्सुक थे कि आज मैथ्स की कॉपी दिखाई जाएगी पर अचानक क्लास में पीटी सर आये और जोर से बोले आशा वर्मा कहाँ है? अपना नाम सुनकर मेरी तो जान निकल गई ,अब क्या होगा ,क्या गलती हो गई मुझसे, एकदम मैं डर गई पर मैं खड़ी हो गई। सर बोले तूने यह सवाल कहाँ से सीखा ।सब बच्चों का यह सवाल गलत है केवल तेरा ही सवाल सही है।मैंने डरते- डरते कहा कि मेरे पिता जी ने बताया है। तब उन्होंने मेरी पीठ थपथपाई ,वे जितना अधिक क्रोध करते थे, तारीफ भी उतने ही बड़े मन से करते थे ,बोले तू तो झांसी की रानी बनेगी । एक बार मैंने बाल सभा में गाना गाया था खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी, मैंने वह गीत हाथ में लकड़ी की तलवार लेकर गाया था। बच्चे भी कभी- कभी मुझे झाँसी की रानी बोलते थे। पीटी सर ने हमारी कॉपियां चेक की थी लेकिन क्लास में हमें दूसरे सर पढ़ाते थे। उस दिन के बाद से जब कभी किसी को सर का समझाया हुआ सवाल समझ में नहीं आता तो सब मुझसे कहते कि तू अपने पिताजी से सीख कर आना। इस तरह मैं बच्चों को सवाल बताकर उनकी मदद करती।
हमारे स्कूल में जब इंस्पेक्शन होते थे तब स्कूल को बहुत अच्छी तरह से सजाया जाता था । इंस्पेक्टर के आने पर हम बच्चे सब लाइन में खड़े होकर उनका स्वागत करते थे । उस समय पीटी सर लेझम के द्वारा गीत गाते हुए विद्यार्थियों को पीटी सिखाते व इन्सपेक्टर के सामने पीटी करवाते थे। हर शनिवार को वहाँ बाल सभा होती थी।बाल सभा में अंताक्षरी होती थी जिसमें दोहे चौपाई और छंद बोलना ही आवश्यक था। वहाँ काव्य पाठ होता था और कभी-कभी विषय दिए जाते थे जिस पर दो-तीन मिनट बच्चों को बोलना होता था। कॉलेज में खेल प्रतियोगिताएं भी होती थी लेकिन लड़कियां केवल दौड़ प्रतियोगिता और कबड्डी में हीं भाग लेती थी। हम लड़कियाँ प्रायः कबड्डी खेलते थे।
हमारे विद्यालय की हर साल में मैगजीन निकलती थी ,उसमें मैं हमेशा अपनी स्वरचित कविता या कहानी लिख कर देती थी ।इस तरह लिखने की शुरुआत मेरी बचपन से ही हो गई थी। स्वतंत्रता दिवस पर विद्यालय में प्रभात फेरी लगाई जाती थी ,क्रांतिकारियों और देशभक्तों के नारे लगाए जाते थे फिर स्कूल में आकर झंडा वंदन होता था। बाल दिवस पर हमारे स्कूल में बाल- मेला लगता था हमारे स्कूल का ग्राउंड काफी बड़ा था बहुत शानदार मेला लगता था ,खाने पीने की वस्तुओं के अलावा कपड़े की दुकानें भी लगती थी, पुस्तकों की दुकानें और तरह-तरह के खेल के स्टॉल भी लगते थे। एक बड़ा स्टेज बनाया जाता था जिस पर सांस्कृतिक कार्यक्रम होते थे ।उसमें हम भी भाग लेते थे और अपने गाने की प्रस्तुति देते थे।
आठवीं कक्षा उत्तीर्ण करने के बाद मैं नवी क्लास में अपने पिताजी के स्कूल अहीर हायर सेकेंडरी स्कूल में अध्ययन करने लगी।उस स्कूल का कॉलेज भी था। एक भाग में छठवीं क्लास से 10th क्लास तक कक्षाएं लगती थी और कॉलेज में ग्यारहवीं क्लास से लेकर बी.ए, बीएससी व कॉमर्स की कक्षा व बीटी की ट्रेनिंग भी होती थी । स्कूल और कॉलेज दोनों मिले हुए थे बीच में एकं रोड था जिससे स्कूल और कॉलेज का विभाजन हो जाता था।स्कूल और कॉलेज का काफी बड़ा ग्राउंड था।मैं अपने पिताजी के साथ ही स्कूल जाती थी साइकिल पर बैठकर ।मेरे पिताजी मुझे रास्ते में टेंस और मैथ्स के सवाल समझाते जाते थे ।नवी क्लास में हम केवल 4 लड़कियां थी। अटेंडेंस के समय क्लास के बाहर खड़े रहते थे और सर हमें देखकर प्रजेंट लगा देते थे। वहाँ फिजिक्स, केमिस्ट्री और बायोलॉजी रूम अलग-अलग होते थे। ड्राइंग का पीरियड बड़े हॉल में होता थी जहाँ चारों तरफ से चार्टस लगे होते थे और हमारी सीट भी चारों तरफ होती थी बीच में खाली जगह रहती थी जहां पर सर एक टेबल पर कोई भी वस्तु रख देते थे जिसका हमें पेपर पर मॉडल ड्राइंग बनानी होती थी और उसी रूम में हम ज्यामितीय ड्रांइग सीखते थे ।हिंदी ,अंग्रेजी ,गणित अपनी क्लास में होते थे।
पीरियड खत्म होने के बाद हम सब गर्ल्स रूम में आ जाते थे,हमारे गर्ल्स रूम के सामने एक बड़ा सा मैदान था जिसमें केवल हम लड़कियां ही खेलते थे ।हम लोग फ्री पीरियड में कबड्डी और गेंद तड़ी खूब खेलते थे वहाँ सभी हमारे प्रिंसिपल बड़े रौबीले, हंसमुख और शांत स्वभाव के थे ।वह हमें अंग्रेजी ग्रामर पढ़ाते थे । वे।डॉक्टर राधाकृष्ण जैसे अचकन, चूड़ीदार पजामा और सर पर पगड़ी बांधते थे ,बहुत अच्छा पढ़ाते थे। नवीं कक्षा में बीटी के स्टूडेंट्स हमको पढ़ाने के लिए आते थे। जब बीटी स्टूडेंट्स के टेस्ट और एग्जाम होते थे तो पहले हम को समझा कर जाते थे कि आपको इस प्रकार के उत्तर देना है । कभी-कभी हम विद्यार्थी भी कॉलेज जाते थे जहाँ बी.टी के स्टूडेंट्स हम को पढ़ाते थे। जब मैं नाइंथ क्लास में थी तो मैं भी सोचती थी कि बी ए करने के बाद मैं भी यहीं से बीटी करूंगी लेकिन मेरे बीए करते ही वहाँ बीटी की ट्रेनिंग बंद हो गई और बीटी का नाम बी एड हो गया।
उसी वर्ष भारत पर चाइना ने अटैक किया था।हमारे स्कूल में एक सज्जन आए एक पुस्तक लेकर जिसे उनकी पुत्री ने लिखा था ।उनकी पुत्री का पति उस युद्ध में शहीद हो गया था। प्रार्थनाके समय उन्होंने अपनी पुत्री की कविताएं सुनाई , कविताएँ सुनकर मैं ऐसे प्रभावित हुई कि मैंन उस पुस्तक को ₹2 में खरीदा। जब मैं नवीं कक्षा में थी तो 6 सब्जेक्ट थे हिंदी ,अंग्रेजी ,गणित साइंस ,जंतु विज्ञान और ज्यामितीय आर्ट लेकिन 10th में आते ही उस वर्ष नियम आगया कि पाँच विषय लेने हैं बायोलॉजी या मैथ्स तो मैंने बायोलॉजी छोड़ दिया और मैथ्स लिया क्योंकि मैथ्स मेरा फेवरेट सब्जेक्ट था । स्कूल जाते समय रास्ते में एक नदी पड़ती थी जिसका नाम तक सरस्वती था।जुलाई महीने में वहाँ भयंकर बाढ़ आ गई और स्कूल जाने की रास्ता पूरी तरह पानी से भर गया ।स्कूल की एक हफ्ते की छुट्टी हो गई फिर वहाँ पर नावों का इंतजाम हुआ तब हम घर से साइकिल पर बैठकर जाते, फिर वहाँ साइकिल एक स्थान पर रख देते थे । एक व्यक्ति टोकन देकर साइकिल रखता था ।फिर हम नाव में बैठकर अपने स्कूल जाते थे। लगभग 1 महीने तक हम लोग नाव में बैठकर स्कूल गए। उस समय नाव में बैठकर जाना बड़ा अच्छा लगता था। करीब 10 मिनट हम लोग नाव में बैठकर नाव की यात्रा करते थे ।जब भी बरसात आती है और टीवी पर जब हम बाढ़ का दृश्य देखते हैं तो हमें अपना स्कूल जाने वाला दृश्य याद आ जाता है।
मेरे क्लास की दो लड़कियां गाँव से पढ़ने आती थी साइकिल के द्वारा ,वे मुझसे कहती रहती थी चलो हमारे गाँव , देखना वहाँ कैसे खेत होते हैं ,गाँव में हम कैसे रहते हैं ,देखना। श्राद्ध के समय उनके बाबा का श्राद्ध था तब उन्होंने मेरे पिताजी से कहा कि मास्टर साहब आशा को अपने गाँव ले जाना चाहते हैं हमारे बाबा का श्राद्ध है ।उनके बहुत कहने पर पिताजी ने मुझे जाने की परमिशन दे दी । मैं साइकिल पर उनके साथ बैठकर 8 मील का फासला तयकर उनके गाँव गई । वहाँ गाँव में उनका बहुत बड़ा मकान था और बहुत बड़ा परिवार था करीब चालीस लोगों का ,सबके साथ मिलकर बहुत अच्छा लगा। वे वहाँ मुझे खेतों में ले गई । वहाँ मैं एक रात रुकी दूसरे दिन उन्हीं के साथ स्कूल आ गई।
जब मैं हाई स्कूल में थी, मेरी बोर्ड की एग्जाम थी। मेरे पिताजी की इच्छा थी कि मेरा मैथ्स का पेपर बिल्कुल सही जाना चाहिए लेकिन मुझे एक सवाल नहीं आया और मैं छोड़ कर आ गई बाकी मेरा पूरा पेपर सही था घर आने पर जो मेरे पिताजी ने पूछा तो मैंने कहा एक सवाल नहीं आया वह मैंने छोड़ दिया मेरे पिताजी ने तड़ाक से एक चाँटा मेरे गाल पर लगाया और बोले कितना समझाया पूरा पेपर करके आना। सबसे अच्छे नंबर मेरे मैथ्स में ही आये थे 90 /100।
एकदिन मैं अपनी पढ़ाई कर रही थी ,मेरा दो दिन बाद हिन्दी का पेपर था। मेरा छोटा भाई एक पुष्ठे को उछाल उछाल कर पास में ही खेल रहा था । अचानक पुष्ठा मेरे आँख के पास आकर गिरा और मैं बहुत जोर से चिल्लाई क्योंकि पुष्ठे से बिल्कुल आँख के नीचे लगी थी, मैं रोने लगी ,मेरी माँ जो मेरे पास में ही कपड़ों पर प्रेस कर रही थी जल्दी से उठी देखा खून तो नहीं निकला था लेकिन मेरी पूरी आँख सूज गई थी मेरे पिताजी ट्यूशन पढ़ाकर आए तब मुझे डॉक्टर के पास ले गए डॉक्टर ने पूरी रात सिकाई के लिए बोला।ं मेरा भाई डर के कारण चुपचाप कोने में बैठा रहा जब मेरा दर्द बंद हुआ तब मैंने माँ से पूछा कि उसने खाना खाया कि नहीं। मेरे पिताजी और मेरी माँ दोनों पूरी रात मेरी आँख की सिकाई करते रहे। मेरे पिताजी मुझे पढ़- पढ़ कर सुनाते रहे क्योंकि मैं पढ़ने में बिल्कुल असमर्थ हो गई थी ।जहाँ मेरा सेंटर था वहीं मेरे पिताजी की भी उसी स्कूल में इनविजीलेटर की ड्यूटी रहती थी मेरे पिताजी स्कूल के प्रिंसिपल से मिले उन्होंने कहा अगर लिखने में समस्या है तो आप एक राइटर का अरेंज कर सकते हैं मैंने कहा कि मैं एक आंख से ही पेपर दे सकती हूँ। मैंने पेपर दिया और उस वर्ष फर्स्ट डिवीजन तो आ गया पर हिंदी में सबसे कम अंक प्राप्त हुए ।
हाई स्कूल के बाद मैं साइंस लेना चाहती थी लेकिन मेरे पिताजी मुझे आर्टस दिलवा रहे थे । उनका कहना था कि मैं छोटी हूँ प्रेक्टिकल करने में दिक्कत होगी। मैं उस समय 13 साल की थी। मेरे घर के सामने शास्त्रीजी रहते थे। उन्होंने कहा कि बिटिया को संस्कृत दिलवाइए। मैं 1महीने तक स्कूल नहीं गई ।मेरे पिताजी कहने लगे कि 11वीं क्लास में तुमको मैथ्स दिलवा देगे लेकिन वहाँ मैथ्स की क्लास लेना सम्भव न हुआ। हार कर एक महीने बाद उसी पालीवाल इंटर कॉलेज में 11वीं क्लास में एडमिशन लिया।हमारी क्लास में 4 लड़कियां थी।, मैंने समाजशास्त्र लिया था, मैं समाजशास्त्र की क्लास में अकेली छात्रा थी। फर्स्ट डिवीजन के कारण मुझे 50 रुपये महीना छात्रवृत्ति भी मिलती थी। ब़ीए में 60 रुपये प्रति माह छात्रवृत्ति .मिलती थी।शास्त्री जी हमको संस्कृत पढ़ाते थे ।
जब मैं 11वीं कक्षा में थी तब मेरी बहन आठवीं कक्षा में थी हम साथ-साथ स्कूल जाते थे। एक दिन उसने कहा कि आज मेरी तबीयत ठीक नहीं है मैं स्कूल नहीं जा रही हूँ। मेरे फादर अपने स्कूल जा चुके थे। मैंने फटाफट एप्लीकेशन लिखी और अपने फादर की सिग्नेचर कर दी। मुझे अपनी फादर की सिगनेचर करनी आती थी । स्कूल में जाकर मैंने अपनी बहन के क्लास मॉनिटर को एप्लीकेशन दे दी । इंटरवल के बाद मेरी बहन के क्लास टीचर बृज किशोर पालीवाल जी सर ने मुझे स्टाफ रूम में बुलाया और पूछा वर्मा जी कहाँ है ? मैंने कहा यहीं पर हैं तो फिर ये सिग्नेचर किसने किए हैं यह सुनकर मैं डर गई पर मैंने सच बता दिया कहा कि पिताजी स्कूल चले गए थे बाद में बहन ने बताया अतः मैंने साइन कर दिये। सर ने कहा आगे से जीवन में कभी ऐसी गलती ना करना ।
घर आकर मैंने अपनी मम्मी को बताया कि आप बाबू जी को बता देना । कभी ;कभी जीवन में ऐसीभूल हो जाती है चाहे अनचाहे ।आज भी मैं उस भूल का एहसास करती हूं मैंने कैसे इतनी बड़ी भूल कर दी। जब मैं इलेवंथ में थी तभी मैंने 10th क्लास की अलग से एक होम साइंस परीक्षा दी क्योंकि मेरे पास मैथ्स था अतः होम साइंस नहीं ले सकते थे और मुझे होम साइंस में भी रुचि थी जब मैं बीए में थी तो मैंने 12th क्लास की होम साइंस परीक्षा अलग से दी।
उसी वर्ष पाकिस्तान ने भारत पर अटैक किया था । तभी मैंने "प्रेरणा "कहानी लिखी जो देशभक्ति से परिपूर्ण थी लेकिन वह कहानी उस वर्ष मेरे कॉलेज की मैगजीन में नहीं छपी क्योंकि एक कविता मैं पहले ही दे चुकी थी। ।हमारे प्रिंसिपल हमें लेक्चर हॉल में अंग्रेजी व्याकरण पढ़ाते थे। उनके हाथ में हमेशा एक छोटा सा डंडा रहता था ।हम लोग क्लास में नहीं बैठते थे बल्कि प्रिंसिपल के ऑफिस के सामने एक बरान्डा था वहांँ बैठते थे ।जब हमारे पीरियड होता था तो हम क्लास के बाहर खड़े रहते थे और जब सर क्लास में प्रवेश करते तब उनके पीछे ही हम प्रवेश करतेथे। लड़के बड़े शैतान होते हैं उन्हें हम कमेंट करने का कोई मौका नहीं देते .थे।जैसे ही पीरियड खत्म होता ,तुरन्त बाहर निकल जाते थे । हमारे विद्यालय में अंतर विद्यालय प्रतियोगिता में वाद विवाद प्रतियोगिता,भाषण प्रतियोगिता ,काव्यप्रतियोगिता आयोजित होती थी और उसमें प्रायः लड़के ही भाग लेते थे । कभी-कभी लड़कियां कविता प्रतियोगिता में भाग लेती थीं।
11वीं 12वीं क्लास की कुल मिलाकर 12 13 लड़कियां थीं।जब कोई कार्यक्रम होता तो लड़के नीचे बैठते थे फर्श पर और हम लड़कियां हमेशा बेंच पर बैठते थे । बीए. में जब हम कॉलेज में पहुँचे तो वहाँ लड़के और लड़कियों के चुनाव हुए और लड़कियों की तरफ से एक हमारी एक सहेली गर्ल्स रिप्रेजेंटेटिव बनी ।वह क्रिश्चियन थी और उसका अंग्रेजी पर अच्छा कमाण्ड था ,लड़के उससे डरते थे तो हम लोगों ने उसको ही खड़ा कर दिया। मैंने संस्कृत और अंग्रेजी ली थीं लेकिन मैं हिंदी क्लास भी अटैन्ड कर लेती थी क्योंकि हिंदी प्रोफेसर का पढ़ाना अच्छा लगता था ।हिंदी प्रोफेसर ने दो कोटेशन बतलाए थे महादेवी वर्मा के ,जो आज भी याद हैं।
न इतनी पास तुम आओ कि दूषित प्यार हो जाए
न इतनी दूर तुम जाओ कि जीवन भार हो जाए।।
मिलन अंत है विरहा प्रेम का और विरह जीवन है
विरह प्रेम की जागृति गति है और सुसुप्ति मिलन है।।
मैं कभी कभी-कभी पॉलिटिकल साइंस का पीरियड भी अटेंड कर लेती थी क्योंकि वह मेरा फ्री पीरियड रहता था और पॉलिटिकल साइंस के प्रोफेसर मित्तल साहब बहुत अच्छा लेक्चर देते थे ,,वे हमारे पड़ौस में ही रहते थे। मैंने अपनी कहानी "प्रेरणा "मैगजीन में छपने के लिए दे दी थी। मित्तल साहब मैगजीन के सम्पादक थे ।एक दिन मित्तल साहब ने क्लास में मुझसे पूछा कि वह कहानी तुमने ही लिखी है या कहीं से ली है? मैंने कहा सर मैंने ही लिखी है। उन्होंने कहा" कहानी बहुत अच्छी लिखी है और अब तुम अपनी कलम को रुकने मत देना ऐसे ही कहानियाँ लिखते रहना एक दिन निश्चित ही तो अच्छी लेखिका बनोगी"।
.उस वर्ष करीब 20 लड़कियाँ थी क्लास में । हम लड़कियाँ फ्री पीरियड में गार्डन में बैठकर खूब गाने गाते थे , शेरो शायरी करते थे ,अंताक्षरी खेलते थे और अपनी पढ़ाई भी करते थे। जब मेरे एग्जाम का समय था तब मेरी छोटी बहन का जन्म हुआ ,मैं उस समय 16 वर्ष की थी घर पर ही डिलीवरी हुई थी मार्च के लास्ट वीक में ।पढ़ाई ठीक से न होने के कारण मैंअनुत्तीर्ण हो गई और फिर मैं कालेज कभी नहीं गई। बस प्राइवेट ही बीए किया।
विद्यार्थी जीवन सबसे श्रेष्ठ जीवन होता है यह बात बिल्कुल सच है क्योंकि मैंने भी अपने विद्यार्थी जीवन में पढ़ने के साथ साथ खेलती.भी , खूब गाने गाए ,शेरो शायरी की ,खूब लिखती भी थी । मेरे सभी स्कूल और कॉलेज उस समय के श्रेष्ठ स्कूल कॉलेज थे जहाँ छात्रों के शारीरिक ,मानसिक व बौद्धिक विकास पर पूरा ध्यान दिया जाता था ।और ये स्कूल, कॉलेज आज भी वहाँ विद्यमान है। पर उनके नाम बदल गए हैं पालीवाल इंटर कॉलेज का नाम पाली इंटर कॉलेज हो गया है और अहिर क्षत्रीय कॉलेज का नाम आदर्श कृषक हायर सेकेंडरी स्कूल हो गया है।आज भी अपने विद्यालय की छवि मन मस्तिष्क में विद्यमान है।
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