पाठशाला की छाप अंत तक बनी रहती है - डॉ अंजुल कंसलकनुप्रिया
पाठशाला में अध्ययन ,खेलकूद,मानसिक शारीरिक विकास ,चरित्र निर्माण आदि बातों का समावेश होता है।यहां तक कि बाडी लैंग्वेज शारीरिक भाषा का भी पाठशाला में ही निर्माण होताहै।फिर जब हम बडे़ हो जाते हैं तो कुछ हम अपनी रुचियों क्षमताओं एवं परिवेश से सीखते हैं।पाठशाला की छाप अंत तक बनी रहती है।
मेरी पाठशाला ने मुझ पर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से बहुत प्रभाव डाला है।आज भी मेरे मन में एक एक बातें अँकित हैं और वह बीती बातें,तथ्य,घटनाएं चलचित्र की भांति आती जाती रहती हैं।ज़्यादातर बडी़ सुखद अनुभूति होती है और ऐसा लगता है कि आज से 66 वर्ष पूर्व भी हमारा विद्याध्ययन बहुत सलीके से और नामी पाठशाला से हुआ,नाम था सेंट ऐग्नेस हाई स्कूल कानवेंट लखनऊ।वहां ट्यूनिक ड्रेस में जाना होता था।सबसे पहले नर्सरी फिर प्रेप,फिर पहली कक्षा में प्रवेश मिलता था।स्कूल भवन बहुत सुंदर और बडे़ बडे़ प्ले ग्राउँड थे।बहुत बडा़ हाल उसमें बाईबिल पर गाने गाए जाते थे।उसी हाल में वार्षिक उत्सव मनाया जाता था और शेक्सपियर पर ड्रामा होते थे।मैं कक्षा दूसरी में थी तब स्टेज पर मेरा नाम पुकारा गया मुझे पूरे स्कूल में गुड हैंड राईटिंग का पुरस्कार दिया गया।सिंड्रैला की बहुत कलरफुल किताब मिली जिसमें स्टेप मदर के बारे मे़ पढा़ जो सिंड्रैला को बहुत तंग करती थी।यह पढ़ कर खूब रोये।वह किताब आज भी लखनऊ मेरे मायके में रखी है।शायद इसी का असर है कि आज भी मेरी लिखावट सुधार एवं कैलीग्राफी की कक्षाएं निरंतर चलती रहती हैं।उसी पाठशाला में वार्षिक उत्सव में ड्रिल भी की थी जिसे बहुत सराहा गया था।
कक्षा चौथी में बाल शिक्षा निकेतन में आ गए।वहां प्रथम आई।कक्षा दसवीं तक प्रथम का सिलसिला चलता रहा।मुझे छठवीं आठवीं नौवी में रामायण गुटके मिले,सातवीं में स्वप्नवासदत्ता पुस्तक और दसवीं में गीता मिली।यह सभी पुरस्कार मेरे पास हैं जिंहें देख कर बडी़ सुखद अनुभूति होती है।ये सब पुरस्कार वार्षिक उत्सव में हमारी प्रिंसिपल दीदी स्वरूप कुमारी बख्शी ने दिए थे जो माननीय इंदिरा गांधी जी की करीबी रिश्तेदार थीं।
छठी कक्षा की एक अविस्मरणीय घटना बताती हूं।हमें और हमारी सखि आभा को वार्षिक उत्सव में क्लासिकल नृत्य भारतनाट्यम करना था तो हमारी प्रिंसिपल दीदी हमदोनों को रिक्शे में बिठा कर अमीनाबाद ले गईं जहां दो एक सी नीले रंग की साडी़ लाल बार्डर की हमदोनों को पसंद आई वहीं टेलर को सिलने दी गई।हमें आज भी याद है कि 13/की आर्टीफीशियल सिल्क की साडी़ थी और 7/ सिलाई।कुल 20/रु में पूरी ड्रेस सिल गई थी भारतनाट्यम की।हम दोनों ने क्लासिकल डांस किया जिसमें खूब ताली बजी थी।आगे की कक्षाओं में गर्ल्स गाईडिँग और एन सी सी मेँ खूब कैम्प किये और नृत्य नाटिकाएं भी की।
हमारी पाठशाला का परिवेश बहुत अच्छा था।दीदियां बहुत प्यार से समझाती थीं।हम पढ़ने में बहुत अच्छे थे तो स्टाफ टीचर्स बहुत प्यार करती थीं।उस ज़माने में मेरी मम्मी बहुत अच्छी फ्राक सिलती थीं मैंने भी उनसे सिलाई सीख ली।मैं बहुत सुंदर फ्राक पहन कर जाती थी तो दीदियां स्टाफ रूम में बुलाकर फ्राक देखती थीं और खूब तारीफ करती थीं हम बहुत खुश हो जाते थे।खूब इतरा इतरा के चलते थे।हमारे समय शकुँतला देवी आई थीं उन्होंने गणित के कई करिश्मे दिखाए थे।हमलोगों ने आश्चर्य से दाँतों तले उंगली दबा ली थी।मेरी पाठशाला मे हमने खूब अच्छा और मेधावी छात्रा के रूप में जीवन बिताया।आज भी मुझे दीदियां और प्रिंसिपल मैडम और अपनी प्यारी पाठशाला सपने में दिखती रहती है।
+91 77720 68243