स्कूल की सहेजी गई ये तस्वीरें - शहनाज़ सुल्तान
जीवन सहज नहीं है सहज इसलिए नहीं है क्योंकि वहाँ सहेज नहीं मिला है कष्ट और सीढ़ियों के उतार चढ़ाव के बाद जो प्राप्त होता है वह सहजता की देन नहीं है । वह देन है सामर्थ्य की । और उसे पाठ्य बनाने की पहचान मनाना उसके अस्तित्व का द्वार है ।
शिक्षा जीवन का मूल आधार है जो हमें संस्कारवान बनाती है तो यही संस्कार हमें घर के बाद पाठशाला से और पाठशाला के शिक्षकों के द्वारा प्राप्त होती है ।
मेरी पाठशाला और मेरी शिक्षा कमला नेहरू बालिका उच्चतर माध्यमिक विद्यालय इंदौर में पूरी हुई । हमारा स्कूल सबसे अच्छा हिंदी मीडियम स्कूल माना जाता था । जैसे सैंट रेफ़ीयल इंग्लिश मीडियम स्कूल हैं ।
मैंने कक्षा पाँचवी से इसी स्कूल में अपनी पढ़ाई की । हमारी कक्षा में एक ही टीचर पढ़ाती थी सभी विषयों को । उसके बाद आठवी के बाद विषय के अनुसार सारी शिक्षिकाएं आती थीं । हमारा स्कूल बहुत बड़ा था । हमारी क्लास टीचर प्रधान टीचर हिंदी पढ़ाती , रसायन पढ़ाती और हिंदी टीचर बिहानों टीचर और संस्कृत व्यास टीचर अंग्रेज़ी कुमार टीचर विज्ञान लेले, प्रार्थना अन्य टीचर है जैसे विनीता विनी टीचर ।
गेम्स टीचर ताम्बे की शिक्षा बहुत अच्छी होती थी ।मैं स्कूल में दसवीं के बाद गेम सेक्रेटरी गेम्स थी गेम्स में बॉस्केटबॉल बैडमिंटन खो खो एथिलेटिकस आदि में भी भाग लिया जाता था ।
हमारी संगीत देसाई टीचर क्लास लेती थी इसमें हमें क्लासिकल संगीत सिखाया जाता था । इसके अलावा वाद विवाद प्रतियोगिता संगीत प्रतियोगिता खेल प्रतियोगिता और अन्य सांस्कृतिक गतिविधियों में भाग लेती थी । मुझे अन्य बहुत सारे वाद विवाद गेम्स आदि में पुरस्कार प्राप्त हुए ।
हम हिंदी मीडियम इस स्कूल में इसलिए पढ़े है क्यों की वो हमारे घर10 मिनिट में ही पहुँचने का रास्ता था । मज़े की बात ये है कि स्कूल से हमें अपना घर और हमारे पापा की फ़ैक्ट्री दिखायी देती थी । हमें हमारा स्कूल बहुत याद आता है ।
चूँकी स्कूल हिंदी मीडियम था, जीवन की एक सुखद कल्पना पाठशाला थी जो हमें अपने अतीत में खो जाने को मजबूर कर देती हैं । ऐसे ही इस स्कूल की सहेजी गई ये तस्वीरें एक आईना बन कर यादों के झरोखे से सामने से आ जाती है । इन तस्वीरों में हमें बचपन का गीला पन , गाँव , अल्हड़ पन और अतीत में खो जाने वाली स्मृतियाँ ही इसमें आती हैं । जिन्हें हम फ़ुरसत के समय खोल कर उनको याद कर लेते हैं । जो हमें अपनी संस्कार देने वाली शिक्षिकाओं और इस स्कूल की सहेलियाँ की याद आ जाती हैं। ये बचपन की सहेलियां और इस स्कूल में लगे हुए इमली और कबीट के पेड़ याद आ जाते हैं । तो इन यादों को सहेज कर हम अपने भविष्य की ओर आगे क़दम बढ़ाते चले गए । धन्यवाद ।
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