आजादी की पहली वर्षगांठ थी तब हमारे स्कूल में बहुत बड़ा उत्सव मनाया गया - डॉ पुष्पा रानी गर्ग
उत्तर प्रदेश में अलीगढ़ जिले के अंतर्गत छोटा सा शहर है हाथरस जो अब पहले से काफी बड़ा हो गया है और जिला बन गया है । वहां मेरा जन्म हुआ मेरे पिता सेठ मुरलीधर जी पोद्दार वहां के प्रतिष्ठित जमीदार थे ।ववे आजादी की लडाई में अक्सर जेल चले जाते थे । घर में तब उनका रहना कम ही होता था । उस समय हाथरस में लड़कियों की एक सरकारी पाठशाला थी उसे " पीली कोठी " कहते थे वह पूरी पीले रंग की पुती हुई थी शायद इसलिए ।स्कूल शब्द तब प्रचलन में नहीं था ।
सो मैं पुष्पा तथा मेरी डेढ़ वर्ष की बहन मालती दोनों एक साथ पढ़ने जाते थे । एक साथ एक कक्षा में पढ़ते हम दोनों । मेरी उम्र रही होगी 4 या 5 वर्ष कक्षा कौन सी थी मुझे पता नहीं था बस पढ़ने जाती थी इतना याद है । नौकर सुबह हम दोनों बहनों को पाठशाला छोड़ आता । दोपहर को ले आता ।हम साथ में कपड़े की थैली ले जाते उसमें एक लकड़ी की तख्ती होती जिसे पट्टी कहते थे तथा एक सरकंडे की कलम , थोड़ी खड़िया और कपड़े का टुकड़ा भी थेली में होता । खड़िया घोलने के लिए दवात जिसे बुद्धका कहते थे वह वही पाठशाला में ही होती थी । कलम घर पर भी माँ चाकू से छीनकर बना देती थी कभी बाबूजी छिल देते थे। पाठशाला पहुंचकर रोज बुद्दका में खड़िया डालते , पानी डालते , उसने कलम डुबोकर पट्टी पर लिखते - अ - अनार का , आ -आम का वगैरह । ये लिखना एक एक माटसाब सिखाते ।
पट्टी भर जाती तो दौड़कर कपड़ा गीला कर लाते । उससे पट्टी पौंछते , फिर गीत गा - गा कर पट्टी सुखाते - - -
सुख - सुख पट्टी , चंदन की घट्टी
आयो राजा , मेल चढ़ायो पट्टी पै
पट्टी गई सूख , राजा गयो रूठ
पट्टी सूख जाती तब कक्षा में जाकर बैठ जाते । घंटी बजती तो माटसाब आ जाते । वो खड़े होकर गिनती सिखाते , पहाड़े रटवाते । पट्टी पर अंक लिखना सिखाते।
कक्षा में जमीन पर बिछि टाटपट्टी पर बैठते । एक औरत टीचर थी एकदम काली , दुबली-पतली - लंबी अक्सर काली साड़ी पहन कर आती । उन्हें उस्तानीजी कहते थे । वे abcd लिखना - पढ़ना सिखाती थी । माटसाब और उस्तानी जी जो लिखवा ते वह हम पट्टी पर लिख कर उन्हें दिखाते । वे खुश होकर शाबाशी देते । इसी तारतम्य में कब परीक्षा हो गई हमें पता ही नही चला । हम अगली कक्षा में आ गए । कक्षा कौन सी थी तब यह भी पता नहीं था शायद दूसरी या तीसरी रही हो । तब हम पास या फेल का मतलब भी नहीं जानते थे । जो लिखाया जाता वो लिखते , जो बुलवाया जाता वह बोलते । बोल-बोलकर 15 तक के पहाड़े रट लिए , हिंदी के अक्षर की बाराखडी - क का कि की - इसी तरह सारे व्यंजन रट लिए ।उसी का परिणाम है कि लेखन में कभी मात्रा की अशुद्धियां नहीं हुईं ।
तो यूं ही लिखते - पढ़ते , पहाड़े रटते साल बीतने को आया । हमारी परीक्षा हो गई । वैसे हमें यह पता ही नहीं कि परीक्षा क्या होती है। जैसे हमेशा पाठ लिखते और सुनाते , लिखा हुआ दिखाते वैसा ही परीक्षा के दिन हुआ होगा । पाठशाला से लौटते समय उस्तानी जी ने हम दोनों बहनों को एक कागज पकड़ा दिया और कहा इसे अपनी बाबूजी को दे देना । हमें तब भी यह ज्ञात नहीं था कि हम पास है या फैल । यूं भी पास - फेल क्या होता है हम यह भी नहीं जानते थे । सो घर आकर कागज हमने उदासीन भाव से बाबूजी को दे दिया । बाबू जी ने कागज देखा - अरे यह दोनों तो फेल हो गई ! बोले मेरी बेटियां फेल कैसे हुई ? ये फेल हो ही नहीं सकती ।
उन्होंने उसी समय नौकर को पाठशाला भेजा उस्तानी जी के पास । नौकर ने जाकर उनसे पूछा - पोद्दार सब की बेटियां मालती पुष्पा कैसे फेल हो गई ?
तो उन्होंने जवाब दिया - पोद्दार सब आप इतने बड़े आदमी है । थाली भर मिठाई भेजें तब उनकी बेटियां पास होंगी ।
नौकर ने घर आकर सारी बात बाबूजी को बताई ।
बाबूजी तो स्वतंत्रता सेनानी थे उनको यह सब सुनकर बहुत दुख हुआ । उन्हें क्रोध भी आया कहने लगे - " अरे अभी से देश में ऐसा होने लगा ? ठीक है मैं अब उस पाठशाला में अपनी बेटियों को पढ़ने नहीं भेजूंगा । मिठाई भेज कर मुझे अपनी बेटियों को पास नहीं कराना । " बाबू जी ने हमें घर बैठा लिया । घर पर मास्टरजी लगाकर आगे पढ़ाई शुरु कर दी । तब मेरी उम्र 5 वर्ष से कम ही रही होगी । हम घर में पढ़ने लगे ।
बाबूजी ने तब हाथरस में लड़कियों के लिए स्कूल खोलने का संकल्प लिया । वे शहर के कुछ अग्रवाल लोगों से मिले । सब ने सहर्ष बाबू जी के संकल्प में अपना योगदान दिया । एक राम चंद्र अग्रवाल जी थे उन्होंने अपनी धर्म शाला स्कूल के लिए दे दी । इस प्रकार हाथरस में लड़कियों का स्कूल खुला । नाम रखा गया - रामचंद्र अग्रवाल कन्या विद्यालय । इसमें छठी कक्षा से पढ़ाई शुरु हुई । इस कार्य में गए 2 वर्ष लग गए । साढ़े सात वर्ष की आयु में मुझे छठी कक्षा में दाखिल किया गया । साथ में मेरी बहन मालती को भी । इस प्रकार साढ़े आठ वर्ष की उम्र में मैंने छठी कक्षा प्रथम श्रेणी में पास कर ली ।
अब हमें पास - फेल का अर्थ समझ में आने लगा था । अग्रवाल स्कूल में अच्छी पढ़ाई होने लगी । मैं प्रथम श्रेणी में छठी और सातवीं में पास हुई । तब तक भारत आजाद हो चुका था और शायद आजादी की पहली वर्षगांठ थी तब हमारे स्कूल में बहुत बड़ा उत्सव मनाया गया । मेरे बाबू जी तथा एक और बड़े स्वतंत्रता सेनानी का सम्मान किया गया । मैंने व मेरी बहन मालती में एक गाने के साथ मंच से हाथ में हार लेकर धीरे धीरे एक गीत कि ली पर चलकर उन्हें हार पहनाए । बाबूजी में स्कूल के लिए 50 बीघा जमीन देने की घोषणा की । 15 अगस्त का यह उत्सव पूरी तरह मेरे मन मस्तिष्क पर छा गया ।
इस संदर्भ कि एक महत्वपूर्ण घटना का भी उल्लेख करना चाहती हूं । बात आठवी कक्षा की है । छमाई इम्तिहान में हिंदी के पर्चे में किसी त्योहार पर निबंध लिखना था त्योहार से तात्पर्य था , होली , दिवाली , दशहरा, रक्षा बंधन । तब ऐसा माना जाता था कि होली शूद्रों का त्योहार है , दिवाली वैश्यों का , दशहरा क्षत्रियों का और रक्षाबंधन ब्राह्मणों का त्यौहार है । मैं चार ही मुख्य त्यौहार माने जाते थे ।
पर्चे में किसी त्यौहार का नाम नहीं लिखा था । मैंने त्यौहार पर विचार किया और एक नए त्योहार पर निबंध लिखा - हमारा राष्ट्रीय त्यौहार पंद्रह अगस्त । उसका अपनी बुद्धि के अनुसार वर्णन किया और लिखा की - होली , दिवाली , दशहरा , राखी , ये त्यौहार तो अलग-अलग जातियों के त्यौहार है । लेकिन 15 अगस्त तो हमारे पूरे देश का त्यौहार है । इसे सभी जाति के लोग मनाते हैं । इसी दिन हमारा देश अंग्रेजो की गुलामी से आजाद हुआ । इसलिए यह सबसे बड़ा त्यौहार है । आदि - आदि । जांचने के बाद छःमाई इम्तिहान की कॉपियां दिखाई गई । मैं हिंदी के पर्चे में तो पास थी लेकिन निबंध के प्रश्न में मुझे अंडा यानी जीरो मिला था । यह देख कर मैं बहुत दुखी हुई । रुआँसी हो गई । मैं तो इस निबंध में अच्छे नंबरों की आशा कर रही थी लेकिन मिला अंडा - - - । खैर वह कॉपी मैं घर लेकर आई । बाबूजी देखा निबंध के प्रश्न जीरो मिला है । वे मुझसे कुछ नहीं बोले । कॉपी ले कर चुपचाप स्कूल वजह से उन्हें भी मुझसे कुछ नहीं बोले कॉपी लेकर चुपचाप स्कूल चले गए । वहां जाकर बड़ी भैन जी ( प्राचार्य ) से मिले । उन्हें कॉपी दिखाई । वह निबंध दिखाया । बड़ी बहन जी में निबंध पढ़ा , यह भी देखा कि उसमें जीरो दिया गया है । परंतु वे चुप रहीं । तब बाबूजी ने उनसे पूछा - बहनजी कृपा कर यह बताइए इस निबंध में गलत क्या लिखा है ? जिससे इसमें जीरो दिया गया है ।
बहन जी में कहा - पोद्दार साहब बच्ची ने निबंध बहुत अच्छा लिखा है । वह उसकी उम्र से बहुत आगे की बात है । लेकिन उसकी टीचर के सम्मान का प्रश्न है । मैं उससे बात करूंगी । लेकिन इसमें नंबर बढ़वाना ठीक नहीं । मैं उसकी तरफ से इस बात के लिए क्षमा मांगती हूं ।
बाबूजी सहमत हो कर घर आ गए। यह बात उन्होंने मुझे कई साल बाद बताई ।
इस तरह उस निबंध में मेरे लेखक का प्रथम अंकुर फूटा था ।
यूं मैं समझती हूं कि आठवीं कक्षा तक मेरी पाठशाला चली जिसमें जीवन के अनेक पाठ पढ़े , आगे की पढ़ाई के संस्कार प्राप्त हुए ।
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