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विरुद्ध आहार

कुछ खाद्य-पदार्थ तो स्वभाव से ही हानिकारक होते हैं। जबकि कुछ खाद्य पदार्थ ऐसे होते हैं जो अकेले तो बहुत गुणकारी और स्वास्थ्य-वर्धक होते हैं, लेकिन जब इन्हीं पदार्थों को किसी अन्य खाद्य-पदार्थ के साथ लिया जाए तो ये फायदे की बजाय सेहत को नुकसान पहुँचाते हैं। ये ही विरुद्धाहार कहलाते हैं। विरुद्ध आहार का सेवन करने से कई तरह के रोग होने का खतरा रहता है। क्योंकि ये रस, रक्त आदि धातुओं को दूषित करते हैं, दोषों को बढ़ाते हैं तथा मलों को शरीर से बाहर नहीं निकालते।

कई बार आपको कुछ गंभीर रोगों के कारण समझ नहीं आते हैं, असल में उनका कारण विरुद्धाहार होता है। क्योंकि #आयुर्वेद में कहा है कि इस प्रकार के विरुद्ध आहार का लगातार सेवन करते रहने से ये शरीर पर धीरे-धीरे दुष्प्रभाव डालते हैं और धातुओं को दूषित करते रहते हैं। अतः विरुद्धाहार कई तरह के रोगों का कारण बनता है।

कभी-कभी सब प्रकार से रुचिकार दिखने वाला भोजन भी शरीर का संतुलन बिगाड़ देता है. हमारे भोजन में 9 गुण होते हैं. जिस भोजन में इन गुणों का अवरोध या विरोध पाया जाए तो उसे #विरुद्धाहार कहा जाता है।

भोजन के नौ गुण:

हमारे भोजन में यदि इन नौ गुणों (वर्ण, प्रसाद, सुखम, संतुष्टि, सौस्वर्यंम, पुष्टि, प्रतिभा, मेधा, व बल) का समन्वय, सामंजस्य और पूर्ति हो तो एक संतुलित आहार बनता है ये देखने और खाने में रुचिकार, पाचक और पुष्टिवर्धक होता है।

आयुर्वेद में भोजन 18 प्रकार से विरुद्ध हो सकता है:

1. देशविरुद्ध:

सूखे या तीखे पदार्थों का सेवन सूखे स्थान पर करना अथवा दलदली जगह में चिकनाई -युक्त भोजन का सेवन करना।

2. कालविरुद्ध:

ठंड में सूखी और ठंडी वस्तुएँ खाना और गर्मी के दिनों में तीखी कषैली भोजन का सेवन करना।

3. अग्निविरुद्ध:

यदि जठराग्नि मध्यम या अल्प हो और व्यक्ति गरिष्ठ भोजन खाए तो इसे अग्नि विरुद्ध आहार कहा जाता है।

4. मात्राविरुद्ध:

यदि घी और शहद बराबर मात्रा में लिया जाए तो ये हानिकारक होता है।

5. सात्म्यविरुद्ध:

नमकीन भोजन खाने की प्रवृत्ति रखने वाले मनुष्य को मीठे रसीले पदार्थ खाने पड़ें।

6. दोषविरुद्ध:

वो औषधि भोजन का प्रयोग करना जो व्यक्ति के दोष के को बढ़ाने वाला हो और उनकी प्रकृति के विरुद्ध हो।

7. संस्कारविरुद्ध:

कई प्रकार के भोजन को अनुचित ढंग से पकाया जाए तो वह विषमय बन जाता है. दही अथवा शहद को अगर गर्म कर लिया जाए तो ये पुष्टि दायक होने की जगह घातक विषैले बन जाते हैं।

8. कोष्ठविरुद्ध:

जिस व्यक्ति को  कोष्ठबद्धता हो, यदि उसे हल्का, थोड़ी मात्रा में और कम मल बनाने वाला भोजन दिया जाए या इसके विपरीत शिथिल गुदा वाले व्यक्ति को अधिक गरिष्ठ और ज़्यादा मल बनाने वाला भोजन देना कोष्ठ-विरुद्ध आहार है।

9. वीर्यविरुद्ध:

जिन चीज़ों की तासीर गर्म होती है उन्हें ठंडी तासीर की चीज़ों के साथ लेना।

10. अवस्थाविरुद्ध:

थकावट के बाद वात बढ़ने वाला भोजन लेना अवस्था विरुद्ध आहार है।

11. क्रमविरुद्ध:

यदि व्यक्ति भोजन का सेवन पेट सॉफ होने से पहले करे अथवा जब उसे भूख ना लगी हो अथवा जब अत्यधिक भूख लगने से भूख मर गई हो।

12. परिहारविरुद्ध:

जो चीज़ें व्यक्ति को वैद्य के परामर्श अनुसार नही खानी चाहिए, उन्हें खाना-जैसे कि जिन लोगों को दूध ना पचता हो, वे दूध से निर्मित पदार्थों का सेवन करें।

13. उपचारविरुद्ध:

किसी विशिष्ट उपचार- विधि में अपथ्य (ना खाने योग्य) का सेवन करना. जैसे घी खाने के बाद ठंडी चीज़ें खाना (स्नेहन क्रिया में लिया गया घृत)।

14. पाकविरुद्ध:

यदि भोजन पकाने वाली अग्नि बहुत कम ईंधन से बनाई जाए जिस से खाना अधपका रह जाए अथवा या कहीं कहीं से जल जाए।

15. संयोगविरुद्ध:

दूध के साथ अम्लीय पदार्थों का सेवन।

16. हृदयविरुद्ध:

जो भोजन रुचिकार ना लगे उसे खाना।

17. सम्पदविरुद्ध:

यदि अधिक विशुद्ध भोजन को खाया जाए तो यह विरुद्ध आहार है. इस प्रकार के भोजन से पौष्टिकता विलुप्त हो जाती है. शुद्धीकरण या रेफाइनिंग करने की प्रक्रिया में पोषक गुण भी निकल जाते हैं. जैसे रिफाइंड तेल व बहुत ज्यादा सफेद चीनी आदि।

18. विधिविरुद्ध:

जहाँ तक संभव हो भोजन व भजन एकांत में होना चाहिए

इस प्रकार के भोजन के सेवन से अनेक प्रकार के चर्म रोग, पेट में तकलीफ़, खून की कमी (एनेमिया), शरीर पर सफेद चकत्ते, पुंसत्व का नाश आदि प्रकार के रोग हो जाते हैं।

किन चीजों के साथ क्या नहीं खाये?

(Food Combinations to be Avoided) :

दूध के साथ:

दही, नमक, मूली, मूली के पत्ते, अन्य कच्चे सलाद, सहिजन, इमली, खरबूजा, बेलफल, नारियल, नींबू, करौंदा,जामुन, अनार, आँवला, गुड़, तिलकुट,उड़द, सत्तू, तेल तथा अन्य प्रकार के खट्टे फल या खटाई, मछली आदि चीजें ना खाएं।

दही के साथ:

खीर, दूध, पनीर, गर्म पदार्थ, व गर्म भोजन, खीरा, खरबूजा आदि ना खाएं।

खीर के साथ:

कटहल, खटाई (दही, नींबू, आदि), सत्तू, शराब आदि ना खाएं।

शहद के साथ:

घी (समान मात्रा में पुराना घी), वर्षा का जल, तेल, वसा, अंगूर, कमल का बीज, मूली, ज्यादा गर्म जल, गर्म दूध या अन्य गर्म पदार्थ, शार्कर (शर्करा से बना शरबत) आदि चीजं ना खाएं। शहद को गर्म करके सेवन करना भी हानिकारक है।

ठंडे जल के साथ:

घी, तेल, गर्म दूध या गर्म पदार्थ, तरबूज, अमरूद, खीरा, ककड़ी, मूंगफली, चिलगोजा आदि चीजें ना खाएं।

गर्म जल या गर्म पेय के साथ:

शहद, कुल्फी, आइसक्रीम व अन्य शीतल पदार्थ का सेवन ना करें।

घी के साथ:

समान मात्रा में शहद, ठंडे पानी का सेवन ना करें। काँसे के बर्तन में दस दिन या अधिक समय तक रखा हुआ घी विषाक्त हो जाता है।

खरबूजे के साथ:

लहसुन, दही, दूध, मूली के पत्ते, पानी आदि का सेवन ना करें।

तरबूज के साथ:

ठण्डा पानी, पुदीना आदि विरुद्ध हैं।

चावल के साथ:

सिरका – विनेगर ना खाएं।

नमक:

अधिक मात्रा में अधिक समय तक खाना हानिकारक है।

उड़द की दाल के साथ:

दहीं और मूली ना खाएं।

केले के साथ:

मट्ठा पीना हानिकारक है।

दूध, सुरा, खिचड़ी- इन तीनों को मिलाकर खाना विरुद्धाहार है। इससे परहेज करें।

खाने के एकदम बाद चाय पीना (इससे शरीर में आइरन की कमी आ जाती है)।

उड़द की दाल के साथ दही या तुअर की दाल का सेवन करना (दहीबड़े वास्तव में विरुद्धाहार हैं) ।

सलाद का सेवन मुख्य भोजन के बाद करना. ऐसा करने से सलाद को पचाना शरीर के लिए मुश्किल हो जाता है और गैस तथा एसिडिटी की समस्या उत्पन्न हो सकती है।

 

उम्मींद करता हूँ कि आप को यह आर्टिकल पसंद आया होगा।

हरिस मोदी  +91 95863 10689

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