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पृष्ठ/अध्याय 2 गुमनाम आकार

एक तरफ कॉलेज में रचना अपनी जिंदगी जी रही थी दूसरी तरफ आकार गुमनामी की जिंदगी जी रहा था। आकार .... एक सामान्य दिखने वाला लड़का.....। जिसकी जिंदगी में सिर्फ और सिर्फ दर्द ही भरे पड़े थे। वह जिंदगी की एक बाजी संभालता था तो दूसरी बाजी बिगड़ जाती थी। उसका खास कोई दोस्त नहीं था। सिर्फ एक.. रघु रोकड़ा। इस सामान्य सी दिखने वाली चौल का गुंडा। एक्चुअली, इसे तो  चौल भी नहीं कह सकते।


आकार जहां पर रहता था वह सोसाइटी निम्न मध्यम वर्गीय लोगों से भरी पड़ी थी। यहां पर सब अपने अस्तित्व को टिकाए रखने के लिए भागते रहते थे। किसी को किसी की नहीं पड़ी थी। जब भी त्योहार होते थे सब मिलजुल कर एक दूसरे के साथ उसे मनाते थे। शहर के दरम्यान पूरी सोसाइटी सारे मतभेद भूलकर एक हो जाती थी। तब आकार को भी लगता था कि उसकी एक  फेमिली है।  पर यह खुशी ज्यादा देर टिकने नहीं थी।


अपने दो रूम किचन के घर में आकार अकेला रहता था। कुछ साल पहले तक उसकी दादी उसके साथ रहती थी। पर तीन साल पहले उसका देहांत हो जाने के बाद आकार बिल्कुल अकेला हो गया था।


"आकार, क्या कर रहा है भीडु?" रघु रोकड़ा ने फ्लेट में अंदर आते हुए कहा।


"तैयार हो रहा था। ऑफिस का टाइम हो रहा है। आज भी लेट हो गया। फिर से डांट पड़ेगी।" आकार ने मुरझाए हुए चेहरे से कहा।


"आज काम से छुट्टी ले ले। तुझे मेरे साथ आना है। " रघु ने कहा।


"नहीं मैं छुट्टी नहीं ले सकता। "आकार ने चिढ़ते हुए कहा। "वैसे भी बॉस मुझसे नाराज है। अगर ऐसे अचानक छुट्टी ले ली तो वह मुझे नौकरी से निकाल देंगे।"


"अरे! उसकी इतनी हिम्मत? अपून के दोस्त को निकाल के तो दिखाए। तू घबरा मत। अपन कॉल करता है।" रघु ने अपने दादागिरी वाले अंदाज में कहा।


"नहीं। अगर तूने कॉल किया ना तो फिर वह कभी मुझे ऑफिस में नहीं घुसने देगा। वैसे भी पता नहीं कितने दुश्मन है मेरे। और वह साला आशुतोष... हमेशा वह मेरे बुराई करने में लगा रहता है। काम सारा मैं करता हूं और सारी क्रेडिट वही ले जाता है।" आकार ने गुस्से में होंठ चबाते हुए कहा।


"तो इस गुस्से को भरके क्यों रखा है? ले यह कट्टा और कर धाय। " रघु ने अपनी पैंट में फंसे हुए तमंचे को बाहर निकाल कर आकार के दाहिने हाथ में रखते हुए कहा।


"अरे! ..... नहीं... मैं यह नहीं कर सकता। किसी की जान लेना गुनाह है। और तुम भी क्या छोटी-छोटी बातों में तमंचा निकाल लेते हो। कुछ हुआ नहीं निकाला कट्टा। दुनिया के मसले ऐसे सोल्व नहीं होते।" आकारने ऑफिस जाने की तैयारियां करते हुए रघु को कहा।


"देख भीडु , आज तो तू कहीं नहीं जाएगा। तेरा बॉस क्या ऊपर से तेरा भगवान भी आ जाए ना तो भी नहीं जाएगा।" रघु ने आकर के हाथ से लैपटॉप बैग छिनते हुए कहा।


"अरे यह क्या पागलपन है? मेरे साथ भी तू अब ऐसे ही दादागिरी करेगा? वैसे हां, मेरे साथ तो कोई भी दादागिरी कर सकता है ना? मैं तुझे से मंदिर में लगाया हुआ घंटा हूं। जो भी आता है बजा कर जाता है। तू छोड़ यार। जाने दे मुझे। नौकरी का सवाल है। " आकारने उदास चेहरे से कहा।


" देख यार, आज के दिन तो ऐसा उदास मत हो। तुझे अगर पसंद नहीं तो आज मैं भी तेरी तरह जेंटलमैन बन जाऊंगा। पर आज  उदासी या गुस्सा नहीं। आज अपुन का बर्थडे है। आज अपुन तेरे को पार्टी दे रहा है। और अपुन अभी तेरे बॉस को बताता है कि तू मेरे साथ है।"

रघु ने आकार के फोन से ही आकार के बोस को फोन लगाया।


" अरे बॉस चीड़ जाएगा। छोड़ ना। शाम को करते हैं। मैं कोशिश करूंगा कि मैं जल्दी आ जाऊं।" अगर अभी बोल ही रहा था कि रघु ने लगाया हुआ फोन आकार के बॉस ने उठा लिया।


" हेलो आकार कहां हो तुम? तुम्हारा यह रोज का हो चुका है। आधे घंटे में ऑफिस नहीं पहुंचे ना तो कभी मत आना। मुझे तुम्हारे जैसे लोगों की कोई जरूरत नहीं।" बोस बहुत ही ज्यादा गुस्से में थे।


"ओए... आवाज नीचे कर। रघु भाई का नाम सुना है तूने? " रघु ने अपने दादागिरी वाले अंदाज में कहा।


"रघु भाई वह कौन है और तू कौन बोल रहा है? क्या आकार को किडनैप कर लिया है? अगर कर भी लिया है ना तो रखना अपने पास। एक तू ना काम का ना काज का दुश्मन अनाज का। इंपॉर्टेंट प्रोजेक्ट का एक भाग तो संभाल नहीं सकता और चला था बड़ा प्रोजेक्ट लीड करने। देख भाई मैं तो तुझे भी सलाह देता हूं। उसके पास कुछ नहीं है। वह तो फटीचर है फटीचर। उसको किडनैप करके तुझे कुछ नहीं मिलेगा। इससे बेहतर है उसे तू यहां ऑफिस छोड़ जाए। काम करेगा तो जो पैसे आएंगे वह तो उससे लूट पाएगा।" बस अभी भी अपनी धुन में बोल रहे थे। इतने में रघु ने गुर्राहट से कहा,


"ओए पिंटू क्ले चिंटू क्ले, क्या बकवास कर रहा है? अपुन रघु भाई बोल रहा है रघु रोकड़ा। और देख उसे फटीचर बोला है ना तूने? अब तू देख। तेरी तो अपुन ऐसी बैंड बजाएगा कि तू जिंदगी भर याद करेगा। आकार अपुन का दोस्त है। और क्या कहा तूने? ना काम का ना काज का? तू खिलाता है क्या उसे? बहुत पैसे आ गए हैं तेरे पास? तो थोड़े अपुन को भी दे दे। आप उनके पास खत्म हो गया है। मैं अपूनके आदमी को भेजता हूं। अगर उसके साथ तूने दो लाख नहीं भिजवाए, तो..... समझ रहा है ना तू। और सून, यह गीदड़ धमकी किसी और को देना। अपूनके दोस्त को अगर तूने नौकरी से निकाला ना तो तेरा इस शहर में जीना मुश्किल कर दूंगा। बड़ा आया नौकरी से निकालने वाला।" इतना बोलते ही रघु ने फोन काट दिया।


उस तरफ ऑफिस में बॉस पसीने से लथपथ हो चुके थे। उनको यकीन नहीं हो रहा था कि आकार का कोई दोस्त भाई भी हो सकता है। अभी वह संभले भी नहीं थे और आकार का फोन फिर से उनके मोबाइल पर बज उठा।


"और सुन, आकार आज नहीं आने वाला। आज वह अपूनके साथ पार्टी करेगा। समझ गया?" फिर एक बार रघु की आवाज सुनकर बॉस की सिटी बिट्टी गुम हो गई।


इस तरफ आकार रघु को मना कर रहा था कि बोस से इस तरह से बात ना करें। पर रघु कहां किसी की सुनता था?


उसने आकार का लैपटॉप बैग संभाल कर तिजोरी में वापस रखा और उसका हाथ पकड़कर फ्लैट से बाहर ले आया।


"अब टेंशन खत्म हो गई ना? चल अपूनके साथ। यार अपुन का तेरे सिवा है ही कौन? और तेरा भी अपूनके सिवा है कोई क्या?" यह सुनकर कंधे पर हाथ रखा और उसे खींच कर अपनी छाती से लगा लिया।


'कहां मिलता है ऐसा दोस्त आजकल।' यह सोचते हुए उसने आंखों में आए हुए आंसुओं को फिर से आंखों में वापस धकेल दिया।


रघु उसे बाहर लंच करवाने ले गया। वह पूरा दिन आकार के साथ ही रहा। और जैसे कि रघु ने वादा किया था उसने कुछ भी उल्टा सीधा ना किया ना कहा। रघु के लिए आकार उसके भाई से भी ज्यादा था। पता नहीं क्यों पर  रघु को एक अजीब सा लगाव था। उसका भी कोई दोस्त नहीं था। उसके शागिर्द थे और सब उससे डरते थे। उसकी ताकत दिमागी और शारीरिक थी। पर दिल से वह भी अकेला था।  बस यही एक कनेक्शन काफी था इन दोनों के बीच। रघु ने पूरा दिन आकार के साथ बिताया। रघु को बहुत अच्छा महसूस हो रहा था। आकर भी अपने दुख और दर्द भरी परेशान जिंदगी से वह गया था। एक यही दिन था जब वह जी भर कर एंजॉय करता था। एक और दिन भी था जब वह बहुत ज्यादा एंजॉय करता था। वह था उसका खुद का बर्थडे। रघु आकार की जिंदगी था। शाम को रघु खुद अपने लिए केक लेकर आया। उसने और आकार ने आकार के घर पर ही केक कट किया। उसके बाद रघु अपने लिए एक खंभा और आकार के लिए एक थम्सअप लेकर आया था। दोनों ने "चियर्स... " करते हुए एक दूसरे के ग्लास को अपने ग्लास से छुआ। दोनों काफी देर तक बातें करते रहे। फिर नशे में धुत रघु वहीं पर सो गया।


पर आकार को नींद नहीं आ रही थी। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर उसकी जिंदगी का क्या मकसद है। ना तो वह अच्छा कमाता था नाही अच्छा दिखता था। उसे यह समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर उसकी जिंदगी अकेले कैसे गुजरेगी।


तभी उसे अपनी दादी की कही एक बात याद आई।


"बेटा, एक बात हमेशा याद रखना। तुम जैसे हो वैसे ही खुद को स्वीकार करना और खुद को प्यार करना कभी ना भूलना। हम अगर इस दुनिया में आए हैं तो यह समझ ना की कोई फिल्म हमारे नाम से भी लिखी गई है। और जो फिल्म चल रही है उसमें हमारा भी एक पात्र लिखा गया है। हम जैसे दिखते हैं, हम जैसे होते हैं वह सब उसी पात्र की वजह से होता है। और अगर कभी भी तुम्हें ऐसा लगे कि तुम्हारी जिंदगी का कोई अर्थ नहीं तो यह जरूर याद रखना कि तुम्हें एक मकसद से दुनिया में भेजा गया है। वो मकसद पूरा किए बगैर ही चले जाओगे तो बार-बार इस दुनिया का चक्कर काटना होगा।" 


दादी को याद करके ही आकार की आंख में पानी भर आया। वह अपने बेड पर आया और दादी की फोटो को सीने से लगाकर बेड में ही सो गया।










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