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उड़ने को है आकाश

 उड़ने को आकाश: पठनीय संग्रह! 

          हिन्दी -मराठी भाषा के जाने माने लेखक रामचन्द्र किल्लेदार द्वारा लिखित 'उड़ने को आकाश' यह वाचनीय काव्यसंग्रह पढ़ने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। यह संग्रह शॉपिज़न. इन संस्था ने पाठकों के लिए बहुत ही आकर्षक ढंग से प्रकाशित किया है। काव्य संग्रह का मुखपृष्ठ आशय को न्याय दिलाने में अहम भूमिका निभाता है। शॉपिज़न संस्था कि कुछ खास वैशिष्ट्य है, जैसे कि किताब के पेज़, अक्षरों का आकार, साथ ही सजावट बड़ी आकर्षक होती हैं, जो इस किताब में भी दिखाई देती है। जिस किताब को देखतेही उसे हाथों में लेने कि इच्छा जागृत होती है, वह लेखक और प्रकाशक का यश होता है।

      लेखक रामचन्द्र किल्लेदार ने इस काव्यसंग्रह में विभिन्न सामाजिक विषयों पर पचपन कविताएं शामिल कि है जो उनकी उच्चतम काव्यप्रतिभा को प्रकट करती हैं। सभी कविताओं का यहां उल्लेख करना आसान नहीं है। कुछ कविताओं के बारे में चर्चा करना फर्ज बनता है।

      जीवन में रोज नए इस काव्य में कविने हर समय घटने वाली घटनाओं का जिक्र किया है। उन्हें क्या कहना है या वे क्या सोचते हैं, यह बात दो पंक्तियों से स्पष्ट होती है…

     खोजें तो मिल जाएं समस्याओं के हल। 

     ढूंढते नही ढिंढोरा पीटते हैं लोग।

    समस्या हर समय, हर जगह मनुष्य का स्वागत करती हैं। समस्याओं का समाधान खोजने से अवश्य मिलता है, लेकिन कई लोग हल ढूंढ़ने के बजाय संकटों का ढिंढोरा पीटने में समाधान मानते हैं। कविमित्र ने बहुत ही अच्छे शब्दों में यह बात वाचकों के सामने सरलता से रखी है।

      अन्य एक काव्य रंग-बिरंगा जीवन में बालक के स्वभाव को पानी के रंग से जोड़ते हुए, उसके जीवन में कैसे बदलाव आते हैं यह बात उनकी कलम दृढ़तापूर्वक स्पष्ट करते हुए लिखती हैं…

     धीरे-धीरे बालक के स्वभाव पर 

     परिवार के, समाज के रीति-रिवाजों का 

     झूठ- फरेब का रंग चढ़ता जाता है... ।  

   बालक जो जन्म लेते समय कोरे कागज जैसे होता है। उसका चरित्र बनाने में परिवार और समाज बड़ी अहम भूमिका बजाता है। बालक मुलत: अनुकरण प्रिय होता है। आस-पास जो घटनाएं घटती हैं, वह उस तरह बनता चला जाता है, यह बात मानसशास्त्र भी बताता है। इसलिए बच्चों के सामने व्यवहार करने से पहले सोच समझकर कदम उठाना चाहिए, ऐसा एक अनमोल संदेश रामचन्द्र जी लेते हैं। 

     आजकल समाज स्वास्थ्य दिन-ब-दिन बीघड़ता जा रहा है। छोटी-छोटी बातें वाद-विवाद, मारपीट और दंगा-फसाद कि ओर ले जाती है। साथ ही घटनाओं का निषेध करने का तरीका अपनाते समय लोग  कुछ सोचे बिना मेहनत से पकाई हुई सब्जियां फेंक देते हैं या गो माता का दूध रास्तों पर बहा देते हैं। यह देखकर रामचन्द्र जी का कवि मन दुखी होकर लिखता है…

बहा रहे हो दूध 

फेक रहे हो सब्जियां, 

तुम कैसे हो अन्नदाता ? 

कम से कम 

गाँव के कुपोषित बच्चों का 

ख्याल तो कर लेते.......।

        आज का दौर कुछ और पाने का है। मानव जिस परिस्थिति में है, वहां वो खुश नहीं हैं। उससे ज़्यादा पाने कि लालसा उसे अस्वस्थ करती है। आजकल जवान और सुशिक्षित लोगों को अपने देश के बजाय विदेश में अपना करियर बनाने कि इच्छा जागृत हो रही है। 'अपना शहर अपना देश' इस कविता में कवि बड़ा कटु सत्य वाचकों के सामने लाते है…

अपना शहर अपना देश 

छोडकर विदेश जानेपर 

पता चलती है कीमत इनकी ।

        आजकल शहरों में रहने वालों कि संख्या बढ़ती जा रही है। इसलिए वृक्षों को काटते हुए इमारतें खड़ी हो रही है। इस वज़ह से बरसात बहुत कम हो रही है, धरती मॉं इस वजह से परेशान, त्रस्त है। भूमि वर्षा ऋतु से प्रार्थना करती है, जो किल्लेदार जी ने बड़ी मासूमियत से प्रकट किया है…

बहुत जली हूं, बहुत तपी हूं 

मै प्यासी धरती हूं 

अब तो प्यास बुझाने आ जाओ वर्षा ।

    कुछ सालों से 'मी टू' यह अभियान चल रहा है। जिससे बड़े-बड़े लोग या तो परेशान है या फिर उनका सच सामने आ रहा है। रामचन्द्र किल्लेदार कि सोच कितनी गहरी है, उन्हें लगता है, यह मी टू आंदोलन गांधीजी के युग में चलता तो क्या होता…

अच्छा है आज गांधी जी 

और उनकी सेविकाएँ जीवित नहीं हैं। 

नही तो कोई उनमे से सामने आती

आरोप लगाकर सनसनी फैलाती 

सोशल- मीड़िया आकर कहती मी टू...... !

         बुढ़ापा एक अनचाहा मुकाम, पर हर किसी को इस मंजील से गुजरना पड़ता है। बुढ़ापा और जीवन इस काव्य पंक्तियों में रामचन्द्र जी एक बुजुर्ग का सच सामने रखते हैं। इसे पढ़कर हर ज्येष्ठ सदस्य को ऐसा लगेगा कि अरे, यह तो मेरा अनुभव है। जब यह भावना पाठकों के मन में पनपती है तो वह लेखक की सर्वश्रेष्ठ कलाकृति होती है। कवि लिखते है…

किसीके ना चाहते हुए 

वह जिंदा है, खुश है 

अपने परिवार के बीच है 

लेकिन अकेला है ....।

     कुछ महीने पहले हिंदुस्तान के राजकीय पटल पर एक बहुत बड़ा मोड़ आ गया। काश्मीर से धारा 370 और 35 ए को हटाया गया। कश्मीर की जनता के साथ-साथ भारतीयों को भी बहुत खुशी हुई है। यह खुशी कवि रामचन्द्र जी ने 'एक दीपक काश्मीर के नाम' इस कविता में उद्धृत किया है…

इस दीपावली एक अतिरिक्त 

दीपक जलाना है, 

जलाएंगे काश्मीर की 

आज़ादी के नाम ।

       समाज में शिक्षा का प्रमाण जरूर बढ़ गया है लेकिन समाज में दरिंदगी भी बढ़ती जा रही है। समाज में बढ़ती यह हैवानियत महिलाओं को झेलनी पड़ रही है। यह देखकर रामचन्द्र जी का दुखी होना उनकी इंसानियत जिंदा होने का प्रमाण है। उनकी कलम उनकी मनोदशा के साथ-साथ उनके जैसे कई लोगों के मनोभावों को प्रकट करती है…

उन्होंनें खिलौना समझा

उसकी इज्जत से जैसा चाहा खेला 

पकड़े जाने के डर से 

बाद में छांटा गला और जला डाला।

      आजकल नौजवान कही और खोएं हुए हैं। ना उन्हें समय का खयाल है और ना ही वे क्या कर रहे हैं इस बात का पता है। 'जवानी' काव्य में कवि जवानों की अवस्था स्पष्टता से प्रकट करते हैं…

हाथ में मोबाईल 

मोबाईल में हो भरपूर ड़ाटा 

और..... साथ में हो गर्लफ्रेंड 

ना कोई गम ना कोई चिंता ।

        जिस कविता को संग्रह का शीर्षक बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है, 'उड़ने को आकाश' यह  कविता एक अलग संदेश लेकर आती है…

पंख हुए हैं घायल लेकिन 

उड़ने को आकाश है। 

मिलेगी मंजिल जरूर हमको 

मन मे दृढ़ विश्वास है।

      कुल मिलाकर कवि रामचन्द्र किल्लेदार का यह काव्य संग्रह सामाजिक विषयों पर और बड़े अच्छे संदेश लेकर वाचकों के सम्मुख आया है, जो सराहनीय है। श्री रामचन्द्र किल्लेदार जी के हाथों भविष्य में ऐसी ही रचनाओं निर्माण हो, ऐसी शुभकामनाएं।

                  ००००

उड़ने को आकाश : कविता संग्रह 

कवि : रामचन्द्र किल्लेदार 

         (9425711508)

प्रकाशक: शॉपिज़न डॉट इन 

पृष्ठ संख्या : 75

मूल्य: ₹ 150/-

परिचय : नागेश शेवालकर, पुणे 

             (9423139071)

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