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जिंदगी



वो बिखरती चली जा रही है और हम समेटते!

ताज के पत्तोकी तरह हो गई है जिंदगी,


न उसे रुकनेका शौक था! न हमें, कयोंकि यूँही

चंद लम्हो की ख्वाईशोसे नहीं बनती है जिंदगी,


चाहतसी तडप होनी चाहिए ईसे जीनेमें, वरना

किसीको भी नहीं बक्षा तो हमें क्यों बक्षेगी ये जिंदगी,


कुछ नादानीयत वहभी करती हैं! कुछ हमभी, पर

हमारी नादानीयतसे बहुत कुछ सिखा जाति हैं जिंदगी,


कई मौके मीलते हैं ईसे बनाने और बिगाडने के

पर होता वहीं है जो चाहती  हैं जिंदगी,


हम यूँही नहीं हूऐ है वतन परस्त

बहुत कुछ तुजकोभी सीखाना हैं जिंदगी,


ईंमंतीहां के लिए हर वक्त खडे है तेरे इंतज़ार में

कहींसेभी और कुछभी पुछ हमतो जीतेगेही जिंदगी।


                   

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