वर्क फ्रॉम होम
कल एक चर्चा सत्र में विषय दिया गया
वर्क फ्रॉम होम कहाँ तक उचित/उपयोगी है??
पिछले वर्ष हम सबकी डिक्शनरी में कुछ शब्द जुड़े... सोशल डिस्टेंसिंग, लॉकडाऊन, ऑनलाइन स्टडी.... और *वर्क फ्रॉम होम*!!
1990 के बाद देश में सूचना और तकनीकी क्रांति हुई.. देश में टेलीफोन और कंप्यूटर्स आए...! और हर क्षेत्र में हमेशा आगे रहने वाले हम भारतवासियों ने इस क्षेत्र में भी झंडे गाड़ दिए!!
आज अमेरिका और अन्य देशों में अधिकतम सॉफ्टवेयर इंजीनियर भारतीय हैं!
देश में बैंगलोर, चेन्नई, पुणे, हैद्राबाद और गुडगाँव जैसे शहर आय. टी. हब बने..
अब इसमें इंदौर का नाम भी है!
आय. टी. सैक्टर के कारण जहाँ देश के लाखों नौजवानों को रोजगार मिला, हजारों इंजिनियर कॉलेज खुले, लाखों इंजिनियर बाहर निकले... हर घर में एक इंजिनियर...
हर घर से एक युवा आय टी में...!
परिवार के परिवार अपने छोटे शहर छोड़ कर पुणे-बैंगलोर-हैद्राबाद या विदेशों में बस गये...
जो परिवार नही जा सके अपना शहर छोड़ कर वे पालक छोटे शहरों में अकेले रह गए.!
आय टी शहरों में भारत के हर कोने से भीड़ इकट्ठा हो गई..जनसंख्या विस्फोट हो गया!
देश के बड़े बड़े बिल्डरों से लेकर तो छोटे पिछड़े भागों से मजदूर, सफाई कर्मचारी, खाना बनाने वाले, ऑटो चलाने वाले...... सब करोड़ों की संख्या में यहाँ पहुंचे..
इन शहरों ने अपनी पहचान ही खो दी.. इनकी संस्कृति पर अतिक्रमण होने लगा...
आय टी के नाम पर लेट नाइट पार्टी, शराब, लीव इन न जाने क्या क्या शुरू हो गया!
आयटी कल्चर हमारे कल्चर पर हावी हो गया!
और प्रदूषण का स्तर तो इस हद तक बढ गया कि शहर में धूल धूंएँ के गुबार उठ गए... लंबा ट्रेफिक जाम..... गाडियों की कतारें.... हॉर्न का शोर.... लोग घटों जाम में फसे.... ऑफिस में काम करने का समय कम और ऑफिस पहुँचने का समय ज्यादा!
झीलों को भर कर, जंगलों को काटकर मल्टियां बना दी गई.. पीने का पानी और शुद्ध हवा के लिए लोग तरस गए!
बैंगलोर में तो झील बचाओ अभियान शुरू हुए लेकिन पैसा.. और लाखों के पैकेज ने सबका मुँह बंद कर दिया!
और फिर आया कोरोना... लग गया लॉकडाऊन! और फिर शुरू हुआ *वर्क फ्रॉम होम* आज लगभग एक साल हो गया है.... घर से काम करने में कोई दिक्कत नहीं आई... दिव्यांग जनों के लिए रोजगार के अवसर खुल गये... बच्चे घर लौट आये... अपने शहर में... अपनें लोगों के बीच!
लेट नाइट पार्टी खतम... ड्रिंकिंग, स्मोकिंग, लीव इन खतम... अब वे पिज्जा और मूवी के बिना भी जिंदा हैं... वर्क फ्रॉम होम के कारण उनका आने जाने का समय बच रहा है, सैलेरी बच रही है... घर परिवार के साथ वे एक क्वालिटी टाईम जी रहे हैं..!
आय टी शहर खाली होने लगे हैं... यातायात सामान्य है.., मीलों का ट्रेफिक जाम नही है..... काम फिर भी शुरू है...टारगेट्स पूरे हो रहे हैं...प्रॉफिट हो रहा है!
तो मुद्दा यह है कि हम यह नही चाहते कि लोग जिंदगी भर *वर्क फ्रॉम होम* करें या शिक्षक ताउम्र ऑनलाइन पढ़ाए ..रंतु यह भी ऑप्शन है!!!
अब जब सब कुछ सामान्य हो जाएगा तो ऐसी व्यवस्था हो कि 40:60 के अनुपात में कर्मचारी ऑफिस जाएँ.. जिससे यातायात सामान्य रूप से चले कर्मचारियों को शिफ्ट में बुलाया जाए.. मतलब कर्मचारी "अ" यदि इस हफ्ते आया है तो अगले हफ्ते कर्मचारी "ब" आए!
बच्चों को हफ्ते में छह दिन की जगह तीन दिन बुलाया जाए...! शिक्षकों को भी बारी बारी बुलाया जाए!
अब घर में उतनी सुविधा नही मिलती, माहोल नही मिलता, अनुशासन नही रहता... यह सब तो मन के खेल हैं!
चाहें तो सब संभव है, हम कर रहें हैं...
समय लगेगा पर असंभव नही!
देखिए.... उपयोगी है या नही यह तो हम इतनी जल्दी नही कह सकते लेकिन अब तक तो *ऐसा भी हो सकता है* यह विचार ही नही आया!!
अब जब यह संकल्पना मिली है तो क्यूँ न भविष्य में इसका एक संतुलित तरीके से सदुपयोग कर इसे उपयोगी या उचित बना लें!!!
*उचित या उपयोगी कुछ अपने आप होता नही है, बनाना पड़ता है!!*
तो चलिए
अवसर का लाभ उठाएँ... आगे बढें और भारत को जगतगुरु बनाने में अपना योगदान दें...!
जय हिंद!!
©ऋचा दीपक कर्पे