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अब हम ख़ुश है।

अब हम ख़ुश है।

अब हम बहोत ख़ुश है।


चार सदस्यों के छोटे से परिवार में

अब हम झगड़ते नहीं है।

पहले जब साथ बैठकर खाना खाते थे,

तब बच्चें अक्सर उलझते रहते थे।

मुझे नमक कम पड़ जाता,

तो उसे मिर्ची ज़्यादा लग जाती।


लेकिन अब हम ख़ुश है।

अपनी अपनी थाली सजाकर

एक अपरिचित धर्मशाला की तरह

अपनी अपनी जगह चुन लेते है।

कोई सोफ़े पे, तो कोई गद्दे पे,

कोई कुर्सी पे, तो कोई चद्दर पे।


पहले हम बातें करते थे तो

बड़े तनाव में रहते थे।

किसी को बुरा लग जाता,

तो कोई रूठ के उठ जाता।

कोई खाना छोड़ देता,

तो कोई जा के सो जाता।


पर अब हम ख़ुश है।

अब सिर्फ़ टेलिविज़न बोलता है,

और हम ख़ामोश रहते है।

मेरे बदन पे जितनी झुर्रिया हैं,

उससे ज़्यादा मेरी उम्र है।

न मैं देख पाता हूँ, न वो सुन पाती है।

फिर भी हम ख़ुश है।


अब भी कुछ नहीं बदला।

टेलिविज़न बोलता रहता है।

दीवारें सुनती रहती है।

कौनें छत को ताकते रहते है।

हम अब भी ख़ामोश है;

और ख़ुश है।

अब हम बहोत ख़ुश है।

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© धर्मेश गांधी

नवसारी


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