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स्त्री

स्त्री शोषित या शक्ति।
१)
अबला नाम से जिसको बुलाये जानी वाली हस्ति जो है वो है स्त्री। क्या वो अपने दम पे खुदको बुलंद नही कर सकती?
ना शक की सुई पनपती रहती है, जो हमारे व्यवहार को अंदरूनी खोखले करने के लिए पर्याप्त है।
शख्शियत भूल जाने की यह अदा ही प्रेम है तो विश्वास करो यह सब भ्रम है, भ्रमणा के चलते हमने एक स्त्री को जो सर्व शक्तिमान है, जो खुद शक्ति का अवतार है , जिस के अंदर उत्पत्ति है उसको समाज ने हम जैसे लोगों ने एक दमन का कारक बना दिया है।
क्यों करती हो इतना सहन, नही बनना है तुजे सहनशीलता की मूर्ति। तू दुर्गा ही सही है। उठ ओर शस्त्र उठा और शास्त्र लिख। यक़ीनन पूरा भारतवर्ष तुजे पढ़ेगा ओर पूजेगा। सन्मान में झुकेगा ओर इतिहास बनेगा।
२)
किसीको देखा मेने आज, पूरी शिद्दत से खुद के लिये लड़ते ओर वो भी खुद से। बरसो से दबाये रखे हुए वो अल्फाज शायद वो आज निकल ही जाने वाले थे लेकिन जिम्मेदारियों की बेड़ियों ने जुबाँ को कस के पकड़ रखा था। हा, कुछ तो निकलने वाला था पर एक मासुम से फूल की कुहार ने न निकलने दिया, जिस दर्द को बरसो से दिलमे दबाया था वो आज निकल जाता पर बाहर बैठे बाबूजी की एक खाँसी ने रोक लिया। में भी क्या पागलो की तरह सलाह मशवरे करने बैठ जाता हूं। वो स्त्री है, वो लड़की है, वो सहनशीलता की मूर्ति है। उसको वो सब सहना है। वो दर्द से परे नही हो सकती। हा शख्ती ला सकती है वो अपने लहजे में, पर शख्त तो नही बन सकती। शत शत नमन करता हु में तुम्हे। वास्तव में तुम स्त्री साक्षात देवी हो, जगदंबा कही और नही तुजमे ही है। रणचंडी ही तू है और राम्या भी तू ही है। तेरे भीतर ही वात्सल्य की अखुट सरिता बहे रही है। तू ही तू है।।।
कोटी कोटी नमन नारी तुजे।।।

डॉ. संजय जोषी (अंतिम)

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