रचना के विवरण हेतु पुनः पीछे जाएँ रिपोर्ट टिप्पणी/समीक्षा

नारी

इंटरनैट पर "नारी डायरी" ग्रुप के आग्रह पर आज एक कविता लिखी.

मंचीय कविता मैं लिख नहीं पाती फिर भी प्रयास किया है.


ममता का भार उठाने वाली

श्रृंगार प्रिय, कोमल नारी हूं.

धार बहुत मेरे कटाक्ष में,

कुदृष्टि को चीरती आरी हूं.

             

छाया हूं, लता हूं, अबला हूं,

बीते दिन की बात हुयी.

हर मोड़ पर अग्रणी मैं,

भारत की नई नारी हूं.


अहिल्या को भूली मैं,

प्रतीक्षा ;क्यों किसी राम की?

अनसूइया सी प्रखर, सजग

छल -प्रपंच पर भारी हूं. 


आतंकियों के भय से

मुंह ढांप लिया था हमने.

सबल बांहों ने रक्षा हेतू,

रोक लिया था घर में.


आदिकाल से अग्निशिखा   बन

हवनकुंड में चमक रही,

दबे अंगारों में चटक उठी,

वो सन सत्तावन की चिंगारी हूं  .


मैं श्रृंगार प्रिय, कोमल, भारत की नई  नारी हूं!!!

टिप्पणी/समीक्षा


आपकी रेटिंग

blank-star-rating

लेफ़्ट मेन्यु