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बुढ़िया की मौत

बुढ़िया की मौत (कहानी)

माहौल गंभीर था। शांति छाई हुई थी। आंगन में पड़ी चारपाई पर बुढ़िया लेटी थी। वह 1 सप्ताह से बीमार थी। हाथ पैर सब सूज गए थे। कुछ लोगों का मानना है की सूजन से पता चल जाता है कि रोगी का अंतिम समय अब निकट है। सबको रोगी से स्नेह होता जान पड़ने लगता है। अड़ोस पड़ोस के लोगों का रोगी को देखने का तांता लगना शुरू हो जाता है।

बुढ़िया को देखने के लिए पड़ोस की औरतें आई थी। क्या हुआ कैसे हुआ प्रश्न पूछे। अच्छी जगह इलाज कराओ। फला डॉक्टर बढ़िया है आदि सजेशन दिए। थोड़ी-बहुत घर गृहस्ती की बातें की और चली गई।

 

भाई दिवाली का त्यौहार नजदीक था। उसकी तैयारी भी तो करनी थी।

आप घर में बुढ़िया की चारपाई के पास केवल घर के सदस्य थे। बुढ़िया की बहू, बहू की तीन बेटियां। सबके चेहरे लटके हुए थे।

"मुझे कुछ नहीं होगा,"बुढ़िया जो बात कई बार कह चुकी थी फिर कहने लगी,"मेरे शंकर को फोन कर दो। उसे देखने की बड़ी इच्छा हो रही है। वह आ जाएगा तो मैं ठीक हो जाऊंगी। वह मुझे अच्छे डॉक्टर के पास ले..।"

"दिवारी का टाइम है हम्मा! उन्हें छुट्टी मिलना मुश्किल है।"बहू ने झुंझला कर जवाब दिया।

 

बुढ़िया का शंकर इकलौता पुत्र था जो दिल्ली में एक बड़ी सी मिठाई की दुकान पर काम करता था। वह वहां 7 साल से था और अब मिठाइयों का बड़ा का बिल कारीगर बन गया था। मालिक उसे खूब पसंद करता था। उसकी अच्छी खासी पगार थी।

दिवाली जैसे त्यौहार पर मिठाई की बिक्री बहुत बढ़ जाती थी जिसकी वजह से किसी भी वर्कर को छुट्टी मिलना मुश्किल हो जाता था। दूसरे दिवाली पर मालिक की तरफ से मिलने वाले बोनस का लालच भी वर्करों को छुट्टी नहीं लेने देता था।

 

"वह मेरा लाला है! वह दौड़ा चला आएगा। तुम फोन तो करो।"बुढ़िया ने गर्दन अकड़ आकर बड़े गर्व से कहां।

"फोन तो कर दिया है!"बहू ने दबी आवाज में झिझकते  हुए कहा। बुढ़िया शायद सुन नहीं पाई इसीलिए खामोश रही।

 

तभी दरवाजे की कुंडी खटकी। सबसे छोटी लड़की जो 7 साल की थी दरवाजे के पास खेल रही थी ने मा के कहने पर दरवाजा खोला।

"पापा आ गए! पापा आ गए!"बाहर शंकर को देखकर वह खुशी से चिल्ला पड़ी।

शंकर ने एक हांथ से बेटी को गोद में उठा लिया। दूसरे में बैग था ।वह आंगन में आ गया। आंगन में चारपाई पर लेटी मां के पास पहुंचकर रुका। बैग बहू को थमा कर मां के पैर छुए और चारपाई पर ही बैठ गया। बुढ़िया तो शंकर को देखते ही चारपाई से उठ बैठी थी।

"देख!,"बुढ़िया में गजब की फुर्ती आती जान पड़ी शंकर को देखकर,"मैंने कहा था ना मेरा शंकर दौड़ा दौड़ा चला आएगा। वह सबूत है कपूत नहीं। अब मैं बिना इलाज के ही ठीक हो जाऊंगी!"

बहु शंकर को आश्चर्य से देखे जा रही थी जबकि शंकर हंस-हंसकर मां से बातें करने में मशगूल था। जिस गुड़िया का बोल नहीं निकलता था वह खूब चटर-पटर बातें कर रही थी।लग ही नहीं रहा था कि वह 1 हफ्ते से बीमार है।

 

बहू बेटियों ने मिलकर खाना बनाया। बुढ़िया ने जिद करके शंकर के साथ खाना खाया। फिर ढेर सारी बातें की और बातें करते करते सो गई।

"सुबह अम्मा को बड़े अस्पताल ले जाऊंगा। उसके लिए कोई गाड़ी बुक करके आता हूं।"शंकर ने अपनी बीवी से कहा और गांव में चला गया।

गांव में अब काफी सेकंड हैंड ओमनी बोलेरो आदि गाड़ियां लोगों ने खरीद ली थी। लोगों ने बिजनेस के परपस से खरीद रखी थी गाड़ियां। शादी विवाह, बीमारी दुख तकलीफ में गाड़ियां बड़ी मददगार साबित हो रही थी। वरना पहले तो जब गांव में वाहनों की बड़ी किल्लत थी तो कई मरीज तो समय पर अस्पताल ना पहुंचे ने की वजह से मौत से पहले ही मर जाते थे।

 

सुबह बुढ़िया बहुत खुश थी। आश्चर्यजनक रूप से उसके हाथ पैरों की सूजन भी गायब हो गई थी। एक पड़ोसी मुस्कुरा कर बोले,"बेटे के प्यार ने दवा का काम किया है!"

 

शंकर बुढ़िया को ओमनी से शहर के बड़े अस्पताल ले जाने लगा तो बुढ़िया बोली,"अब डॉक्टर की जरूरत नहीं। तू आ गया है मैं अपने आप ठीक हो जाऊंगी।"

पर शंकर नहीं माना।

बुढ़िया ने बहु की तरफ तिरछी निगाहों से देखा और बड़े गर्व से बोली,"देख शंकर को मेरी कितनी फिक्र है! मेरा बेटा सपूत है!"

 

बुढ़िया को ओमनी में बैठाकर शंकर शहर चला गया। वहां से शाम को ही लौट पाया।

"क्या कहता है डॉक्टर?"बुढ़िया को अंदर चारपाई पर लेटा कर शंकर घर के बाहर ओमनी वाले को पैसे देने आया तो एक पड़ोसी ने पूछ लिया।

"डॉक्टर बोला कि घर ले जाओ। सेवा खुशामद कर लो जितने दिन हैं।"शंकर ने उदास स्वर में जवाब दिया।

 

उसका जवाब पड़ोसी के जरिए शीघ्र ही सारे गांव में जंगल की आग की तरह फैल गया। लोग बाग बुढ़िया को देखने हालचाल पूछने आने लगे।

 

यह सिलसिला काफी देर तक चला।

 

आने जाने वालों को यह देखकर बेहद आश्चर्य होता था की बुढ़िया के चेहरे पर जरा भी शिथिलता नहीं जान पड़ती थी। वह पूरे जोश होश के साथ सबसे हंसकर मुस्कुरा कर बातें कर रही थी। देखने आ रहे लोगों के उदास चेहरों को देखकर बुढ़िया मुस्कुराकर बेफिक्री से कहती,"अरे, काहे रोनी सूरत बना रखी है। मुझे कुछ नहीं होगा। अभी मेरी उम्र ही क्या है 70 साल। पूरे 100 साल जियूगी.. पूरे 100 साल! मेरा सपूत शंकर आ गया है। अब मुझे कुछ नहीं होगा।"

 

लोगों का आना जाना बंद हुआ तो शंकर अपने कमरे में आ गया। पीछे बीवी को कमरे में खाना लाने को बोल गया था। सो बीवी थाली में खाना परोस कर कमरे में ले आई।

कमरे में लालटेन का उजाला फैला था। उस गाड़ी लाइट नहीं आ रही।

 

"एक बात नहीं बताई मैंने तुम्हें!,"खाना खाते खाते अचानक रुक कर शंकर भोला।

"क्या?"बीवी ने उसकी तरफ हैरानी से देखा।

"डॉक्टर कह रहा था की अम्मा के बच्चेदानी में बुरी तरह इंफेक्शन है! बच्चादानी सड़ गई है! ऑपरेशन से निकालनी पड़ेगी!"

 

"ऑपरेशन से अम्मा ठीक हो जाएंगे!"

"हां!"शंकर ने झिझकते हुए कहा। फिर तुरंत ही बोला,"ऑपरेशन.. बाकी दवा दारू का टोटल खर्चा ₹50000 तक आ जाएगा!"

 

कमरे में कुछ देर सन्नाटा पसरा रहा।

"आपने क्या सोचा?"कुछ देर बाद बहू ने पूछा।

"तुम बताओ?"शंकर ने जवाब देने की जगह उल्टा सवाल किया।

"यह ऑपरेशन वाली बात किसी को बताई क्या?"बहू ने बड़े रहस्यमय ढंग से संजीदगी से पूछा।

"नहीं।"

"बताना भी मत! अम्मा तो अपनी जिंदगी जी चुकी!₹50000 खर्च करके वह ठीक हो भी गई और दो चार साल 5 साल चल भी गई तो क्या हो जाएगा। वैसे की वैसे भी किल्लत है। ऊपर से तीन तीन बेटियां। उनकी पढ़ाई लिखाई खाना कपड़ों का खर्चा। उनकी शादियां भी तो करनी है। महंगाई का जमाना है। एक-एक पैसा जोड़ों के तभी सब सही से निपट पाएगा।"

 

"मैं भी यही सब सोच रहा था! इसीलिए ऑपरेशन वाली बात किसी से नहीं कही!"

 

आंगन में चारपाई पर लेडी बुढ़िया शंकर के बचपन की शरारती के बारे में सोच सोच कर मन ही मन मुस्कुरा रही थी। यकायक जाने क्या सूझा वह उठी और शंकर के कमरे की तरफ चली आई।पर भीतर से आ रही आवाज में कानों में पड़ी तो चौखट पर ही अटक गई थी। और जब अंदर की बातें सुनी तो फिर कमरे में जाने का साहस न जुटा पाई और उल्टे पैर वापस आंगन में अपनी चारपाई पर आकर लेट गई।

अब उसके मुख पर गहरी वेदना साफ झलकती दिखाई दे रही थी जो उसके अंदर दिल के टूटने की खबर साफ-साफ दे रही थी। आंखों में धीरे-धीरे नमी उतरती जा रही थी और शीघ्र ही आंसुओं का सैलाब आंखों से बह निकला।

 

सुबह घर में कोहराम मचा था। 100 साल तक जीने का दावा करने वाली बुढ़िया चल बसी थी।

 

शंकर को बुढ़िया की तेरहवीं तक रुकना पड़ा।

 

पैरवी में शंकर ने कोई कसर नहीं छोड़ी। दिल खोलकर खर्चा किया जो लगभग चालीस 50000 के आसपास का था।

 

हर कोई शंकर की तारीफ कर रहा था।

"भाई, लायक बेटा है शंकर! मां की पैरवी में उसने जरा भी कंजूसी नहीं की! पूरी कचोरी तीन तीन सब्जी सलाद पापड़ लड्डू रसगुल्ला कितना कुछ तो बनवाया उसने! ऐसे सपूत भगवान सबको कहां देता है!"

पंडित तो कुछ ज्यादा ही तारीफ कर रहे थे शंकर की जिन्हें उसने एक-एक स्टील का लोटा अंगोछा रामचरितमानस की छोटी किताब और 11 _11 रुपए दक्षिणा के रूप में दिए थे।

"ऐसे सपूत ईश्वर हर किसी को दे!"पंडितों ने चलते समय यही कहा था।

 

घर के आंगन में औरतें खाना खा रही थी। एक बुजुर्ग महिला बोली,"सब शंकर की तारीफ कर रहे हैं पर शंकर जैसे बेटे बड़े त्याग से मिलते हैं! तुम लोगों को तो यह पता भी नहीं होगा कि जब शंकर 2 साल का था तब किसी गंभीर बीमारी की चपेट में आ गया था। डॉक्टरों ने महंगा ऑपरेशन बताया था जबकि ऑपरेशन से वह बचेगा भी या नहीं उसकी कोई गारंटी नहीं थी।शंकर के बाप ने तो साफ मना कर दिया था कि उसके पास ऑपरेशन के लिए पैसे नहीं है।पर शंकर की मां ने रो-रोकर आसमान सर पर उठा लिया था। वह जिद पकड़े थी कि शंकर का ऑपरेशन कराया जाए। बाप ने पैसे का रोना रोया। रोना क्या रोया उस समय सच में पैसों की बड़ी तंगी थी। पर शंकर की मां ने अपने सारे जेवर बाप को सौंप दिए थे जबकि उसे जेवरों से बड़ा मोह था। शंकर के बाप से जिद करके लड़कर उसने वे जेवर बनवाए थे।

 

शंकर के बाप को उसकी मां की जिद के आगे झुकना पड़ा था। फिर शंकर का ऑपरेशन कराया गया और ऑपरेशन सफल रहा। पर उसके बाप ने जब उसकी मां से कहा कि वे उसे अब कभी जेवर नहीं बनवा पाएंगे तो शंकर की मां शंकर को खुद से चिपकाए हंस कर बोली थी कि उसका शंकर ही उसके लिए जेवर है।"

 

अंधेरे में खड़ा शंकर सब सुन रहा था। यकायक पता नहीं क्या हुआ जो शंकर मां के मरने पर ना रोया वह फूट-फूट कर रोने लगा।

सब चौंक कर  उस ओर देखने लगे थे।

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