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दोस्ती हमारी

दोस्ती हमारी
      सौ. अनला बापट

आज बहुत दिनो बाद , वह मेरे घर आया था।
कभी किसी वक्त एक दूसरे के घर पड़े रहने वाले, पक्के मित्र थे हम, पर जैसे जैसे उम्र बढ़ रही थी.. हम दोनों के बीच दूरी भी बढ़ रही थी।
दूरी के कारण कई थे, पर सच्चाई यह थी की हम दिलोसे कभीभी दूर नहीं हुए। 
जब फेसबुक, व्हाटसअप जैसे एप नहीं थे, तब भी मुझे उसकी और उसे मेरी, हर हालत का पता रहता ही था, क्योंकि हम दोनो दिलोसे जुड़े थे।
आज भी वह आया और मेरी बीबी की इधर उधर की पचासों बाते सुनकर चला गया, पर मैं... सिर्फ मैं, जान पाया की वह बहुत दुःखी था। अपनी भाभी, यानी मेरी पत्नीके हाथोसे बने पकोड़े खाते हुए, हसकर भाभीसे बाते कर रहा था, पर उसकी आंखों की उदासी सिर्फ मुझे नज़र आ रही थी। वह बाहर की बारिश को सुहानी बताकर अंदर की बारिश छुपा रहा था, यह सिर्फ मैं ही समझ सकता था और कोई नही, तभी तो वह मेरे पास आया था,अपने जिगरी दोस्त के पास।
आज तो मैने उसे जाने दिया क्योंकि सब लोगोंके बीचमें उसकी समस्या पूछकर नीचा नहीं दिखाना चाहता था, कल मिलकर पूछ लूंगा।
पर पता नही क्यों आज अजीबसी बैचेनी हो रही है, लग रहा है जैसे, कुछ छूट रहा है। कही वह...
"सुनो मैं अभी आता हूं" अपनी पत्नीको बताकर निकला हूं। आश्चर्य है आज हरबार की तरह, मेरी पत्नी ने भी नही टोका, उसे भी शायद कुछ डर लग रहा है, उसका डरा सहमा चेहरा बता रहा है। पर आश्चर्य यह है की मेरी पत्नीने मेरे निकलने पर आपत्तिजनक एकभी शब्द नही कहा , ऐसा पहले तो हुआ नही कभी, मैने कहा न आपसे आज कुछ बात अलग है। 
जी, बिलकुल सही पहचाना आपने, मैं उसीके पास जा रहा हूं।
सीधा जाकर पूछूंगा,"बता बे क्या छुपा रहा है? यही है क्या तेरी दोस्ती? यही है क्या तेरा प्यार?"
सोच रहा हूं, आज कह ही दूं की, बस बहुत हुआ अब बीबीओसे डरना, कलसे हम बचपनकी तरह ही मिलेंगे, मौज मस्ती करेंगे।
सोच तो मैं बहुत कुछ रहा हूं पर क्या वो मानेगा, क्योंकि यह दुरिया जो बनी थी इनकी शुरूआत मेरी तरफसे ही हुई थी, क्योंकि मेरी ही शादी पहले हुई थी।
जब मैं, अपनी बीबी की आगोश में राते रंगीन कर रहा था, तब वह, दूरसे आहत पक्षीकी तरह तड़प रहा था। पर तबभी मैं उसके मन की पीड़ा समझ रहा था इसीलिए मैंने उसेभी शादी करने की सलाह दे दी थी।और वह दुल्हन ले भी आया!
पर मैं जब उससे मिलने गया तो बोला,"यार बीबी अपनी जगह है, पर यार दोस्त पहले।" लगा जैसे उसने बिना मारे ही तमाचा जड़ दिया हो, धीरे धीरे मैंने दूरी बनाना शुरू कर दिया, क्योंकि मुझे उसकी सच्चाई नीचा दिखाती थी।
पर कुछ भी हो, वह है ईमानदार तो हैं, और इसमें कोई शक नहीं है मुझे।
पर आज वह क्या कहने आया था, क्यों इतनी निरीह थी उसकी आंखे? नि:शब्द बैठा रहा पूर्ण समय..शायद वह सोच रहा था की मैं पूछूं उसका दुःख या शायद उसका दुःख खुलकर कहने लायकही न हो। पता नही क्या था आज जो मुझे समझ में नहीं आ रहा था, पर कुछ था जरूर!
मैं उसके घर पहुंचा, बड़ी गहमा गहमी दिख रही थी वहा पर। कई लोग दिख रहे थे, पर वो न था। शायद अंदर हो, इसलिए मैं अंदर जाने निकला लेकिन लोगों की भारी भीड़ने रोक दिया। "कितने लोगोसे बनती है इसकी, और सभी को एकसाथ मिलेगा क्या वह?" सोच मैं बाहर खड़ा आवाज देकर उसे बुलाने की कोशिश करने लगा, लेकिन न तो वह आया ना ही उसकी आवाज!
ऐसा उसके साथ भी हुआ होगा कई बार, क्योंकि मैं एक जानेमाने राजनीतिक दल का एक जाना माना नाम था। अब उसकी पीड़ा मैं समझ रहा था। पर अब भी कुछ था जो मेरी समझ के परे था।
खैर मुलाकात नहीं होगी अब, यह जानकर मैं वापिस अपने घर को मुड़ा। वापिस आते आते रास्ते में कुछ लोग मिले जो मुझे और उसे जानते थे। वे हमारी दोस्ती की ही बाते कर रहे थे, अच्छा लगा सब सुनकर।लगा काश वह भी सुने मेरे साथ यह सब।
खैर यह सब सुनते सुनते कब घर आया पता ही नही चला। 
मैं अंदर जाने लगा, पर एक आश्चर्य, मेरा मेरे घरपर ही इंतजार कर रहा था, और वह था मेरा यार!
मेरा यार यही था मेरे घर में, और मैं उसे गली गली ढूंढ रहा था।
मैं उसके पास गया, वह फुटफुट कर रो रहा था। मैने उसे चुप कराने के लिए , अपना हाथ उसकी पीठ पर रखा, वह पीछे मुड़ा मुझे देखकर एकदम गले से लिपट गया।
निशब्द थे हम दोनोही, पर अनेक शब्दो का आदान प्रदान मन ही मन हुआ।
"मेरे बिना कैसे गए तुम?", शिकायत कर रहा था वह।
"अरे नही, मैं तो तुम्हे ढूंढने तुम्हारे घर गया था"
"अच्छा मतलब तुम जानते थे की मैं भी आऊंगा?"वह हंसकर पूछ रहा था।
हम दोनो के बीच की दूरियां मिट चुकी थी,और यह देख
भीड़ हम दोनो को एकसाथ उठाकर ले जा रही थी। हमारी दोस्ती के गुणगान गाते हुए हम पर फूल और पैसे बरसाते हुए। 
हम दोनो भी भीड़ में एकदूसरे का हाथ थामे बड़ी खुशीसे चल रहे थे। वह हमेशा की तरह हंसकर बोला,"आज हाथ पकड़कर चलते हम इन्हे नजर नहीं आ रहे नही तो पचासों कारण दिए जाते हाथ छुड़वाने के और तुम्हे और मुझे अलग कर दिया जाता, जैसा कि पहले कई बार किया गया है।
"सही कहा तुमने, पर सच्चे दोस्त हाथ छोड़ देंगे पर साथ नही" मैं भी हसा एकदम खुलकर, वैसे भी अब हमारी हसी हमतक ही सीमित थी।

"कभी साथ नही छोड़ेंगे", वादा निभाया था उसने।
मेरे साथ अनंत पथ पर वो भी चल निकला था।
बिना कहे भी बहुत कुछ वह कह जाता था, आज तो बहुत कुछ कर गया था।
दोस्तो, मैं आपको यह कहानी इसलिए बता रहा हूं,की अगर आपका भी कोई ऐसा दोस्त है,तो समय रहते ही गिले शिकवे दूर कर उससे गले मिल ले,क्योंकि अनंत पथ पर आप साथ चल भी लिए तो भी मिलाने के लिए न तो हाथ होता है ना गला!
सौ. अनला बापट
राजकोट
७०४३३४९८२७

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