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सिद्धार्थ

 

कहानी--सिद्धार्थ
 
      घर पर कुछ विशेष मेहमान आनेवाले थे, मेहमानों के लिए मांसाहारी भोजन बनने वाला था ।बाहर आँगन में खेलते खेलते आठ वर्षीय सिद्धार्थ को किसी पशु की चीत्कार सुनाई दी ,उसने इधर उधर देखा कुछ नजर नही आया ,दौड़कर घर के अंदर गया तो किचन के पिछवाड़े जा उसने देखा तो सिद्धार्थ की चीख निकल गई चारो 
 ओर खून ही खून, मास ही मास नजर आया ।सिद्धार्थ घबराकर भयभीत हो बाहर की ओर भागने लगा ,भागते भागते किसी से टकराया । टकराने वाले ने सर पर हाथ रख प्यार से सहलाते हुए पूछा क्या बात है तुम इतना क्यो भयभीत हो ? सिद्धार्थ कुछ देर उन्हें पकड़ यू ही खड़ा रहा !फिर सारी बात उसने विस्तार से बताई ,और कहा मुझे घर नही जाना ,में आपके साथ ही रहूंगा ।
भिक्षुक ने हँसते हुए कहा--- पहले अपने माता पिता से तो पूछ लो ,क्या वे तुम्हारे बगैर रह पाएंगे ?
मुझे नही पता ,जहाँ मेहमानो को खुश करने के लिए ,जीभ के स्वाद लिए पशुओं को मारा जाता हो वहाँ मुझे नही रहना ।
समझा -बुझाकर भिक्षुक (बोद्धय सन्यासी) ने सिद्धार्थ को घर पहूंचा दिया ।
सिद्धार्थ के घर के पास बौद्ध लोगो का मठ था ।अक्सर माँ के साथ जाता था ।वहाँ विराजित भगवान बुद्ध की प्रतिमा  देखता तो घंटो निहारता ,घर जाने का उसका मन नही करता ।उसके आकर्षण का कारण वह बुद्ध की शांत ,मनोहारी प्रतिमा थी।
सिद्धार्थ स्वभाव से शांत ,करुणामय पशु पक्षी से प्रेम करने वाला था ।उसे मठ में आते भिक्षुक वहाँ विचरण करते पशु पक्षी अपनी और आकर्षित करते । माँ अक्सर भगवान बुद्ध की जीवन के बारे में  कंहानी  के रूप में बताया करती।


सिद्धार्थ घर तो आ गया ,मगर वह अब अनमना गुमसुम सा रहने लगा ।वह रोज उस सन्यासी को देखता ,और भाग कर उनके पास जाता ,एक ही बात कहता मुझे अपने साथ ले चलो ।
सिद्धार्थ को उदास देख और उदासी का कारण जान माता पिता  ने सिद्धार्थ  के लिए  मांसाहार छोड़ दिया ,उससे कहा कि अब घर पर कभी मांसाहार नही बनेगा ,पर सिद्धार्थ का मन तो घर से उचट गया था ।
सिद्धार्थ अपने निर्णय पर कितना अटल है, देखने हेतु एक दिन सन्यासी ने उसे तेल से भरा कटोरा दिया और कहा कि घर के अंदर हर कमरे में इसे लेकर जाओ, परएक बूंद तेल नही गिरना चाहिए ।माता पिता को भी कुछ निर्देश दिए ,बेटे को जो मोहित करे ऐसा घर सजाओ ,घर को खूब सजाया गया ,सिद्धार्थ की पसंद के खाने की महक आ रही थी ,मनपसंद खिलौने भी उसके कमरे में रखे गए 
सिद्धार्थ ने  अपने माता पिता और भिक्षुक के सामने शर्त रखी ,कहा ठीक है अगर में इस परीक्षा में पास हो गया तो मुझे आप दीक्षा देंगे ,आप दीक्षा लेने दोंगे ।
सिद्धार्थ सारे घर मे तेल से लबालब भरे कटोरे को ले घुमा ,मगर एक बूंद भी तेल नही गिराया ,सारा ध्यान अपने लक्ष्य पर ही रहा ।
भिक्षुक एवम माता पिता समझ गए कि अब सिद्धार्थ को अपने लक्ष्य से भटकना संभव नही है ,इस सत्य को जान ज्ञान के मार्ग पर चलने के लिए खुशी खुशी प्रेम से विदा कर दिया। भिक्षुक के साथ विदा करते समय किसी की आंखों में कुछ खोने की पीड़ा थी तो किसी की आंखों में ज्ञान पिपासा की चमक--####@ 


लता सिंघई -/अमरावती ,महाराष्ट्र
स्वरचित एवम अप्रकाशित रचना

 

 

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