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अनुसूया

अनुसुइया

उद्धव अपने भांजे के साथ बाजार गया था। रास्ते में उन्हें एक मंदिर दिखा। उद्धव बोला - ‘‘चलो जरा मंदिर में प्रभु के दर्शन कर लें।’’ उद्धव के भांजे ने पहली बार उस मूर्ति को देखा था, सो वह जिज्ञासावश बोला - ‘‘ये कौन से प्रभु हैं, मामाजी।’’ उद्धव बोला - ‘‘ये भगवान दत्तात्रेय हैं। क्या तुम इनके बारे में नहीं जानते ? रूको, मैं तुम्हें इनकी कहानी सुनाता हूं।’’ मंदिर में एक चबूतरे पर दोनों बैठ गये, और उद्धव ने कहानी सुनाई। ‘‘अत्री ऋषि की पत्नी देवी अनुसुइया की प्रशंसा तीनों लोकों में होने लगी। इससे देवी माता लक्ष्मीजी, दुर्गाजी व सरस्वतीजी काफी परेशान हो गईं और उनकी परीक्षा लेने भगवान ब्रम्हा, विष्णु व महेश को भेजा। वे तीनों साधु बनकर अनुसुइया के पास पहुंचे व उनसे निर्वस्त्र होकर भिक्षा देने को कहा। पहले तो अनुसूइया धर्मसंकट मे पड़ गयी वे ऐसा कैसे करेगी फिर सती अनुसुइया ने कुछ मंत्रोच्चार किया और उन त्रिदेवों को नवजात बालक बना दिया तथा उन्हें भिक्षा के रूप मे स्तनपान कराने लगी। इधर जब बहुत देर तक तीनों देव वापस नहीं आए, तो तीनों देवियां अनुसुइया के यहां पहुंचीं व देवों के बारे में पूछने लगीं। अनुसुइया बोली - ‘‘तीनों देव यहां नहीं आए।’’ तब वहां नारदजी प्रकट हुए व उन्होंने कहा कि अंदर जो बालक हैं, वही तीनों देव हैं। अनुसुइया ने तीनों देवों को अपने असली रूप में लाने हेतु पुनः कुछ मंत्र पाठ किया। तीनों देवों ने असली रूप में आकर भगवान दत्तात्रेय का अवतार लिया। उसी दिन दत्त प्रभु का जन्म हुआ।’’

‘‘अरे वाह ! कितनी रोचक कहानी है, मैं अपने दोस्तों को भी भगवान दत्तात्रेय की कहानी सुनाउंगा।’’ - भांजा बोला। ‘‘चलो, अब प्रसाद लेकर घर चलें’’ - उद्धव बोला।

गुरूदेव दत्त भगवान की जय

 

कु. जयश्री गोविंद बेलापुरकर, हरदा

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