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प्रभु श्रीराम

रघुवंश का कुलदीपक तू
जन्म तूने मेरे पेट से लिया,
सभी का चहेता तू पर
ए राम क्यूं तूने मुझे दूर किया

मां मां कर जब तूने
कैकई को गले लगाया
सच कहती हूं मन ही मन
तूने मुझे बहुत जलाया

जब गैरो को तू अपनाकर
दिला का राजा बन गया
मेरी आंख का तारा तू
मेरी नजर से कोसो दूर रहा

क्या थी मेरी गलती बता
क्यों मुझे विरह वेदना दी
अभी बहूसे बतियाना था बाकी
पर वह तो तेरे साथ चल दी

बता ए राजीव नयन
क्यों थी तूने मेरी कोख चुनी
सिर्फ नाम मात्र मैं मां बनी
असमंज में हूं क्या हूं मैं ऋणी?

नौ महीने तुझे पाला मैने
फिरभी मैं तुझे न समझ सकी
क्यों हो गए विरक्त तुम
या दी सजा, कौनसा पाप था बाकी?

बरस पर बरस बीत रहे
तेरा जन्मदिन आता है
कौन समझा इस कौशल्याको
कितना दर्द मुझे तड़पाता है।
सौ. अनला बापट

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