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प्यार की जीत

      "क्या? यह कतई संभव नहीं है। तुम पागल हो गई हो.", अपर्णा लगभग चौंकते हुए बोली।

     "नही मम्मी, मैं पागल नही हुई हूं। मेरे लिए आपने इतना कुछ किया है, तो बस यह एक आखिरी बार, प्लीज प्लीज मम्मी!" बाइस वर्षीय, बेटी सुगंधा हाथ जोड़े अपर्णाके आगे खड़ी थी।

     अपर्णाको मन ही मन उसपर बहुत गुस्सा आ रहा था।

     दरअसल हुआ यूं था की, सुगंधा अपने कॉलेजके दोस्त मिहिरसे, प्रेमविवाह करना चाह रही थी। विवाहको अपर्णाने भी अनुमति दे दी थी। परंतु मिहिरके घरवालोंने अपर्णाके सामने एक अजीबसी शर्त रख दी थी। जो अपर्णाको कतई मंजूर नहीं थी, वह शर्त थी की सुगंधाका कन्यादान वह और राजेश दोनो मिलकर करे।

     सुगंधाकी बातोने अपर्णाको अतीतकी गलियारोंमें ला छोड़ा, जहां वह सिर्फ तीस साल की थी। 

      बीस साल पहले की अपर्णा, दो साल की परी, सुगंधा की मां थी। घर में सब कुछ ठीक चल रहा था और एक दिन अचानक उनके पति राजेशको ऑफिससे अमेरिका जानेका सौभाग्य प्राप्त हुआ। वह दोनो एकदम खुश थे। पहले राजेश अकेले जाकर, घर लेकर, इन दोनोको बुलाने वाले थे। 

     तय किए अनुसार राजेश अकेले चले गए। जाकर उन्होंने ऑफिस ज्वाइन कर लिया।           बेहद बुद्धिमान राजेशने तुरंतही अपनी होशियारीके दमपर कार्यालयमें अपनी एक जगह बना ली। पर अनजाने में ही वह ऑफिसके साथ साथही उनकी तत्कालीन बॉसके मनमें भी जगह बनाते चले गए। और एक दिन वही हुआ जिसका डर था। उस अंग्रेजी मैमने राजेशको साथ रहनेके लिए आमंत्रित किया। 

      सभी सहयोगियों का कहना था की मैम कुछ दिन ही रहेंगी साथ बाद में खुदही अलग हो जाती है। यह वह पहले भी कई लोगोके साथ कर चुकी थी। जिन लोगों ने प्रस्ताव को अस्वीकार किया उन्हें नौकरी छोड़नी पड़ी, जिन्होंने स्वीकार किया उनमें से कई तरक्की की सीढ़ियां आम लोगोसे जल्दी चढ़ गए। राजेश बुरी तरहसे फंस गए। जाते है तो पत्नीसे बेवफाई होगी,नही जाते तो तरक्कीके खुले रास्ते सिमट जाते।

      उन्होंने उस वक्त अपर्णाको कुछ और न बोलते हुए सिर्फ इतना कहा की,"अभी तुम्हारा वीजा होना मुश्किल है। छह एक महीना लग जायेगा। फिर मैं वहां आऊंगा और साथही तुम्हे ले आऊंगा। भोली अपर्णा मान भी गई।

इधर राजेश बॉसके साथ रहने चले गए।

     हालांकि लोग जैसा सोचते थे, वैसा कुछ नही था, बड़ेसे फ्लैट में दोनो के दो अलग अलग कमरे थे। घर में उनके अलावा एक बड़ी उम्र की नौकरानी एवं एक ड्राइवर भी साथ में ही रहते थे। वह मैम हर समय कम में डूबी रहती थी। अत: कभी कभी रातको एक बजेभी दरवाजा ठोककर उसे बाहर बुलवाकर, हॉल में बैठकर वह काम की बाते करते थे, और ज्यादातर इस समय में वह नौकरानी भी वही रहती थी। मैम का यह व्यवहार राजेशको भी आश्वस्त कर गया, और वह बिना झिझक काम करने लगे। बाद में मैमकी बातो से पता चला, कि वह मैम सिर्फ व्यक्ति परीक्षणके लिए साथ रखना चाहती थी, ताकि कंपनी के कुछ महत्वपूर्ण काम देनेसे पहले, उस व्यक्ति की अच्छेसे जांच परख हो जाय। 

     जैसे अपेक्षित था,चार पांच महीनों में ही राजेश तरक्कीकी तीन सीढ़ियां चढ़ गए। पांचवे महीनेमें उनकी बॉसने उन्हे कंपनीकी तरफसे एक नया फ्लैट दिलवा दिया।

     अब अपर्णा को अमेरिका बुलवाना कोई मुश्किल काम नही था। राजेश ने तुरंत अपर्णा और सुगंधा का वीजा करवाया, और महिनेभर के अंदर छोटी सुगंधा के साथ अपर्णा, राजेशके पास पहुंच गई।

     दोनो काफी दिनो बाद मिले थे, अतः एकदूसरेसे करीबसे मिलनेकी उत्कंठाको सुगंधाकी वजहसे दबा रहे थे। पर जैसे ही सुगंधा सोई, दोनो एकदुसरेके करीब आए।

राजेशने अपर्णाके दोनो गालोंको दोनो हाथोमें ले , अपर्णा का चेहरा थोड़ा ऊपर अपनी तरफ किया तो अपर्णाकी आंखे शर्मसे बंद हो गई। अपर्णाको बंद आँखोसे ही राजेश की हर हलचल पता लग रही थी ,यही कारण था की जैसे ही राजेश उसके माथेको चूमने आगे बढ़ा, अपर्णा ने,"चलो हटो" कहकर खुदको उससे अलग कर लिया। लेकिन राजेशभी कहां कच्चा खिलाड़ी था, उसने दूर जाती अपनी पत्नीको उसका हाथ पकड़कर खींचा और अपने बाहुपाशमें जकड़ लिया। 

"अब कहां जाओगी बचकर?" कहकर राजेशने अपर्णा के ओंठोपर अपने ओंठ टीका दिए। फिर तो जैसे अपर्णाने भी आत्मसमर्पण कर दिया। छह महीने की दूरियां मिनिटो में खतम हो गई।

     मौसम में जैसे बहार आ गई हो, ऐसे अपर्णा और राजेशके जीवन में भी फिर से रोमांस का बसंत खिल चुका था। दोनो ही रति मदनके पूरक बन एक दूसरे पर प्यारकी बारिश बरसा रहे थे। बच्ची सुगंधाभी बहुत खुश थी। एक दिन अचानक अपर्णाके मनमें आया की अब दूसरा बच्चा करना चाहिए। पर राजेश इस बात के लिए तैयार नहीं थे।  

      इस बीच अपर्णाका जन्मदिन आनेवाला था। अपर्णाने मन ही मन सोचा की वह जन्मदिन की भेट स्वरूप बच्चेकी मांग करेगी।

जिस दिन जन्मदिन था, उस दिन राजेशने एक बड़ी पार्टी रखी थी जिसमे वह अपने कंपनीके सभी स्टाफको अपनी बीबीसे मिलवाना चाहते थे। 

     पार्टीके समय पर बहुतसे मेहमान आए।

अपर्णाके सजे घरको देख कर कई स्त्रियोंको जलन हो रही थी, उनमें एकने तो कहही दिया,"इतने महंगे महंगे समान हम नही खरीद सकते, आखिर ये खरीदने के लिए हम अपने आदमीको नही बेच सकते।"

     इस बात का मतलब ना समझते हुए अपर्णाने सीधा उस मेहमानको पुछ लिया की,"इसका क्या अर्थ है?"

     तब उस मेहमानने राजेशके चार महीने बॉसके साथ रहने वाली बात अपर्णाको बता दी।

      बस फिर क्या था, अपर्णा एकदम अपसेट हो गई।

      दूसरे बच्चे वाली बात तो वह भूल ही गई। बाद में सारे मेहमानो के जानेके बाद,उसने राजेश से कहा,"एक सवाल पूछूं सिर्फ हां या ना में ही उत्तर देना, इसीसे तय होगा हमारा भविष्य। "

     राजेश तो पार्टी के मूड में ही था, उसे लगा अपर्णा कुछ मजाक कर रही है, उसने तुरंत कहा,"पूछ लो!"।

     "क्या तुम एक दिन के लिए भी तुम्हारी मैडमके यहां रुके थे?" अपर्णा ने उसकी आंखो में आंखे डालते हुए पूछा।

     "हा, मैं सिर्फ कुछ दिन..." राजेशने बोलना शुरू किया पर अपर्णा तो उसकी हां सुनते बेडरूम की तरफ चल दी। उसने कुछ कपड़े बैगमें डाले और राजेश से बोली,"मेरी और  परी की जितनी जल्दीकी हो सके उतनी जल्दीकी, इंडिया की टिकट करवा दो।अब हम न तो साथ रहेंगे, न बोलेंगे।" इतना कहकर वह बैग लेकर रूमसे निकल कर अतिथिकक्ष में चली गई,और उसके पीछे पीछे राजेश गया तो उसने उसके मुंहपर दरवाजा बंद कर दिया।

राजेश बहुत कुछ कहना चाह रहा था पर वह सुनने को लिए तैयार ही नही थी।

     अथक प्रयासके बादभी जब अपर्णा कुछ सुननेको राजी नहीं हुई तो राजेशने सोचा कि उसे अभी भारत जाने दूं बाद में वही जाकर सबके सामने सच्ची बताऊंगा तो शायद घरवाले उसे समझा सके ।  यह सोचकर उसने अपर्णाको दो दिन बादका  टिकट निकल दिया।

     अपर्णा भारत आ गई, आतेही सीधे मांके घर गई, उन्हें उसने राजेशकी बेवफाईके बारे में बताया। मां को यह सुनकर, ब्रेन स्ट्रोक हो गया और उन्हें लकवा मार गया था। इकलौती अपर्णाको एक और कारण मिल गया वापस न जाने का, और साथही राजेशको गालियां देने का भी।

     इधर राजेशभी अपर्णाके पीछे पीछे ही भारत आया और अपने मातापिताको सारी बात बताकर उन्हे भी साथ लेकर वह अपर्णा और उसकी मम्मी से मिलने आया। राजेशके मातापिता माफी मांग रहे थे लेकिन अपर्णा वापस जाने को बिलकुल तैयार नहीं थी।वह बारबार एक ही  बात कह रही थी की अगर राजेश सही था तो उसने मुझे खुद होकर सब कुछ क्यों नही बताया?

     अपाहिज मांके मना करने पर उसने तलाक तो नही लिया पर खुद साथ रहने भी नही गई। और साथही सुहागनो वाला शृंगार करना भी छोड़ दिया।

     इस बीच राजेश सुगंधासे मिलने आते रहते थे, नियमित उसके लिए पैसे भेजते रहते थे। तीन सालके बाद तो वह खुद वहांकी नोकरी छोड़ भारत आ गए, परंतु अपर्णा अभीभी उनसे बात नही करती थी। 

     सुगंधा जैसे जैसे बड़ी हो रही थी उसे बहुत लगता था की सभी बच्चोंके पापामम्मी की तरह मेरे पापा मम्मीभी इक्कठे रहे लेकिन एकबार अपर्णाने उसे इसीबात पर इतनी जोर से डांटा की वह अब जिद नहीं करती थी।

पर आज उसके ससुराल वाले उसका कन्यादान दोनोसे करवाने पर अड़े थे,और इसीलिए सुगंधा अपर्णाके पीछे पड़ी थी की आप दोनो मिलकर मेरी शादी करवाओ।

     आखिर बेटी की जिद के आगे वह झुक गई। 

     शादी की रस्में शुरू हुई, घरमे रस्मोंके बहाने राजेशका आना जाना शुरू हो गया। हमेशा उदास रहने वाले राजेशके चेहरे पर एक चमक अपर्णा महसूस कर रही थी। इस बीच समधीको न्योता देनेके लिए दोनोका साथ जाना हुआ, इसबार सुगंधा साथ नही आ सकती थी अत: न चाहते हुए भी अपर्णाको राजेशके साथ अकेले जाना पड़ा। 

     राजेशको जैसे मौका मिल गया, उसने तुरंत न सिर्फ माफी मांगी बल्कि जो कुछ हुआ था वह भी बताया,साथ में यह भी बताया कि वह मैम क्यों साथ रहना चाहती थी। और उनके बीच में किसीभी तरीकेका शारीरिक संबंध नहीं बना था। राजेश सब बोल रहा था और अपर्णा सुन रही थी उसकी सिर्फ एक वजह थी वह थी उसकी बेटी की शादी।                 राजेशकी बाते अनमने मन से ही सही, पूरी सुनने के बाद उसे लगा कि शायद उससे गलती हो गई, उसे एकबार राजेश की बात सुन लेनी चाहिए थी। विचारो में मग्न उसे राजेशका इतनी अच्छी नौकरी छोड़ उसके पीछे पीछे भारत आना, बेटीको बापका प्यार कम न मिले इसके लिए प्रयत्न करना, शादीमें भी पूरे उत्साह से काम करना सब कुछ नजर के सामने से एक चलचित्र की भांति निकल गया। इसी दौरान राजेश का कई बार उससे माफी मांगने का प्रयास, बिना भूले समय समय पर पैसे भेजना, उसके जन्मदिन पर फूल और कोई भेट भेजना सब कुछ याद आ रहा था। अपर्णा को अब लगा की "शायद मैं गलत थी, मुझे लोगोके कहने में आकर इतनी जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए थी। आजभी इसके दिल में मेरा स्थान वैसा ही है जैसा पहले था।"

     समधीके घर पहुंचकर न्योता देकर वापस निकलते समय अपर्णा बोली ,"मंदिर होकर चलते है।"

     राजेश चौक गया, लेकिन कार मंदिर के सामने रुकाई।

      "इस ईश्वरको साक्षी बनाकर कहो, जो भी तुमने थोड़ी देर पहले कहा वह सब सच है" अपर्णा ने राजेश से कहा।

      "हा मैं इस ईश्वर की साक्षी में कहता हूं की मैंने कहा हुआ एक एक शब्द सच है।"

      राजेश के इतना बोलने पर अपर्णा ने मंदिर में रखी कुमकुम डिबिया को उठाया और राजेश के सामने रखा और कहा,"आज फिर से भरो मेरी मांग, हमेशा साथ रहने के लिए।मैं समझ गई गलती मेरी थी। सॉरी।"

     राजेश तो जैसे इंतजारमें ही था,उसने तुरंत मांग भरी और ईश्वर को प्रणाम किया और अपर्णाको बोला," मैं हमेशा तुम्हारा था, हूं और तुम्हारा ही रहूंगा।आगे कभी किसी मोड़ पर कुछ भी लगे तो प्लीज बोलना मत बंद करना।"

     दोनो घर पहुंचे। मांकी भरी मांग और पिताकी मुस्कुराहट ने सुगंधाको उनके बदले रिश्ते का एहसास करा दिया, वह भी बहुत खुश हो गई। उसने राजेशको जबरदस्ती अपने साथही रुका लिया।

     देखते देखते, शादी वाला दिन भी आ गया, बेटी को विदाकर दोनो हालमें बैठे। अधिकतर मेहमान जा चुके थे।

     बेटीकी यादमें रोती अपर्णाको समझाने राजेश अपर्णाके करीब पहुंचा। रोती हुई अपर्णा उसके पास जातेही उससे लिपट पड़ी। राजेशने भी उसे और करीब ले लिया। थोड़ी देर अपर्णाको रोने दिया बाद में राजेश बोला,"अगर बेटी जानेसे बहुत दुख हो रहा है तो चलो अबकी बार एक बेटा ले आते है।"            राजेश के ऐसा बोलने से ही शरमाते हुए अपर्णा उससे दूर होते हुए बोली,"शर्म करो अब ससुर बन गए हो तुम।"

      राजेशने उसे फिर से करीब लेते हुए कहा,",क्यों शर्माऊ अपनी कानूनन बीबी के साथ ही रोमांस करना कोई गुनाह है क्या?और मुझे तो अभी पिछले बीस सालो का हिसाब भी पूरा करना है।"

      इतने में मोबाइल बजा, बेटी थी सामनेसे, बोली,"पापा मम्मी मैंने आपकी सैकंड हनीमूनकी टिकट कर दी है, सोफा के टेबल के ड्रावर में मिलेंगी। अच्छे अच्छे फोटो निकलकर मुझे व्हाट्सएप करते रहना। ऑल द बेस्ट।" कहकर उसने फोन रख दिया।

राजेशने ड्रावरसे टिकट निकली और अपर्णाको दिखाते हुए बोला,"चलो अब तो बेटीकी भी परमिशन मिल गई है।"

     इतने में वापस मोबाइल बजा, सुगंधा ही थी, बोली,"पापा मम्मी ने आपके पसंद की जलेबी बनाकर फ्रीज में रखी है उसमें से सारी मैं ले आई हूं,बस एक पिस छोड़कर वह आप दोनो इक्कठे खा लेना।"

अपर्णा लजा गई, जैसे की वह अभी अभी शादी होकर आई दुल्हन हो।राजेश उठे जलेबी ले आए और बोले "बेटी की आज्ञा माननी पड़ेगी चलो आधाआधा करके खाते है।" पर आधा  हिस्सा करने के बजाय राजेश ने आधी जलेबी अपने मुंह में रखकर बाकी अपर्णा को खाने के लिए इशारा किया। अपर्णा शर्माकर खाने है तो राजेश ने तुरंत एक सेल्फी निकाल ली। बेटी को भेजी।

    बेटी ने भी तुरंत "लव यू पापा मम्मी" कहते हुए फोटो को हार्ट शेप से रिप्लाई दी।

     बेटीने फोटो देखी है देखकर, अपर्णा शर्म से लाल हो रही थी और राजेश उसे देखते हुए सुहाने सपने देखने लगा।

©®सौ. अनला बापट

 

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