मे आई हैव योर पेन प्लीज!
May I have your pen plz
.....हाँ वो वही लड़की थी, जो लखनऊ के चिनहट बाजार स्थित 'विजडम वे प्रोग्रेसिव इंटर कॉलेज' में पांचवी जमात में मेरे साथ पढा करती थी।
उलझे बालों और गंदे बेतरतीब कपड़ों के बावजूद मेरी बेंच शेयर किया करती थी।
मुझसे बेवजह लड़ती, मेरी खाने की चीजें, बिस्किट, टॉफी आदि हाथ से छीन कर चट कर जाती और फिर ऐसे घूरती मानो मैं उसका हक मार रहा था।
रबर पेंसिल ऐसे छीन लेती थी जैसे वो उसका अपना था।
मेरे लिए ही तो एक दिन एक लड़के से भिड़ गई थी जो कि मार्शल आर्ट सीख रहा था और उसने अपना पंच मुझ पर आजमाया था, होंठ फट गए थे मेरे ...रोने लगा था मैं..
खैर कल वही मिली थी, स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की परीचौक ब्रांच में...
नोएडा के ओप्पो ब्रांच की असिस्टेन्ट मैनेजर ...देखते ही पहचान गया।
वो मेरे साथ पांचवी में पढ़ा करती थी कभी....देखता ही रह गया...
कोई फॉर्म फिल कर रही थी। अचानक मुझसे मुखातिब हुई 'मे आई हैव योर पेन प्लीज!'
"ज ..ज.. जी बिल्कुल!"
मैं हड़बड़ाहट में इतना ही बोल पाया।
अजीब सी हालत हो गयी थी।
'थैंक्यू!'
पेन वापिस करते हुए चिर-परिचित मुस्कान में उसने इतना ही तो कहा...
शायद वो मुझे पहचान न पाई थी। मैं कुछ कहना चाहता था पर उस वक़्त शायद किसी और ही दुनिया मे था, होशोहवास खोये हुए आदमी की तरह बस देखता ही रह गया और वो चली गयी।
मैं तेज-तेज चलता हुआ, नहीं-नहीं लगभग भागता हुआ पास के सैलून में गया। आदमकद शीशे में खुद को देखा बड़े ही गौर से ....
वही उलझे हुए बाल, वही बेतरतीब कपड़े .....
कभी खुद को देखता, कभी अपने पेन को,
पता नहीं दुखी था या मुस्कुरा रहा था .....नहीं-नहीं शायद रो रहा था...
नहीं, यह भी नहीं शायद हँस रहा था, या कुछ भी न था ....शायद यह सब मेरा वहम था ....
पर कान में एक ही वाक्य गूंज रहे हैं अभी भी ....
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"मे आई हैव योर पेन प्लीज?"
-सूरज शुक्ला
6/9/2019