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सम्बंध और आप


मित्रों ! हमारे जीवन में अनेकों लोग मिलते हैं; बिछड़ते हैं, फिर मिलते हैं; मिलकर बिछड़ते हैं, साथ रहते हैं; साथ नहीं रहते, साथ रहने का वादा करते हैं; निभाते हैं नहीं निभाते, साथ देने का वादा करते हैं; साथ देते हैं नहीं देते, ऐसे न जाने कितने लोगों का तांता जीवन-भर लगा रहता है ! जैसे किसी समारोह में पहुंचने के बाद आने जाने का क्रम लगा रहता है ठीक वैसे ही लोगों से मिलने - बिछड़ने का क्रम जीवन भर चलता रहता है, ऐसे में जन्म लेता है 'सम्बन्ध' ! आइए आज सम्बंध से संबंधित कुछ बातें हो जाएं !


विज्ञान कहता है कि ब्रम्हांड में रहने वाले कोई दो पिंड एक दूसरे पर अपना प्रभाव रखते हैं ! न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण के नियम के अनुसार, "अंतरिक्ष में कोई भी दो द्रव्यमान दूरी और वस्तु के आकार की परवाह किए बिना एक दूसरे को आकर्षित करते हैं !" यह तो सर्वविदित है कि, चन्द्रमा से हमारा यानि पृथ्वी का गहरा रिश्ता है ! चन्द्रमा के कारण ही समुद्र में ज्वार-भाटा आता है ! चांदनी रात से हम सब अच्छी तरह वाकिफ हैं ! बचपन में चंदा मामा की लोरी आप सब ने अवश्य सुनी होगी ! ज्योतिष विज्ञान के अनुसार अंतरिक्ष में होने वाली प्रत्येक घटना पृथ्वी पर विचरण करने वाले प्रत्येक जीव जंतु के जीवन में अनुकूल अथवा प्रतिकूल प्रभाव डालती है ! 'संबंध' को परिभाषित करने के लिए इससे सटीक उदाहरण मेरी नज़र में और कोई नहीं जो चिरकाल से चला आ रहा है ! 


यह बात तो हो गई कि पृथ्वी से हजारों, लाखों, करोड़ों किलोमीटर दूर रहने वाले सूर्य, चन्द्रमा, ग्रहों, उपग्रहों और कभी कभार होने वाली खगोलीय घटनाएं मनुष्य के जीवन पर अपना प्रभाव डालते हैं, तो क्या पृथ्वी पर विचरण करने वाले मनुष्यों, जीव जन्तुओं, पशु पक्षियों द्वारा किए जाने वाले कृत्य हमारे जीवन में कोई प्रभाव नहीं डालते ? बेशक ! ऐसे सभी कृत्य जो मनुष्यों, जीव जन्तुओं, पशु पक्षियों अथवा मशीनों द्वारा पृथ्वी पर किए जाते हैं; हमारे जीवन में अपना प्रभाव डालते हैं ! जिस प्रकार सृष्टि की प्रत्येक वस्तु दूसरे वस्तु को अपनी ओर आकर्षित करती है, उसे प्रभावित करती है ठीक वैसे ही संसार के सभी जीव जन्तु एक दूसरे को आकर्षित करते हैं, उन्हें प्रभावित करते हैं ! यदि समीप हुए तो तन और मन दोनों पर लेकिन यदि दूर हुए तो तन पर प्रभाव भले न पड़े पर मन पर प्रभाव पड़ना निश्चित है ! कल्पना कीजिए, किसी स्थान विशेष पर आप उपस्थित हों, आप की कोई भूमिका न हो, लेकिन यदि कोई अनहोनी घटना होती है, चूंकि आप उस घटना के दायरे में हैं तो निश्चित ही शारीरिक और मानसिक रुप से प्रभावित होंगे और यदि दायरे से बाहर हैं तब भले ही शारीरिक रूप से कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा परंतु आपके मन पर  प्रभाव अवश्य पड़ेगा ! इस प्रकार यह सिद्ध हो जाता है कि, "संसार में होने वाली सभी घटनाएं आपसे जुड़ी हैं , अंतर है तो बस इतना कि आप उस घटना के बारे में कितना सोचते हैं, सोचते हैं भी अथवा नहीं, इसके अतिरिक्त कुछ नहीं !"


अब तक हमने जाना कि ब्रम्हांड में रहने वाले सूर्य, चन्द्रमा, ग्रहों, उपग्रहों एवं खगोलीय घटनाओं का हमारे जीवन में परोक्ष अथवा अपरोक्ष रूप से प्रभाव पड़ता है ! पृथ्वी पर घटित होने वाली समस्त घटनाएं हमारे जीवन में अपना प्रभाव डालती हैं चाहे हमारी कोई संलिप्तता हो अथवा नहीं अर्थात ब्रम्हांड में रहने वाले समस्त प्राणियों, जीव जन्तुओं, पशु पक्षियों, पेड़ पौधों, ग्रहों उपग्रहों इत्यादि से हमारा गहरा सम्बन्ध है, था और रहेगा ! 'था और रहेगा' का क्या मतलब है ? इसका मतलब यह है कि, 'जिस समय आपके शरीर की संरचना की जा रही होती है उस समय और भविष्य में भी सृष्टि की समस्त घटनाओं का प्रभाव आपके जीवन में अवश्य रहेगा !'


अब बात करते हैं उन लोगों के बारे में जो सीधे तौर पर हमारे जीवन में प्रवेश करते हैं अर्थात माता - पिता, भाई - बहन, पति - पत्नी, पुत्र - पुत्री, मित्र - दुश्मन, अपने - पराए इत्यादि ! ज्यादा कुछ न लिखते हुए बस इतना ही कहूंगा कि, जब ब्रम्हांड में विचरण करने वाले सूर्य, चन्द्रमा, ग्रहों, उपग्रहों एवं खगोलीय घटनाओं का हमारे जीवन पर परोक्ष अथवा अपरोक्ष रूप से प्रभाव पड़ता है अर्थात उन सभी घटनाओं का संबंध हमसे है फिर कुछ दूरी पर बैठे इंसान से क्यूं नहीं होगा ! हमारे जीवन में आने वाले प्रत्येक मनुष्य, जीव जन्तु, पशु पक्षी, पेड़ पौधे, मशीन इत्यादि का सीधा प्रभाव पड़ता है अर्थात हमारे बीच 'संबंध' स्थापित होता है ! कहीं यह संबंध मीठा स्थापित होता है तो कहीं कड़वा ! सम्बंधों पर जितनी बात की जाए, उतनी ही कम पड़ेगी ! संबंध कहीं प्रगाढ़ तो कहीं अगाढ़, कहीं मिठास तो कहीं खटास, कहीं अपनापन तो कहीं परायापन, कहीं अनुराग तो कहीं विराग और भी न जाने क्या -२ बनता बिगड़ता रहता है ! मैं सिर्फ इतना ही कहना चाहूंगा कि, "जीवन है तो संबंध हैं, बनेंगे, बिगड़ेंगे परन्तु ध्यान रहे संबन्ध बनाने से ज्यादा निभाना ज़रुरी होता है !" इससे भी महत्वपूर्ण बात यह कि, 'हमारा सारा जीवन संबंधों को सहेजने में बीत जाता है फिर भी सम्बन्धों के बनने और बिगड़ने का क्रम बदस्तूर जारी रहता है !' 


धन्यवाद !


लेखक किरण कुमार पाण्डेय 'के के'

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